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________________ तत्वार्थचिन्तामणिः तिस ही कारणसे यानी नवपद और ग्रैवेयकपदमें वृत्ति नहीं करनेसे नौ ग्रेवेयकोमें एक एक होकर नौ पटलोंमें एक एक ग्रैवेयकका वर्तना निर्णीत कर लिया जाता है । नव शद्वको ग्रेवेयकपदके साथ समास वृत्ति नहीं करनेसे नौ अनुदिश भी प्राप्त हो जाते हैं । नव अनुदिशोंमें सम्पूर्णों का एक पटल है। उनमें दिशा और विदिशाओं में एक एक वर्त रहे यों आठ विमान और एक मध्यमें प्राप्त हो रहा इन्द्रक विमान यों न्यारे, न्यारे समतुलावाले विमानोंको वहां एकपना प्राप्त है । नवसु शद्वका योग विभाग या आवृत्ति कर एक नव शद्वको अवेयकके साथ और दूसरे नवको अनुदिशमें जोड लेना । तिस ही कारणसे यानी पांचों अनुत्तरोमे एकशः वृत्तिका अन्वय कर देनेसे अनुत्तर संज्ञक विजयादि पांचों विमानोंको एकबार समतुला ( लेविल ) में वृत्ति हो रही निश्चित कर ली जाती है । क्योंकि चार दिशाओंमें वतं रहे एक एक विमान और मध्यमें प्राप्त हो रहे सर्वार्थसिद्धि नामक एक इन्द्रक विमानको एकपना प्राप्त है । शब्द शक्तिसे ये बात व्याकरण मुद्रया प्राप्त हो जाती है । तथा अर्थ संबंधी न्यायसे भी इस प्रकार उक्त सिद्धांत विचार लिया जाता है कि सूत्रकारके यथोक्त प्रकार सूत्रमें कथन कर दिये गये क्रमका अन्य प्रकार कोई प्रयोजन नहीं बन रहा है । जो कह दिया गया प्रयोजन है वही न्याय युक्तियोंसे निर्णीत है । इस प्रकार सौधर्म ऐशान स्वर्गके इकत्तीस पटल, सानत्कुमार माहेन्द्र स्वर्गों के सात पटल, ब्रम्हयुग्मके चार पटल, लांतव युग्मके दो, शुक्र युगलका एक, शतार द्वन्द्वका एक पटल एवं आनतादि चार कल्पोंमें छह पटल, नौद्मवेयकोंके नौ पटल, नौ अनुदिशोंका एक पटल, पांच अनुत्तरोंका एक पटल यों ऊर्ध्व लोकमें असंख्याते योजनीका व्यवधान लिये हुये त्रेसठ पटल है । सबसे नीचेके ऋतु पटलके मध्यवर्ती ऋतु इन्द्रक विमानसे चारों दिशाओं में बासठ बासठ विमानोंकी पंक्ति बद्ध श्रेणी त्रसनालीतक चली गयी है । ऊपर ऊपर पटलमें चारों दिशाओंसे एक एक विमान कमती होती गयीं चारों श्रेणियां व्यवस्थित हैं। बासठसें अनुदिश संबंधी पटलमें एक एक विमान दिशाओंमे वर्त रहा है। यहां विदिशाओं में भी चार विमान हैं ऊपरके अनुत्तर विमान सम्बन्धी त्रेसठिवें पटलमें विदिशाओंमें असंख्यात योजन व्यासवाले चार श्रेणी बद्ध विमान और मध्यमें एक लाख योजन व्यासवाला सर्वार्थसिद्धि इंन्द्रक विमान यों पांच विमान हैं । यह रचना थालीमे रखे हुये ऊपर पंक्तियोंमें क्रमबद्ध कमती कमतो हो रहे लड्डुओंके ढेर समान अनादि अनन्त अकृत्रिम बन रही है । श्रेणियोंके बीच चार तिकोनोंमें पुष्प प्रकीर्णक विमान अवस्थित हैं । इन्द्रक श्रेणी, बद्ध पुष्य प्रकीर्णक विमानोंकी संख्या, उनका संख्यात या असंख्यात योजनका व्यास, और मोटाई, वर्ण, आदिका निरूपण त्रिलोकसार राजवात्तिक, ग्रन्थोंमें दृष्टव्य है। सम्पूर्ण विमानोंमें एक एक अकृत्रिम जिन मन्दिर विराजमान हैं । विमानोंकी संख्या परिमाण जिन मन्दिरोंको नमस्कार होओ। वे च मृत्रितेषु सौधर्मादिषु कल्पेषु कल्पावतेषु च वैमानिका देवाः।
SR No.090499
Book TitleTattvarthshlokavartikalankar Part 5
Original Sutra AuthorVidyanandacharya
AuthorVardhaman Parshwanath Shastri
PublisherVardhaman Parshwanath Shastri
Publication Year1964
Total Pages702
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size22 MB
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