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________________ ६३२ तत्त्वार्थश्लोकवातिके तथैव कर्मतो लेयाः साध्याः षडपि भेदतः । फलभक्षणदृशंत सामर्थ्यात्तत्त्ववेदिभिः ॥ १९ ॥ आद्या तु स्कन्धभेदेच्छा विटपच्छेदशेमुषी । परा च शाखाछेदीच्छादनुशाखच्छिषणा ॥ २० ॥ पिंडिकाछेदनेच्छा व स्वयं पतितमात्रक - । फलादिसाच कृष्णादिलेश्यानां भक्षणेच्छया ॥ २१ ॥ तिस ही प्रकार कर्म यानी क्रिया की अपेक्षासे छहों भी लेश्याओंका भिन्न भिन्नपने करके साध लेना चाहिये । तत्ववेत्ता विद्वानों करके उन लेश्यावाले जीवोंके कर्तव्य होरहे फल भक्षण स्वरूप दृष्टान्तों की सामथ्यसे यों निर्णय करना चाहिये । वनके मध्य देश में मार्ग भ्रष्ट हो गये छह पथिक एक फलपूर्ण वृक्ष को देख करके यों विचार करते हैं । पहिली कृष्णलेश्या के अनुसार एक मनुष्य स्कन्ध ( पढ ) को छेद डालने की इच्छा होजाती है । अर्थात् कृष्ण लेश्यावाला स्कन्धको उखाड डालकर फल खाना चाहता है। और दूसरी नीललेश्याके अनुसार गुट्टेको काट डालने की बुद्ध दूसरे मनुष्यको होजाती है। तीसरे मनुष्यको कापाती लेश्या के अनुसार डाली को काटने की इच्छा उपज जाती है। चौथे के पीतलेश्यां अनुसार लघुशाखाको काटकर फल खानेकी बांछा उपजती है। पांचवें पुरुषको पद्मलेश्या अनुसार डांठला या फल ही को तोड़ने की इच्छा होती है । छठे मनुष्य को शुक्ललेश्या अनुसार केवल अपने आप नीचे गिर गये फलों को ग्रहण करने की अभिलाषा उपजती है । यों कृष्ण आदिक लेश्याओंके अनुपार फलभक्षणकी इच्छा करके कर्त्तव्य क्रियाओं की अपेक्षा छहों अतीन्द्रिय भावलेश्यायें अनुमित होजाती हैं । तथा लक्षणतो लेश्याः साध्याः सिद्धाः प्रमाणतः । पराननुनयादिः स्यात्कृष्णायास्तत्र लक्षणम् ॥ २२ ॥ आलस्यादिस्तु नीलाया मात्सर्यादिः पुनः स्फुटं । कापोत्या दृढमैत्र्यादिः पीतायाः सत्यवादिता ॥ २३ ॥ प्रभृति पद्मलेश्यायाः शुक्लायाः प्रशमादिकं । गत्या लेश्यास्तथा ज्ञेयाः प्राणिनां बहुभेदया ॥ २४ ॥ तिस ही प्रकार लक्षण यानी चिन्होंसे छहों लेश्यायें प्रमाणोंसे सिद्ध हो रही साधलेनी चाहिये। उन छहों में पहिली कृष्णलेश्याका चिन्ह तो दूसरोंका अनुनय (विनय ) नहीं करना,
SR No.090499
Book TitleTattvarthshlokavartikalankar Part 5
Original Sutra AuthorVidyanandacharya
AuthorVardhaman Parshwanath Shastri
PublisherVardhaman Parshwanath Shastri
Publication Year1964
Total Pages702
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size22 MB
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