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________________ ६०२ तत्वार्थ लोक वार्तिके इस सूत्र के अग्रिम सूत्रमें उनके भेदों को दिखाते हुये सूत्रकारने तीसरे स्थानपर अठारहवें " उपर्युपरि " इस सूत्ररूप वचन करके ही उक्त सिद्धान्तका निर्णय कर दिया है । divis कोई जिज्ञासु प्रश्न उठाता है कि यदि इस प्रकार वे वैमानिक देव ऊपर ऊपर व्यवस्थित हो रहे हैं तो बताओ कितने विमानों में वे वैमानिक देव हैं ? ऐसी जिज्ञासा होनेपर श्री उमास्वामी महा राज अग्रिमसूत्रको कहते हैं । सौधर्मैशानसानत्कुमार माहेंद्रब्रह्मलोकब्रह्मोत्तरलांतवकापिष्ठशुक्रमहाशुक्रशतारसहस्रारेष्वानतप्राणतयोरारणाच्युतयोर्नवसु ग्रैवेयकेषु विजयवैजयंतजयंतापराजितेषु सर्वार्थसिद्धौ च ॥ १९ ॥ सौधर्म एैशान, सानत्कुमार माहेन्द्र, ब्रह्म ब्रह्मोत्तर, लान्तत्र कापिष्ठ, शुक्र महाशुक्र, सतार सहस्रार, इन स्वर्गीमें और आनत, प्राणत, एवं आरण, अच्युत, स्वगमें कल्पोपपन्न वैमानिक देव निवास करते हैं । तथा नवमैवेयक और नौ अनुदिश विमानों में असंख्याते कल्पातीत वैमानिक देव निवस रहे हैं । अर्थात् — केवल सर्वार्थसिद्धि विमानमें द्विरूप वर्गधाराको पांचवीं कृतिके घनस्वरूप मनुष्य संख्या के त्रिचतुर्थ प्रमाण स्त्रियोंसे तिगुने या सतगुने सर्वार्थसिद्धिके देव मात्र संख्याते हैं । जघन्य संख्या कभी रह जाय तो मानव स्त्रियोंसे तिगुनी और उत्कृष्ट संख्या होजाय तो सतगुनी इम एक भवतारी देवोंकी गणना है । शेष सम्पूर्ण कल्प और कल्पातीतवर्त्ती संख्यातविमानों में असंख्याते देव निवास कर रहे हैं । सुधर्मा नाम सभा सास्मिन्नस्तीति सौधर्मः कल्पः 44 तदस्मिन्नस्तीत्यण् " तत्कल्पसाहचर्यादिद्रापि सौधर्मः, ईशानो नामंद्रः स्वभावतः ईशानस्य निवासः कल्प ऐशानः “ तस्य निवास " इत्यण् तत्साहचर्यादिंद्रोप्यैशानः, सानत्कुमारो नार्मेंद्रः स्वभावतः तस्य निवासः कल्पः सानत्कुमारः तत्साहचर्यादिंद्रोपि सानत्कुमारः. महेंद्री नार्मेंद्र: स्वभावतः तस्य निवासः कल्पो माहेंद्रः तत्साहचर्यादिँद्रोपि महेंद्रः, ब्रह्मनार्मेंद्रः तस्य लोको ब्रह्मलोकः कल्पो ब्रह्मोतरथलांतवादयोच्युतांता इन्द्रास्तत्साहचर्यात् कल्पा अपि लवादयः, इन्द्रलोकपुरुषस्य ग्रीवास्थानीयत्वाद्ग्रीवाः ग्रीवासु भवानि ग्रैवेयकाणि विमानानि तत्साहचर्यादिद्रा अपि प्रैयकाः, विजयादीनि विमानानि परमाभ्युदयविजयादन्वर्थसंज्ञानि तत्साहचर्यादिंद्रा अपि विजयादिनामानः सर्वार्थानां सिद्धेः सर्वार्थसिद्धिविमानं तत्साहचर्यादिद्रोपि सर्वार्थसिद्धः ।
SR No.090499
Book TitleTattvarthshlokavartikalankar Part 5
Original Sutra AuthorVidyanandacharya
AuthorVardhaman Parshwanath Shastri
PublisherVardhaman Parshwanath Shastri
Publication Year1964
Total Pages702
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size22 MB
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