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________________ तत्त्वार्थश्लोकवातिक बुतस्ते तथा सिद्धा इत्याह । वे वैमानिक देव तिस प्रकार स्थिति आदिकसे अधिक हैं, यह सूत्रोक्त कथन भला किस प्रमाणसे सिद्ध किया गया है ? बताओ, ऐसी तर्कणा उपस्थित होनेपर ग्रन्थकार वक्ष्यमाण कारिकाको कहते हैं। सप्तभिस्ते तथा ज्ञेपाः स्थित्यादिभिरसंशयं । • तेषामिह मनुष्यादौ तारतम्यस्य दर्शनात् ॥ १॥ वे वैमानिक देव (पक्ष) तिस प्रकार स्थिति, प्रभाव, आदि सात विशेषताओं करके ऊपर ऊपर अधिक हो रहे निस्संशय जान लेने चाहिये (साध्य) । क्योंकि इस दृश्यमान लोकमें उन स्थिति आदिकोंका सेठ, राजा, महाराजा, मल्ल, अध्यापक, आदि मनुष्यों या अनेक पक्षियों अथवा बंदर, सिंह, आदि तियंचोंमें हो रहा तरतम भाव देखा जाता है। (हेतु) अर्थात्-पुण्यशाली व्यापारी सेठ, राजा, मल्ल, योगाभ्यासी, आदिकी आयु अधिक अधिक देखी जाती है । सिपाही, थानेदार, कलक्टर, कमिश्नर, लार्ड, वायसराय, आदिमें उतरोत्तर प्रभाव अधिक है, भिक्षुक, किसान, दुकानदार, जमीदार, सेठ आदिमें उत्तरोत्तर सुख भी बढ़ रहा है । रोगी, अल्परोगी, दास ( मजूर ) अध्यापक, व्यापारी, मल्ल, महाभट आदि निश्चिन्त पुरुषोंकी शरीर कान्ति भी उतरोत्तर बढ रही दीखती है। स्वच्छतासे प्रेम रखनेवाले वैद्य, डाक्टर, कप्तान, कलक्टर, प्रभु, इनमें शरीर, वस्त्र, गहने, आदिकोंको कान्ति भी बढ रही देखी जा रही है। नारकी क्रूर, तियंच, मनुष्य, देव, भोगभूमियां, सर्वार्थसिद्ध, श्रावक, मुनि, इनमें कषाय और योगकी मिश्रण परिणति स्वरूप लेश्याकी विशुद्धि उत्तरोत्तर बढ रही प्रतीत होती है। इसी प्रकार रोगी, निर्धन, अधमर्ण, (कर्जदार) घृतभोजो, निश्चिन्त पशु, पक्षी, मण्डलेश्वर चक्रवर्ती, देव इनमें स्पर्शन, घ्राण, चक्ष, आदि इन्द्रियों के द्वारा विषय ग्रहण करना उत्तरोत्तर बढते चले जा रहे देखे जाते हैं । तथा तियंच, नारकी, भवनवासी, व्यन्तर ज्योतिष्क, असुरकुमार, सौधर्म, इन्द्र, आनत प्राण तवासी अनुत्तर विमानवासी, मुनि, चरमशरीरी. इनमें अवधिज्ञान उत्तरोत्तर बढ़ता जा पाया रहा शास्त्रों द्वारा ज्ञात हो रहा है। इसी प्रकार तिर्यच योनिम विशेष रूपसें भी पक्षियोंकी चिरैया, नीलकंठ, चोल, गृह आदिकी आयु बढती हुई है। पशुओंमें कुत्ता, छरिया, गधा, घोडा, ऊंट हाथी अथवा बिल्ली, चीता. रीछ, वघेरा, सिंह, अष्टापद, इनकी आयु ऊपर ऊपर अधिक है। जल चरोंमें मेंडक मछली, कछुआ, मगर, घडिपाल, इनकी आयु बढ रही पायी जाती है । बन्दर, कुत्ता, भेडिया सिंह, बडे मच्छ, चील, गद्ध, आदिके प्रभाव, सूख, दीप्ति लेश्या, इन्द्रियों के विषय इनमें घटती बढतीका हो रहा तारतम्य देखा जाता है । बस, इसी तारतम्य हेतुकी सामर्थ्यसे देवोंके ऊपर ऊपर स्थिति आदिक अधिक हो रहे साध लिये जाते हैं।
SR No.090499
Book TitleTattvarthshlokavartikalankar Part 5
Original Sutra AuthorVidyanandacharya
AuthorVardhaman Parshwanath Shastri
PublisherVardhaman Parshwanath Shastri
Publication Year1964
Total Pages702
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size22 MB
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