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________________ पंचम अध्याय के पुनः परिणामः १ द्रव्यस्य म्वजात्यपरित्यागेन प्रयोगविस्रसालक्षणो विकारः परिणामः तत्र विस्रसापरिणामोनादिरादिमांश्च । चेतनद्रव्यस्य तावत्स्वजातेश्चतनद्रव्यत्वाख्याया अपरित्यागेन जीवत्वभव्यत्वाभव्यत्वादिरनादिरौपशमिकादिः पूर्वाकारपरित्यागाजहदृचिरादिमान् स तु कर्मोपशमाद्यपेक्षत्वादपौरुषेयत्वावलसिकः। अचेतनद्रव्यस्य तु लोकसंस्थानमदराकारादिरनादिरिन्द्रधनुरादिरादिमान पुरुषप्रयत्नानपेक्षत्वादेव वेससिकः। वतना का व्याख्यान हो चुका अब महाराज यह बतानो कि सूत्र में वर्तना के पश्चात् कहा गया परिणाम फिर भला क्या पदार्थ है ? इसका समाधान करते हुये ग्रन्थकार कहते हैं कि स्वकीय जाति का परित्याग नहीं करके द्रव्यका प्रयोग और विरसा स्वरूप विकार होजाना परिणाम है द्रव्य का जीवके प्रयत्नसे हा विकार तो प्रयोगस्वरूप परिणाम है और उन जीवप्रयत्नों की नहीं अपेक्षा करके अन्य अन्तरंग वहिरग कारणोंसे विस्रसा स्वरूप परिणाम होता है। उन दोनों प्रकार के परिणामों में विससा नामक परिणाम दो प्रकार है एक अनादि और दूसरा आदिमान् यानी सादि है । तिनमें चेतन द्रव्यका तो चेतनद्रव्यत्व नामक अपनी निज जातिका नहीं परित्याग करके होरहा जीवत्व, भव्यत्व, अभव्यत्व, ज्ञस्व, आदि स्वरूप अनादि परिणाम है। अर्थात-चेतन जीव द्रव्य अनादि काल से जीवत्व आदि परिणामों को धार रहें हैं । जो भव्य जीव हैं वे अनादिकाल से बिना ही प्रयत्न के भव्यत्व रूप परिणमन में लवलीन हैं और जो जगत् में जघन्य युक्तानन्तप्रमाण अभव्य जीव हैं पुरुषार्थ विना ही अनादि से अभव्यत्व परिणति में तत्पर होरहे हैं, जीवत्व परिणाम तो सबका अनादि, अनन्त है तथा चेतन द्रव्य के औपशमिक, क्षायोपशमिक आदिक परिणाम तो पादिमान हैं क्योंकि उपशमसम्यक्त्व, मतिज्ञान आदि परिणतियों में पूर्व आकारोंका परित्याग और अजहवृत्ति यानी ज्ञानत्वेन या जीवत्वेन ध्रौव्य अंश बना रहता है, कर्मके उपशम आदि की अपेक्षा होनेसे इन परिणतियों में जीव का पुरुषार्थ कोई प्रधान हेतु नहीं माना गया है, वे औपशमिक आदि भाव तो कर्मों के उपशम. क्षयोपशम, आदि की अपेक्षा रखने वाले होने से जीव के पुरुषार्थ करके नहीं उपजने के कारण वैनसिक समझे गये हैं यों चेतन द्रव्य के अनादि और सादि वैस्रसिक परिणामों को उदाहरण सहित कह दिया है । अचेतन द्रव्य के तो लोककी रचना, सुदर्शन मेरु की रचना सूर्य चन्द्रमानों की रचना, आदि परिणाम अनादि होरहे वैस्रसिक हैं और इन्द्रधनुष बादल आदिक अनेक परिणाम आदिमान हैं इनमें पुरुषप्रयत्न की अपेक्षा नहीं है, इस कारण ये अचेतन पुद्गल द्रव्यके वैनसिक परिणाम कहे जाते हैं। प्रयोगजः पुनर्दानशीलभावनादिश्चेतनस्याचा र्योपदेशलक्षणपुरुषप्रयत्नापेक्षत्वात, घटसंस्थानादिरचेतनस्य कुलालांदिपुरुषप्रयोगापेक्षत्वात् धर्मास्तिकाया दिद्रव्यस्य तु बैससिकोड संख्येयप्रदेशित्वादिरनादिः परिणामः। प्रतिनियतगत्युपग्रहहेतुत्वादिः आदिमान । प्रयोगजो यंत्रादिगत्युग्रहहेतुत्वादिः पुरुषप्रयोगापेक्षत्वात् । दूसरा प्रयोग से जन्य परिणाम फिर चेतन द्रव्य का तो दान करना, शील पालना, भावना भाना, अध्ययन करना, संयम पालना आदिक हैं क्योंकि प्राचार्य महाराज के उपदेशस्वरुप पुरुष प्रयत्न
SR No.090500
Book TitleTattvarthshlokavartikalankar Part 6
Original Sutra AuthorVidyanandacharya
AuthorVardhaman Parshwanath Shastri
PublisherVardhaman Parshwanath Shastri
Publication Year1969
Total Pages692
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size23 MB
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