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________________ ५७४ तत्वार्यलोकवार्तिक लल्लाचार्य, आदि भारतवर्षीय विद्वान् भी पृथिवीसे सूर्यको बडा मान बैठे हैं । ऐसी दशामें भूगोलकी छायासे सर्वांग सूर्यग्रहण नहीं हो सकेगा। एतेन चंद्रछायया सूर्यस्य ग्रहणमपास्तं चंद्रमसोपि ततोल्पत्वात् । क्षितिगोलचतुर्गुणछायावृद्धिघटनाच्चंद्रगोलवृद्धिगुणछायावृद्धिघटनाद्वा ततः सर्वग्रासे ग्रहणमविरुद्धमेवेति चेत् कुतस्तत्र तथा तच्छायावृद्धिः । सूर्यस्यातिदूरत्वादिति चेन्न, समतलभूमावपि तत एव छायावृद्धिप्रसंगात् । ___ चन्द्रकी छाया करके सूर्यका ग्रहण पडना भी इस कथन करके खण्डित कर दिया गया है। क्योंकि उस सूर्यसे चन्द्रमाका भी परिमाण अल्प माना गया है। अल्प परिमाणवाले पदार्थसे बडी परिमाणवाली वस्तुका एक अंश भले ही ढक जाय, किन्तु परिपूर्ण ग्रास कथमपि नहीं हो सकता है । भावार्थ-आर्यभट्टकृत श्लोक है कि " छादयति शशी सूर्य शशिनं च न महती भूछाया" ग्रहण के अवसरपर चन्द्रमा सूर्यको और बडी पृथिवीकी छाया चन्द्रमाको ढक लेती है । सूर्य सिद्धान्तमें भी कहा है कि " छादको भास्करस्येन्दुरधःस्थो घनवद्भवेत् , भूच्छायां प्राङ्मुखश्चन्द्रो विशत्यस्य भवेदसौ " बृहत्संहितामें " भूच्छायां स्वग्रहणे भास्करमर्कप्रहे, प्रविशतीन्दुः प्रग्रहणे मतः पश्चानेन्दो नोश्च पूर्वाधीत् " भास्कराचार्यने सिद्धान्तशिरोमणि गोलाध्यायमें कहा है कि " पूर्वाभिमुखो गच्छन् कुच्छायानन्तर्यतः शशी विशति, तेन प्राक् प्रग्रहणं पश्चात् मोक्षोऽस्य निस्सरतः " " भूमिविधु विधु दिनं ग्रहणोऽपि धत्ते " इत्यादिक मन्तव्य उचित नहीं है। यहां कोई भूगोलवादी कहते हैं कि दूर होनेपर छोटे पदार्थसे भी बड़ा पदार्थ ढक जाता है। आंखोंसे एक गज दूरपर एक छोटी सी किताबके आडे आ जानेसे पांच सौ गज दूर वर्ती सैकडों गज लम्बा चौडा पदार्थ भी ढक कर ओझिल हो जाता है । दूरपर पदार्थो की छाया भी बढ़ जाती है । तदनुसार भूगोलसे चौगुनी छायाकी वृद्धि घटित हो जाती है । अथवा चन्द्रगोलसे भी कई गुनी वृद्धिरूप छायाकी वृद्धि घटित हो जाती है। अतः उस बढी हुयी छाया अनुसार सूर्यका सर्वप्रास ग्रहण पड जाना विरुद्ध नहीं है। यों कहनेपर तो आचार्य कहते हैं कि वहां सूर्यमण्डल के निकट तिस प्रकार उस छाय की वृद्धि किस कारणसे बनेगी? बताओ । यदि तुम भूगोलवांदी यो कहो कि सूर्य अत्यन्त दूर है, इस कारण धतूरेके झल समान छाया उत्तरोत्तर बढती हुयी जा रही बन जाती है । आचार्य कहते हैं कि यह तो नहीं कहना । क्योंकि समतलमें भी तिस ही कारण यानी सूर्यके अति दूर होनेसे ही छायाकी वृद्धि होजानेका प्रसंग आजाता है। फिर तुमने छायाकी वृद्धिसे भूमिके गोल आकारको क्यों साधा था ? अर्थात्-भ्रमण करते हुये सूर्यके दूर देश या निकट देशमें वर्तनेपर छायाका बढना या घटना सध जाता है। ___ कथं च भूगोलादेरुपरि स्थिते सूर्ये तच्छायापाप्तिः प्रतीतिविरोधात् तदा छायाविरहप्रसिद्धेमध्यादैनवत् ततः तिर्यक् स्थिते सूर्ये तच्छायाप्राप्तिरिति चेन्न, गोलात्पूर्वदिक्षु स्थिते खौ पश्चिमदिगभिमुखजयोपपतेस्तत्माप्त्ययोगात् । सर्वदा तिर्यगेव सूर्यग्रहणसंप्रत्ययप्रसंगात् ।
SR No.090499
Book TitleTattvarthshlokavartikalankar Part 5
Original Sutra AuthorVidyanandacharya
AuthorVardhaman Parshwanath Shastri
PublisherVardhaman Parshwanath Shastri
Publication Year1964
Total Pages702
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size22 MB
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