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प्राण व्यपरोपणका अर्थ
प्राण व शरीर जीवसे भिन्न हैं फिर भी प्राणोंका वियोग दुखका कारण है शरीर और आत्माको भित्र माननेवाले एकान्तवादियों के यहाँ हिंसा संभव नहीं है। चक्रदोष
स्वादादियोंके प्राणोंके व्यपरोपणसे प्राणीका व्यपरोपण संभव है
जहां प्रमत्तयोग होगा वहां प्राण व्यपरोपण अवश्य होगा
रागादिके अभाव में हिंसा नहीं है
सूत्र १४
असत्का अर्थ अप्रशस्त है
'मिथ्या अनृतं ' यह ठीक नहीं है अतिव्याप्ति
दोष आ जावेगा
असत्य और सत्यकी परिभाषा
सूत्र १५
कर्म नोकर्म वर्गणाका ग्रहण चोरी नहीं है किन्तु जिन वस्तुओंमें लेने देनेका व्यव हार होता है वहीं अदत्तादानको चोरी कहा है
प्रमत्त योगसे अदत्तादान चोरी है
सूत्र १६ मैथुनको परिभाषा ब्रह्म की परिभाषा
बिना प्रमादके मैथुन संभव नहीं है स्वी परिषहजय या उपसर्गमें मुनिके ब्रह्म नहीं होता
प्रमत्त योगका अभाव होनेसे ज्ञान दर्शन
चारित्र परिग्रह नहीं है
परिग्रह सब पापोंका मूल है
परिग्रहमें चोरी व अब्रा भी होता है हिंसा में शेष चार पाप आ जाते हैं
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सूत्र १७
मूर्च्छाका अर्थ । मूर्छाका कारण होनेसे बाह्य परिग्रहको परिग्रह कहा गया
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झूठ चोरी और कुशीलमेंसे प्रत्येकमें पांचों पाप गर्भित हैं
परिग्रहका लक्षण, मूर्च्छापर शंका-समाधान तथा वस्त्र आदि भी परिग्रह हैं। क्योंकि मूर्छा है
पिच्छी कमण्डल परिग्रह नहीं है सूक्ष्मसांपरायादिमें इनका त्याग हो जाता है। शरीर पूर्वोपार्जित कर्मका फल है अत क्षीण मोह हो जानेपर शरीर परित्यागके लिये परमचारित्रका विधान है मुनिके आहार ग्रहण करनेमें मूर्च्छा नहीं है, क्योंकि वह नव कोटि विशुद्ध आहार ग्रहण करता है।
सूत्र १८ निश्शल्य और व्रतीपनके अंग-अंगी भाव है ।
असंयत सम्यग्दृष्टिके शल्य रहित होनेपर भी व्रतोंका अभाव है
सूत्र १९ आगारका अर्थ
नैगम संग्रह व्यवहार नयसे एक देश व्रतियों का व्रतियों में समावेश हो जाता है अनगारका अर्थ
सूत्र २०
अणुव्रतोंका अर्थ
सूत्र २१
सात शील व्रतोंके स्वरूपका कथन श्रोषधोपवास
पांच अभक्ष्य का कथन, तथा अनिष्ट यान वाहनादि तथा अनुपसेव्य वस्त्रका त्याग अतिथिसंविभाग
सूत्र २२
मरणका लक्षण
सल्लेखनाका अर्थ
जोषिताका अर्थ
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