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तत्त्वार्थचिन्तामणिः
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PATRA
राई या मरिष्टं विमानकी लम्बाई, चौड़ाई, इनसे बडी पूरा एक योजन है जिसकी परिधि तीन सही एक बटे छह योजन होजाती है। हां, मोटाई राहु विमानकी केवल बडे ढाईसौ धनुष प्रमाण है । काले राहु विमानों करके सूर्य, चन्द्रमाओंकी किरणोंका फैलना यानी उनके निमित्तसे अन्य पुद्गल पिण्डोंका चमक जाना रुक जाता है। यही ग्रहण पडनेका रहस्य है । भले ही ग्रहण दिन शुभकार्यों में ग्राह्य नहीं है, फिर भी सूतक, पातकका इससे कोई सम्बन्ध नहीं है । जो कि पौराणिक वैष्णव
पण्डितोंने मान रखा है।
___ ततो न चंद्रबिंबस्य सूर्यबिंबस्य वार्धग्रहोपरागो कुंठविषाणत्वदर्शनं विरुध्यते । नाप्यन्यदा तीक्ष्णविषाणत्वदर्शनं ब्याहन्यत राहुविमानस्यातिवृत्तस्य अर्धगोलकाकृतेः परभागेनोपरक्त समवृत्ते अर्धगोलकाकृतौ सूर्यबिंबे चंद्रबिम्बे तीक्ष्णविषाणतया प्रतीतिघटनात् । सूर्योचंद्रमसां राहूणां च गतिभेदात्तदुपरागभेदसंभवागहयुद्धादिवत् । यथैव हि ज्योतिर्गतिः सिद्धौं तथा ग्रहोपरोगादिः सिद्ध इति स्याद्वादिनां दर्शनं ।
तिस कारण चन्द्रबिम्ब अथवा सूर्यबिम्बका आधा ग्रहोपराग होना या मौथरे सींग समान दौखना, स्थूलनों कवाले, हैंतिया सारिखा दीखना, आदि विरुद्ध नहीं घटते हैं। तथा अन्य समयोंमें सू यो चन्द्रमाको तश्णि ( पैने ) विषाणपने करके दीखना भी व्यावात दोषवान् नहीं है। कारण कि राहुको विमान अत्यधिक रूपसे ठीक गोल है। चपटे आधे गोले की आकृतिबाले राहुविमानके परभाग करके उपरागको प्राप्त होरहे चारों ओर समान गोल और नीचे अर्धगोल आकृतिवाले सूर्यबिंब यों चन्द्रबिम्बमें तीक्ष्ण सींगके स्वरूप करके प्रतीति होना घटित होजाता है। गोल रुपयेपर कुछ हटाकर दूसरा गोल रुपया धर दिया जाय तो ऐसी दशामें नीच रुपयेफा भाग 4ना सींगवाला दीख जायगा। कोई विरोध नहीं भाता है। चमकदार पदार्थोकी कान्ति या आवरण पडना संध्यारागके समान अनेक ढंगसे होजाता हैं। सूर्य और चन्द्रमा तथा नीचे वर्त रहे राहु विमानों की गतिका भेद होजानेसे उन उनके उपरागोंमें भेद होना सम्भव जाता है जैसे कि केतु, मंगल आदि ग्रहों के युद्ध, संक्रमण आदि उनकी विशेष गतिओं अनुसार होजाते हैं। चूंकि जिस ही प्रकार युक्तियों, द्वारा ज्योतिष्क विमानोंकी गति सिद्ध है, उसी प्रकार ग्रहों द्वारा होरहे उपतग आदि भी प्रसिद्ध है। यो स्यांदादियोंको दार्शनिक सिद्धान्त है । जोकि त्रिलोक त्रिकालदर्शी सज्ञ आत द्वारा प्रतिपादित होरहा अबाधित है। अतएव विचारशीलोंको उसपर अटल श्रदान करना चाहिये।
न च सूर्यादिविमानस्य राहुविमाननोपरांगोऽसंभाव्यः, स्फटिकस्येव स्वच्छस्य सेनासितेनौपरोगघटनात् । स्वच्छत्वं पुनः सूर्यादिविमानानां मणिमयत्वात् । सप्ततपनीयसमप्रभाणि लहिताक्षमणिमयानि सूर्यविमानानि, विमलमृणालवर्णानि चंद्रविमानानि अंकमणिमयानि अजनसयममाणि राहुषिमानानि भरिएमणिमयानीति परमानमसद्भावात् ।