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श्लोक- वार्तिक
अव्यवस्थित है, अतः धर्म द्रव्य का परिणाम प्रधमं द्रव्य या स्थितिहेतुत्व नहीं हो सकता है तो हम जैन क्या कहते हैं ? इस प्रश्न पर हमारा समाधान यह है कि कुरमें वीज कथंचित् व्यवस्थित है और कथंचित् अव्यवस्थित है, इस प्रकार हम जिज्ञासुनोंको व्युत्पत्ति करा रहे हैं । एकान्तपक्षों में आने वाले दोष अनेकान्तों में प्रवेश नहीं पाते हैं. इस वात को हम कई वार पूर्व प्रकरणों में कह चुके हैं।
निर्णीत सिद्धान्त यह है कि स्याद्वादियों के यहां वीज, शरीर, पुष्प आदिक ही से वनस्पति काय को धारने वाला सजीव वीज उपजता है और वह वीजात्मा अंकुर, फल, आदि स्वरूप होरहा अपने शरीर के अनुसार स्वरूप परिणाम को धारने वाला अभीष्ट किया गया है जैसे कि मातृ गर्भ में प्रथम मास के कलल शरीर में मनुष्य जीव उपज कर ( जन्म लेकर ) अर्वाद आदि अपने शरीर की पर्यायों को यों धारता रहता है न्यत्रकारों से फिर वह परिणामों को नहीं धारता है अर्थात् पहिले सूखा बीज जड़ है पुनः वनस्पतिकायिक जाव उसमें उपज जाता है तब वह वीज अंकुर लघुवृक्ष. महावृक्ष प्रादि परिणामों को धार लेता है जैसे कि मातृगर्भ में पहिले महीने कलल शरीर में मनुष्य जाव उपज कर पुनः पेशी अर्बुद, आदि रूप करके परिणमन करता हुआ नौ महीने में बालक शरीर होकर परिणम जाता है और तैसा होने पर जो व्यवस्था होती है उसको सुनो ।
मनुष्यनामकर्मायुषोदयात्प्रतिपद्यते । कललादिशरीरांगोपांगपर्यायरूपताम् ॥ २६ ॥ स जीवत्वमनुष्यत्वप्रमुखैरन्वयैर्यथा । व्यवस्थितः स्वकीयेषु परिण | मेष्वशेषतः ॥ ३० ॥ कललादिभिः पुनः पूर्वर्भावैः क्रमवर्तिभिः । व्यतिरिक्तः परत्रासौ न व्यवस्थित ईक्ष्यते ॥३१॥ तथा वनस्पतिर्जीवः स्वनामायुर्विशेषतः । वनस्पतित्वजीवत्वप्रमुखैरन्वयैः स्थितः ॥ ३२ ॥ स्वशरीरविवर्तेषु वीजादिषु परं न तु । पूर्वपूर्वेण भावेन तु स्थितः क्रमभाविना ॥ ३३ ॥
माता पिता के रजः और वीर्य का गर्भ में योग्य सम्मिश्रण होने पर स्वकीय द्रव्य, क्षेत्र, काल भाव अनुसार वहाँ कोई विवक्षित जीव जन्म ले लेता है, मनुष्य गति संज्ञक नामक और प्रायुष्य कर्म इन दोनों कर्मों का और इनके सहचारी अन्य अनेक कर्मोंका उदय होजाने से वह जीव कलल आदिक शरीर के अंगोपांग पर्याय स्वरूपों को प्राप्त कर लेता है। वह जीव कलल, घन, वाल्य, कौमार आदि प्रवस्थाओं में जीवत्व मनुष्यत्व, द्रव्यत्व आदिक अन्वयों करके जिसप्रकार अपनी अपनी निज पयार्यो में पूर्णरूप से व्यवस्थित होरहा है और फिर fna भिन्न हो रहे एवं क्रम से विवर्त कर रहे ऐसे कलल