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________________ - 8 . तत्वार्यकोलातिक णोंसे रहित है । अर्थाब-प्रण के समय नीचे राहु या बरिष्टका विमान आ जानेसे सूर्य और चन्द्रमाकी कान्ति दब जाती है। त्रिलोकसारमें कहां है । “रादुअरिद्वविमाणधयादुवरि पमाण अंगुल चउक्क । गन्तूण ससि विमाणा सूरविमाणा कमे होन्ति " राहु और अरिष्ट विमानकी ध्वजाके उपर बडे चार अंगुल प्रमाण ऊपर चलकर क्रमसे चन्द्र विमान और सूर्य विमान भ्रमण करते हैं । ढाई द्वीपमें कभी कभी बारह महिनेमें राहुके विमान सूर्यके ठीक नीचे भी आ जाते हैं। हां, अन्य समयों में अगल, बगल, कुछ दूर ही रहते हैं । शेष ढाई द्वीपके बाहर असंख्यात द्वीप समुद्र सम्बन्धी राहु विमान तो असंख्यात सूर्यचन्द्रमाओंके ठीक नीचे न रहकर कुछ इधर उधर विराज रहे हैं । यहां भी चन्द्रमाके नीचे राहुविमान केवल पूर्णिमाको छोडकर सदा कमती बढती बना रहता है। चन्द. ग्रहणके अवसरपर पूर्णिमाको भी नीचे आ जाता है। न हि राहुविमानानि सूर्यादिविमानेभ्योल्पानि श्रूयते । अष्टचत्वारिंशयोजनकषष्ठिभा. गविष्कंभायामानि तत्रिगुणसातिरेकपरिधीनि चतुर्विशतियोजनैकषष्टिभागबाहुल्यानि सूर्यविमानानि, तथा षट्पंचाशयोजनै कषष्ठिभागविष्कंभायामानि तत्रिगुणसातिरेकपरिधीन्यष्टाविंशतियोजनकषष्टिभागबाहुल्यानि चन्द्रविमानानि, तथैकयोजनविष्कंभायामानि सातिरेकयोजन जयपरिधीन्यतृतीयधनु शतबाहुल्यानि राहुविमानानीति श्रुतेः। राहु या अरिष्टक अनेक विमान तो सूर्य चन्द्रमा आदि विमानोंसे छोटे हैं, यो शानद्वारा प्रतीत. नहीं होते हैं । यानी सूर्य आदिके विमानोंसे राहु विमान बडे हैं । अनेक अन्तरित पदार्थोंमें आगम प्रमाणका ही साम्राज्य है। सर्वत्र युक्तियों के प्रदर्शनकी टेव रखना प्रशस्त नहीं है। प्रकरणमे यह कहना है कि एक योजनके इकसठि भागोंमें अडतालीस भागप्रमाण लम्बे, चौडे, और उस चौडाईसे कुछ अधिक तिगुनी परिधिवाले तथा चौडाईसे आधी चौबीस बटे इकसठि योजन मोटाईवाले असंख्याते सूर्य विमान हैं । तिस ही प्रकार छप्पन बटे इकसठि योजन चौडाई, लम्बाईवाले अर्द्ध गोल और उसके कुछ अधिक तिगुनी परिधिवाले तथा अट्ठाईस बटे इकसठि बडे योजनप्रमाण मोटाईको धार रहे असंख्यात, चन्द्र विमान हैं । तथा इनके नीचे कुछ आगे पीछे वर्त रहे पूरे बडे एक योजनकी लम्बाई चौडाईको धार रहे और कुछ अधिक तीन मोजन परिविवाले तथा ढाई सौ बडे धनुष प्रमाण मोटाईको धार रहे राहुविमान हैं । इस प्रकार लोकानुयोग शास्त्रोंद्वारा सुना जा रहा है । अर्थात्सूर्यका विमान बडे योजनोंसे अडतालीस बटे इकसठि योजन लम्बा चौडा और इससे आधा मोटा आधे लड्डू के समान गोल है । नीचेकी ओर गोलाई है। और ऊपरली ओर सपाट तलपर अनेक देवोंके महल बने हुये हैं । उन सबका अधिष्ठाता एक सूर्य देव ( प्रतीन्द्र.) है । इस सूर्य विमानकी परोिध एकसौ इक्यावन बटे इकसठि बड़े योजनकी है । और चन्दमाका विमान 'छप्पन बटे इकसठि योजन ठीक आ मोदकके समान है । इसकी परिधि एकसौ सतहत्तरि बटे इकठि योजन जान लेनी चाहिये।
SR No.090499
Book TitleTattvarthshlokavartikalankar Part 5
Original Sutra AuthorVidyanandacharya
AuthorVardhaman Parshwanath Shastri
PublisherVardhaman Parshwanath Shastri
Publication Year1964
Total Pages702
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size22 MB
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