________________
तत्वार्य लोकवातिक
Annanimal
कालस्तु नैकद्रव्यं तस्यासंख्येयगुणद्रव्यपरिणामत्वात् । एकैकस्मिल्लोकाकाशपदेशे कालाणोरेकैकस्य द्रव्यस्यानंतपर्यायस्यानभ्युपगमे तद्देशवर्तिद्रव्यस्यानंतस्य परमाण्वादेरनंतपरिणामानुपपत्तेरिति द्रव्यतो भावतो वा विभागत्वे साध्ये कालस्य न सिद्धसाधनं । नापि गगनादिनानैकांतिको हेतुः।
___किन्तु कालपदार्थ तो एक पदार्थ नहीं है । क्योंकि वह काल अनन्त गुण और अनन्त पर्यायोंके साथ तदात्मक होरहा संता असंख्यात द्रव्यस्वरूप है । अर्थात्-एक एक जीव द्रव्यके समान एक एक कालाणुमें वर्तनाहेतुत्व, अस्तित्व, वस्तुत्व आदि अनेक नित्यशक्ति स्वरूप गुण विद्यमान हैं। और उन गुणोंकी प्रतिक्षण होनेवाली पर्यायें अथवा पर्यायोंमें पाये जारहे अनन्तानन्त या असंख्यात अविभागप्रतिच्छेदस्वरूप परिणाम विद्यमान हैं। वे कालाणुयें द्रव्यरूपसे असंख्यात माने गये हैं। जगच्छ्रेणी के घन प्रमाण लोकाकाशके एक एक प्रदेशपर एक एक द्रव्य होकर कालाणुयें अवस्थित हैं । यों कालाणु द्रव्य असंख्याते हैं । एक एक कालाणु द्रव्यकी १ अनुजीवी २ अतिजीवी ३ पर्याय शक्ति ४ सप्तभंगी विषय इन चार प्रकारके गुणोंकी जातियों अनुसार अनन्तानन्त सहभावी पर्यायें हैं। तथा लोकाकाशके एक एक प्रदेशपर उस कालाणुको निमित्त पाकर अनन्तानन्त कार्य हो रहे हैं। उन कार्यों के अनुरूप अनन्तस्वभावरूप पर्यायें कालाणुमें एक समयमें विद्यमान हैं । एक समयमें एक गुणकी उत्पाद, व्यय, ध्रौव्यशालिनी परिणति अवश्य होती है । यो अनन्तानन्त गुणोंकी अनन्ता. नन्त परिणतियां कालाणुमें एक समय पायी जाती हैं । यदि लोकाकाशके एक प्रदेशपर अनन्तानन्त पर्यायों ( स्वभावों ) वाले एक एक कालाणु द्रव्यको स्वीकार नहीं किया जायगा तो उस आकाश देशमें वर्त रहे अनन्त परमाणु या अनंत जीवद्रव्य अथवा अन्य भी धर्म आदि द्रव्योंके हो रहे अनन्त परिणामोंकी सिद्धि नहीं हो सकेगी। क्योंकि सभी द्रव्य परिणामी माने गये हैं। कोई द्रव्य कूटस्थ नहीं है । मावार्थ-सम्पूर्ण द्रव्योंका और स्वयंका वर्तयिता काल द्रव्य है । न्यारे न्यारे काल द्रव्य तो लोकाकाशके एक एक प्रदेशपर विद्यमान हो रहे अनन्तद्रव्योंके भिन्न भिन्न परिणामोंके वर्तयिता हो सकते हैं । आकाशके समान यदि अकेला कालव्य मान लिया जायगा तो सर्व द्रव्योंका एक ही जातिका कार्य तो हो जायगा, जैसे कि अकेले आकाश द्रव्यसे भंगी, ब्राह्मण, नारकी, मुक्त, दरिद्र, राजा, रोगी, निरोग, पापी, पुण्यात्मा, जड, चेतन, धर्म, अधर्म, सब ऊंच नीचको कोरा अवकाश मिल जाता है । किन्तु अनेक काल द्रव्योंसे जो असंख्य कार्य एक समयमें होरहे प्रतीत होते हैं वे काल द्रव्यसे नहीं हो सकते हैं । देखिये, एक ही स्थलपर कोई जीव बुट्टा होरहा है, वहीं कोई युवा होरहा है, बालक भी वहीं खेल रहा है, जहां ही किसीके चोरीके परिणाम होरहे हैं वहां ही किसीका धर्मध्यान या शास्त्र चर्चामें मन लग रहा है। इन सब क्रियाओंको करानेमें कालद्रव्य निमिसकारण होरहा है। जिसी कालद्रव्यको निमित पाकर नित्य निगोदिया जीवकी व्यवहार राशिमें आने योग्य परिणति होजाती है वहीं बैठे हुये पंचेन्द्रिय जीवके इतरगति निगोदमें प्राप्त होजानेके सर्व कारण