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तत्त्वार्थचिन्तामणिः
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गणनाके अंक बदल जाते । अनेकान्त सिद्धिके प्रकरणका आरम्म होनेके प्रथम " व्यभिचार जितत्वासम्मवात्" इस पंक्तिके परली ओर यह सूत्र डालना उचित जचता है। किन्तु यहां भी पूर्व प्रकरणके कर्मवैचित्र्यकी संगति जुड़ रही होनेसे स्वल्प भी स्थान दृष्टिगोचर नहीं होता है। अतः अनुमित होता है कि यह सूत्र मूलसूत्ररूपसे विद्यानंद स्वामीको अभीष्ट नहीं है । लौकान्तिकानां इत्यादि सूत्रको अपेक्षा " तदष्टभागोरा" इस सूत्रमें अनेकान्तको सिद्धि करना अच्छा जवता हैं, ग्रन्थकारने ऐसा ही ढंग भी डाला है। श्रुतसागरस्वामीने भी इसको मूलसूत्रमें परिगणित नहीं कर टीकामें " तथा च विशेषः लौकान्तिकानामष्टो सागरोपमाणि सर्वेषां, ये लौकान्तिकास्ते विश्वेपि शुक्ललेश्याः पंवहस्तोन्नताः अष्टसागरोसमस्थितयः इति" यों लिख दिया है। जिस प्रकार सर्वार्थसिद्धि मे या राजवातिकमें इस सूत्रका अवतरण दिया गया है, अथवा श्रुतसागर स्वामीने जिस प्रकार अन्य सूत्रों का प्रातरण दिया है, उस प्रकार इस सूत्रका अवतरण नहीं दिया है। ये श्रुतसागर सूरि तत्वार्यत्रकी टीका करते हुए प्रत्येक अध्यायके अन्त में और यहां भी "सकलविद्वज्जनविहितचरणसेवस्य श्रीविद्यानन्दिदेवस्य संछदितमिथ्यामतदुर्गरेण श्रुतसागरेण सूरिणा विरचिताया श्लोकवार्तिकराजवातिक सर्वार्थसिद्धि न्यायकुमुदचन्द्रोदय प्रमेय कमल मार्तण्ड प्रवण्डाष्टसहस्रीप्रमुखग्रन्यसन्दर्मनिर्भरावलोकनबुद्धिविरचितायां तत्त्वार्थटीकायां चतुर्थोध्यायः समाप्तः" । यों लिखकर आनेको राजवातिक, श्लोकवातिक आदि ग्रन्थों का अन्तःप्रवेशी ज्ञाता प्रकट करते हैं । अस्तु कोई विरोध नहीं होनेसे उस त्रुटिको यहां भाषा अर्थ करते हुए अविकल उद्धृत कर दिया जाता है। सम्भव है कि यह थी विद्यानन्द स्वामीकी कृति होय " ब्रह्मलोकालया" आदि इन दो सूत्रोंमें जैसे लोकान्ति। कोंका स्वतंत्र निरूपण किया है, उसी प्रकार स्थिति के प्रकरण में सूत्रकारने यह सूत्र भी पढ़ दिया होय । इस विषयपर विशेषज्ञ विद्वान् और अधिक प्रकाश डाल सकते हैं। लोकान्तिकानामष्टौ सागरोपमाणि सर्वेषाम् । सम्पूर्ण लौकान्तिक देवोंकी आठ सागरोम स्थिति है । लौकान्तिकसुराणां च सर्वेषां सागराणि वै । अष्टावपि विजानीयात्स्थितिरेषा प्रकीर्तिता ॥१॥
सम्पूर्ण लोकान्तिक देवोंकी स्थिति भी आठ सागरकी निर्णीत हो रही विशेषतया जान लेनी चाहिये । यों यहांतक स्थितिका बढिया क.र्तन कर दिया गया है।
लोकान्तिकदेवानां समस्तानां सदैव अष्टौ सागराणि स्थितियभिचारजिता ज्ञातव्या ।