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५४८
५२१
सूत्र १९
५१९-५२१. शील व व्रतसे रहितपना चारों आयुके बंधका कारण है
५२० सूत्र २० धर्म ध्यानमे अन्वित सरागसंयम आदि देवायुके कारण हैं सूत्र २१
५२२-५२३ अनन्तानुबन्धीका अभाव तथा मिथ्यात्वका विनाश हो जानेसे हिंसा स्वभाव नहीं रहता और वृत्ति विशुद्ध हो जाती है . ५२३ सूत्र २२
५२४ योगवक्रता तथा विसंवादनका स्वरूप ५२४ सूत्र २३
५२४-५२५ योगों की ऋजुता तथा अविसंवादन शुभनाम कर्मका कारण है
५२५ सूत्र २४ दर्शनविशुद्धि आदिका स्वरूप ५२६-५२९ दर्शनविशुद्धिसे अन्वित प्रत्येक भावना तीर्थंकर को कारण है
५२९ पुण्य तीन लोकका अधिपति बना देता है ५२६
रात्रिभोजन व्रत
५४५ सूत्र २
५४७-५४९ देश और सर्वका अर्थ
५४८ मिथ्यादृष्टिके व्रत बालतप है- ---- सूत्र ३
५४९ व्रतोंमें स्थिरताके लिये भावना है जिससे उत्तर गुणों को प्राप्ति होती है
५४९ सूत्र ४ अहिंसा व्रत की पांच भावना
५५०
५५०-५५१ सत्यव्रत की पांच भावना
५५०
५५१-५५२ अचौर्य व्रतको पांच भावना
५५२
५५२-५५३ ब्रह्मचर्य व्रत की पांच भावना
५५३ सूत्र
५५३-५५५ अपरिग्रह ( आकिंचन्य ) व्रतकी पांच ५५३ भावना भाव्य, भावक, भावनाका स्वरूप सूत्र ९
५५५-५५६ अपाय और अवद्यका अर्थ
५५६
५५६-५५८ कारणमें कार्यका उपचार कर हिंसा आदिको दुख कहा है अब्रह्म भी दुख है सुख नहीं है सूत्र ११
५५८-५६० मैत्री, प्रमोद, करुणा, माध्यस्थ तथा सत्त्व, क्लिश्यमान, गुणाधिक और अविनय इनका स्वरूप
५५८ मैत्री आदि भावनाका विशेष कथन
५५९ सूत्र १२
५६०-५६४ स्वभाव, संवेग, वैराग्य इन शब्दोंका अर्थ ५६१ आत्मा स्वरूप चितवन करनेवाले भावित आत्माके संवेग व वैराग्य होता है
५६२ सूत्र १३
५६४ प्रमत्त व योग शब्दका अर्थ
५३०
५५७
सूत्र २७
५३०-५३१ पर निंदा आदिका स्वरूप सूत्र २६
५३१-५३२ नीचर्बत्ति आदिका स्वरूप
५३१
५३२-५३७ आत्म परिणामों की शुद्धिसे पुण्यकर्मका शुभ आस्रव और अशुद्धिसे पापकर्मोका अशुभ आस्रव होता है
५३५ सूत्र १० से २७ तक इन १८ सूत्रों द्वारा अनुभाग विशेष की अपेक्षा कथन है
अध्याय ७ सूत्र.
५४३-५४७ बुद्धि पूर्वक परित्याग करना विरति है ५४४ व्रतोंका आस्रव तत्त्वमें कथन करनेका कारण
५४४