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तत्त्वार्थचिन्तामणिः
सिद्धान्त शास्त्रों में ऐसा ही उल्लेख है । अतः इन्द्रिय और अवधि शद्वका पहिले द्वन्द्व समास कर ' इन्द्रियावधी ' पद बनालो । पुनः षष्ठी तत्पुरुष द्वारा ' इन्द्रियावधिविषय ' पदको व्युत्पन्न कर लेना चाहिये।
स्थित्यादीनां द्वंद्व स्थितिशद्धस्यादौ ग्रहणं तत्पूर्वकत्वात् प्रभावादीनां । तेभ्यस्ततः इत्या ' पादाने हीयरहोरिति तसिः तैर्वा ततस्तसि प्रकरणे “ आधादिभ्य उपसंख्यान" मिति तसिः।
स्थिति आदिक शद्वोंका स्थितिश्च प्रभावश्च सुखं च द्युतिश्च लेश्याविशुद्धिश्च इन्द्रियाधधि विषयश्च, यों निरुक्ति द्वारा द्वन्द्व समास करनेपर स्थिति शद्वका आदिमें ग्रहण हो जाता हे । क्योंकि आयुष्य कर्म द्वारा जीवन स्थिति नियत होनेपर जीवके प्रभाव, सुख, आदि हो सकते हैं । अतः प्रभाव आदिक सब उस स्थितिको पूर्ववर्ती मानकर पीछे उपजनेवाले पदार्थ हैं । स्थिति शब्दका स्वन्त भी है किन्तु स्वन्तपना द्युतिमें भी पाया जाता है । लेश्या विशुद्धि में अच् अत्यधिक हैं । अतः ग्रंथकारने स्थिति पद आदिमें ग्रहण करनेके लिये सबके पूर्व में वर्तना यही पुष्ट हेतु प्रयुक्त किया है । द्वन्द्व समास कर चुकनेपर स्थिति प्रभाव सुख द्युति लेश्याविशुद्धीन्द्रियावधिविषया इस पदसे तेभ्यः ततः इतिः यानी स्थिति प्रभाव मुख द्यतिलेश्याविशद्धीन्द्रियावधिविषयेभ्य इति स्थिति प्रभावसुखद्युतिलेश्याविशुद्धीन्द्रियावधिविषयतः यह सूत्रोक्तपद बना लेना चाहिये । यहां " अपादानेहीयरुहोः" इस सूत्र करके तसि प्रत्यय करना चाहिये । पंचमी विभक्तिवाले अपादान अर्थकी विवक्षा होनेपर तसि प्रत्यय हो जाता है। किंत । स्वपदात हीयेत' पर्वताते अवरोहति.ऐसे पदोंमें हीय और रुहका योग होने पर तसि प्रत्यय नहीं हो पाता है। अथवा विषयैः यों ततीयांत इन स्थिति आदि पदसे विषयतः बनालो तद्धित संबंधी तसि प्रत्ययके प्रकरणमें ' आद्यादिभ्य उपसंख्यानं ' आदि, मध्य, अन्त, पृष्ठ पार्श्व आदि आकृति गणपतित शद्वोंसे पंचमीके अतिरिक्त अन्य विभक्तियों के अर्थ में भी तसि प्रत्यय हो जाता है। ऐसा वात्तिक द्वारा उत्सर्ग सूत्रसे अधिक उपसंख्यान किया गया है । इस कारण यहां तृतीयांत पदसे भी तसि प्रत्यय किया जा सकता है । पंचमी विभक्त्यन्त पदमें इतनी प्रेरकता नहीं है, जितनी कि तृतीयांतपद द्वारा प्रेरककारणता ध्वनित हो जाती है।
उपर्युपरि वैमानिका इति चानुवर्तते तेनैवमभिसंबंधः क्रियते उपर्युपरि वैमानिकाः प्रतिकसं प्रतिप्रस्तारं च स्थित्यादिभिरधिका इति ।
____ इस सूत्रमें ' उपर्युपरि' और वैमानिकाः' इन दोनों सूत्रोंकी अनुवृत्ति हो रही हैं। तिस कारण दो सूत्रोंको मिलाकर इस सूत्रका अर्थ यों कर लिया जाता है कि ऊपर ऊपर वैमानिक देव प्रत्येक कल्प और प्रत्येक प्रस्तारमें स्थिति, प्रभाव, आदिकोंसे अधिक अधिक हो रहे विराजते हैं।