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श्लोक-बातिक
निज शुद्ध आत्माका ध्यान करनेपर उपादानका आदर बढ़ जाता है। उदासीन कारण रूप वृद्धाके पड़े रहनेसे चोर या कुशील पुरुष घर में नहीं घुस पाते हैं । अचेतन उपादान कारणोंसे नाना कार्योंको चेतन कर्ता बना रहे हैं । यहाँ निमित्त कारण चेतन कर्ताओं की अपेक्षा, काठ, कुल्हाड़ी, छनी आदि का अधिक सम्मान नहीं है, हां सोने के कड़ों को गढ़ते समय, हथोड़ा, चीमटा, आदि निमित्तों से उपादान मानेगये सोने का मूल्य अधिक है, जब कि कांच को काटने वाली हीरा की कनी के मूल्य से कांच का मूल्य अल्प है, मछली को चलाने में उदासीन निमित्त होरहे जलकी सामर्थ्य न्यून नहीं समझी जा सकती है।
उपादान कारण होरहे जीवों की अपेक्षा निमित्त कारण कर्मों की शक्ति प्रवल है तभी तो वे कर्म इस जीव को नाना गतियोंमें नचाते फिरते हैं, हाँ स्वकीय पुरुषार्थद्वारा कर्मोंका ध्वंस करते समय उपादान की शक्ति बढ़ जाती है। न्यायी राजा, इह लोक भय, पर लोकभय, सभ्यता, ये प्रेरक निमित्त नहीं होते हये भी अनेक पुरुषों को पापक्रिया करने से बचा लेते हैं, गर्म कील को स्थान दे रहे का अवगाह शक्ति की अपेक्षा सबको युगपत् अवकाश दे रहे आकाश की अवगाह शक्ति बढ़ी चढ़ी है, यहाँ वहाँ फुदक रहे जीव की गति में प्रेरक कारण होरही शक्ति की अपेक्षा स्थिर कालाणु की वह शक्ति प्रबल है जो कि नित्य निगोदिया जीव के व्यवहार राशिमें प्रागमन का कारण है अतः झट मे विना विचारे ही किसी उदासीन कारण को अप्रधान और प्रेरक या उपादान को प्रधान नहीं कह बैठना चाहिये । कारणोंका अपमान इससे अधिक और क्या होसकता है ? पहिले कतिपय दृष्टान्तों में लोहे को अल्प मूल्य और सोने को बहुमूव्य कह दिया गया है, यह कहना भी व्यावहारिक है, कोई लोहा भी सोने से अधिक मूल्य रखता है। अनेक धान्य, वनस्पतियों को उपजाने वाली मिट्टी की प्रशंसा सोने से कम नहीं है, जल अग्नि, वायु भी बड़े मूल्यवान् पदार्थ हैं । उक्त बातें केवल कारण तत्व की तह पर पहुचाने के लिये कही गयी थीं वस्तुतः विचारा जाय तो सभी कारण अपनी अपनी योग्यता अनुसार परिपूर्ण सामर्थ्यको रखते हैं, कोई छोटा बड़ा नहीं है। अन्न या जलमें अथवा माता या पितामें किसको छोटा बड़ा कह दिया जाय? कारणों की शक्ति पर किसी प्रकार का पर्यनयोग नहीं चलाना चाहिये प्रकरण में उदासीन कारण या साधारण कारणको छोटा मत समझो, अपेक्षा वश सभी कारण उच्च
आसन पर विराजमान किये जा सकते हैं। यहां तक क्रिया में साधारण कारण होरहे काल की अनुमान द्वारा सिद्धि कर दी गयी है।
के पुनः परत्वापरत्वे ? वर्तना, परिणाम, और क्रिया का विवेचन समझ लिया है। अब महाराज यह बतायो कि सूत्र में कहे गये परत्व और अपरत्व भला क्या पदार्थ हैं ? ऐसी जिज्ञासा होने पर ग्रन्थकार परत्व और अपरत्व का लक्षण करते हैं
विप्रकृष्टेतरदेशापेक्षाभ्यं प्रशस्तेतरापेक्षाभ्यां व परत्वापरत्वाभ्यामनेकांतप्रकरणात अपरदिक्संबंधिनि निवेद्य वृद्धलुब्धके परत्प्रत्ययकारणं परत्वं, परदिक्संबंधिनि च प्रशस्त कुमारतपस्विन्यपरत्वप्रत्ययहेतुरपरत्वं न तद्धि गुणकृतं नचाहतुकमिति तद्धतुना विशिष्टेन भवितव्यं स नः काल इति ।