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तत्त्वार्थश्लोकवार्तिके
raamanand
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( एकभाग ) प्रसिद्ध पदार्थ ही लक्ष्य हो सकता है । कहीं कहीं पदार्थके एक भागको भी लक्ष्य बनाया जा सकता है तथा सभी प्रकारोंसे प्रसिद्ध हो रहे पदार्थको लक्षण कहना इस प्रकार उनका दूसरा आग्रह भी युक्तियोंसे रीता है । क्योंकि गोल आकार, लम्बाई, कठोरता, सुन्दरता आदि धर्मों करके प्रसिद्ध हो रहे फिर भी कठिनता से देखने में आवें ऐसे किन्हीं लपलपापन, सारभाग ( जौहर ) मूल्य, बांसकी जाति, आदिक विशेषताओं करके अप्रसिद्ध भी हो रहे दण्डको देवदत्तका लक्षणपना प्रतीत हो रहा है। तभी तो लक्षण कर चुकनेपर भी परीक्षा करना आवश्यक हो जाता है । देवदत्तका डण्डा कितने मूल्यका है ? किस देशका है ? ठोस है या पोला है ? डण्डेकी इन सभी बातोंको प्रसिद्ध रूपसे जान लेना कठिन कार्य है । बौद्ध मतानुसार सम्पूर्ण पदार्थीको क्षणिक माना गया है, जैन भी ऋजुसूत्रनयसे सर्वको क्षणवर्ती मानते हैं । दान, पूजन, आदि करनेवाले जीवमें स्वर्ग प्राप्त करनेकी शक्ति मानी गयी है। बीजमें हजारों, लाखों, असंख्य, पीडियोंतक संतान प्रतिसंतानरूपसे अंकुरको उत्पन्न करनेकी कुर्वद्रूपत्व शक्ति मानी गयी है । सभी देखे जा रहे सम्वृत्तिसत्य दृश्यमान स्कन्धोंको बौद्धोंने यथार्थरूपसे परमाणु स्वरूप स्वीकार किया है। भावार्थ-सभी पदार्थों में एकान्तरूपसे विशेषतायें घुसी हुई हैं। संसारमै अनेक मायाचारी जीवदयाका प्रयोग करते हैं। न जाने किन किन असंख्य अवक्तव्य अभिप्रायोंको लेकर जीव भ्रमण कर रहे हैं । कोई कपडा दो वर्षतक चलता है तैसे ही कोई वस्त्र दो, चार, दस, बीस दिनतक कमती बढती टिकाऊ होते हैं। कई हृष्ट, पुष्ट, शरीरवाले. पुरुषोंकी मृत्युयें सुनी जाती हैं । और दुर्बल, पतले, चिररोगी, अर्दोगग्रस्त लंगडे, कुष्ठी पुरुष बीसों वर्षतक जीवित बने रहते देखे जा रहे हैं । कितनी ही घडियोंको दस, वीस वर्षतक नहीं सुधरवाना पडता है । साथमें वैसी ही घडियोंको एक एक महीनेमें ठीक कराना पडता है । बनारसका जल किसी किसी व्यक्तिको प्रकृति के अनुकूल नहीं पडता है । साथमें अन्य व्यक्तिको हृष्ट, पुष्ट, बलिष्ट, बना देता है । बात यह है कि सम्पूर्ण पदार्थों के अन्तरंग क्षणस्थायीपन, स्वर्गप्रापणशक्ति, आदि स्वभावेंका सभी प्रकार सभी जीवोंमें किसी भी जीव करके जानने के लिये सामर्थ्य नहीं है। अतः सर्वथा प्रसिद्ध हो रहे पदार्थको ही लक्षण कहना उचित नहीं है । सर्वज्ञ देवके सन्मुख तो लक्षण करनेकी आवश्यकता ही नहीं है । जिनको लक्षणके द्वारा लक्ष्यका बोध कराया जाता है वे प्रतिपाद्य और प्रतिपादक दोनों भी लक्षणके सम्पूर्ण स्वभावोंका निर्णय कर चुकनवाले नहीं होते हैं। अतः लक्षण भी बहुतसे सूक्ष्म अंशोंमें अप्रसिद्ध है, फिर भी स्थूल अंशोंकी प्रसिद्धिके अनुसार वक्ता, श्रोताओंके यहां प्रसिद्ध हो रहा लक्षण मान लिया जाता है । ऊपरसे सदृढ दीख रहे शरीरमें भी कोई रोग या निर्बलताका अंश छिपा हुआ है । अथवा शक्तिशाली प्रबल कारण जुट जानेपर उसी समय परिस्थिति अनुसार बन जाता है । रोगी कोढी जीवोंमें भी आयुष्य कर्म या नियत हड्डिओंका दृढपना वर्त रहा है। काशीके जलवायुमें भी किसी प्रकृतिवाले शरीरको पोषण करने के अंश विद्यमान है और दूसरे शरीरको सरोग बनानेके शक्तिभाग उसमें पाये जाते हैं। सर्वज्ञके अतिरिक्त किसी भी जीवको किसी भी पदार्थके संपूर्ण