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सल्लेखनाके अतिचार----- ----- --- ६४७-६४८
६२२
सल्लेखना आत्महत्या नहीं है सूत्र २३
६२१-६२७ शंका आदिका स्वरूप
६२१ प्रशंसा और संस्तवनमें अन्तर आगार और अनगार दोनों सम्यग्दृष्टियोंके पांच अतिचार हैं दर्शनमोहनीय कर्मोदयसे सम्यग्दर्शनमें अतिचार
६२३ सूत्र २४
६२७-६२८ पांच पांच अतिचार गृहस्थके है
६२८ सूत्र २५
६२९-६३० बध बन्धन आदिका अर्थ
६२९
६३०-६३२ मिथ्योपदेश आदि अतिचारोंका अर्थ सूत्र २७
६३२-६३३ स्तेन प्रयोग आदि चोरीके अतिचारोंका कथन
६३२ सूत्र २८
६३२-६३५ परविवाहकरण आदि ब्रह्मचर्य व्रतके पांच अतिचारोंका कथन
६३४ सूत्र २९
६३५-६३७ अपरिग्रह व्रतके अतिचार
६३५ सूत्र ३०
६३७-६३८ दिगव्रतके अतिचारोंका विशेष कथन
६३८-६३९ देश व्रतके अतिचारोंका कथन
६३८ सूत्र ३२
६३९-६४१ अनर्थदण्ड व्रतके अतिचारोंका कथन
सूत्र ३६
६४६-६४७ अतिथि संविभाग व्रतके अतिचार सूत्र ३७
६४७ सूत्र ३८
____.६४९-६५० दानका लक्षण
६४६ स्वका अर्थ धन है
६४९ अनुग्रह शब्दसे स्वमांस दानका निषेध हो जाता है क्योंकि महापकारक है . ६४९ __सूत्र ३९
६५०-६५९ दानमें विशेषताका कारण
६५० विधि, द्रव्य, दातार और पात्र इन सबकी विशेषता विधि-द्रव्य आदिको विशेषतामें बहिरंग
और अंतरंग कारण प्रकारके हैं दानमें संक्लेश रहिततासे उत्कृष्ट पुण्य, किंचित् संक्लेशतासे मध्यम पुण्य, बृहत् संक्लेशतासे अल्प पुण्य होता है द्रव्यसे पात्रमें यदि गुणोंकी वृद्धि होती है ...तो पुण्य होता है, यदि दोषको वृद्धि होती है तो पाप बंध, यदि गुण व दोष होते हैं तो मिश्र बंध होगा
६५३ पात्रके अनुसार दानका फल
६५४ जैसे कृषिमें भूमि जल घाम आदि कारणों से बीजके फलमें विशेषता हो जाती है वैसे ही सामग्रीके भेदसे दान फलमें विशेषता हो जाती है - अनेकान्तके द्वारा पर मतोंका खंडन विशुद्ध परिणामोंसे अपात्रको दिया गया दान सफल, और संक्लेशसे पत्रको दिया गया दान निष्फल होता है । अशुद्ध अवस्था में पात्र दान न करनेसे पुण्य बंध तथा अशुद्ध पदार्थके दानसे पाप बंध होता है ऐसा अनेकान्त व स्याद्वाद है सातवें अध्यायका सारांश
सूत्र ३१
सूत्र ३३ सामायिक व्रतके अतिचार -
सूत्र ४ प्रोषधोपवासके पांच अतिचार
सूत्र ३५ उपभोग परिभोगके अतिचार
६४१-६४२
६४१ ६४२-६४४
६४३ ६४४-६४६
६४४