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पंचम-अध्याय
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प्रलौकिक गणित अनुसार वे भी इकईसवें संख्यामान द्वारा परिमित हैं, आकाश के अनन्तानन्त प्रदेश भी सर्वज्ञ के प्रत्यक्ष में हस्तामलकवत् देखे जारहे परिमित हैं, हां वे अनन्तानन्त अवश्य हैं, तिस कारण सूत्रकार ने यों इस सूत्र में बहुत अच्छा कहा था कि अाकाश द्रव्य के अनन्तानन्त प्रदेश हैं। यहाँ तक इस सूत्र का व्याख्यान समाप्त हुआ ।
____धर्म, अधर्म, एक जीव और आकाश यों चार अमूर्त द्रव्यों के प्रदेशों का परिमाण जाना जा चुका है, अब महाराज बताओ कि मूर्त पुद्गों के प्रदेशों का परिमाण कितना है ? ऐसी जिज्ञासा होने पर सूत्रकार श्री उमास्वामी महाराज अगले सूत्र को कहते हैं ।
संख्येयासंख्येयाश्च पुद्गलानाम् ॥ १० ॥
पुद्गल द्रव्यों में से किसी के संख्यात प्रदेश हैं, किसी अशुद्ध पुद्गल द्रव्य के असंख्यात प्रदेश हैं, और च शब्द करके समुच्चय किये गये अनन्त प्रदेश भी किसी पुद्गल स्कन्ध के माने जाते हैं।
प्रदेशा इत्यनुवर्तते । च शब्दादनंताश्च समुच्चीयते । कुतस्ते पुगद्लानां तथेत्याह ।
इस सूत्र में " असंख्येयाः प्रदेशाः धर्माधर्मकजीवानाम् " इस सूत्र से प्रदेशाः इस पद की अनुवृत्ति होरही है और च शब्द से पूर्वसूत्रोक्त "अनन्ताः" इस वाच्यार्थ का समुच्चय कर लिया जाता है, ऐसी दशा में इस सूत्र का यों अर्थ होजाता है कि पुद्गलों के संख्येय, असंख्येय और अनन्त प्रदेश हैं। कोई यहां यदि यो प्रश्न करै कि पुद्गलों के तिस प्रकार संख्यात, असंख्यात, और अनन्ते वे प्रदेश किस प्रमाण से भला सिद्ध होजाते हैं बतायो ? इस प्रकार जिज्ञासा होने पर ग्रन्थकार उत्तरवात्तिक को कहते हैं।
संख्येयाः स्युरसंख्येयास्तथानंताश्च तत्त्वतः।
प्रदेशाः स्कंधसंसिद्धेः पुगद्लानामनेकधा ॥१॥ पुद्गल द्रव्यों के प्रदेश संख्यात और असंख्यात तथा अनन्त होसकते हैं, ( प्रतिज्ञा ) क्योंकि वास्तविक रूप से पुद्गलों के अनेक प्रकार के स्कन्धों की अच्छी सिद्धि होरही है, ( हेतु )। अर्थात्जितने परमाणों से जो स्कन्ध बनेगा उस-स्कन्ध में उतने परमाण्ववगाही प्रदेश कहे जायेंगे । पुद्गलस्कन्ध में आकाश के प्रदेशों की लम्बाई, चौड़ाई, अनुसार प्रदेश नहीं माने गये हैं जैसे कि धर्म, अधर्म, एक जीव और आकाश में माने गये थे किन्तु पुद्गलों में तो परमाणों की गिनती अनुसार प्रदेशों की संख्या नियत की गयी है, भले ही आकाश का क्षेत्र उनमें वहत थोड़ा होय या अधिक से मधिक परमाणमों की संख्या बराबर संख्यातप्रदेशी या असंख्यात प्रदेश वाला होय । अनन्त प्रदेश वाले आकाश में तो कोई पुद्गल दव्य ठहरता ही नहीं है क्योंकि पुद्गलों का अवस्थान असंख्यात प्रदेशवाले लोकाकाश में ही है अलोकाकाश में नहीं।