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तत्वार्यश्लोकबार्तिक
तो उन ज्योतिष्क देवोंकी गति प्रदक्षिणारहित नहीं हो पाती है और कभी कभी होनेवाली गति भी इष्ट नहीं की गयी है तथा ज्योतिष्क विमानोंकी गतिका अभाव भी अनिष्ट है, जैसा कि ज्योतिष्फोंका गत्यभाव भू का भ्रमण कहनेवाले विद्वान् मान रहे हैं। क्योंकि पृथिवीका भ्रमणरहितपना युक्तियोंसे निर्णीत हो चुका है। अर्थात् -मेरुपदक्षिणा शब्दसे ज्योतिकों के प्रदक्षिणारहितपनकी व्यावृत्ति कर दी गयी है । गति होनेमें नित्यपना लगा देनेसे बहुत दिनोंतक स्थिर ठहरते हुये ज्योतिष्कोंके कभी कभी गति कर लेनेका व्यवच्छेद कर दिया है। पृथिवीका भ्रमण माननेवाले आर्यभट्ट या यूरप, अमेरिका, इटलीनिवासी कतिपय आधुनिक विद्वानोंने ज्योतिष चक्रको स्थिर मानकर सूर्य आदिमें गतिका अभाव इष्ट कर लिया है। ज्योतिष्फोंकी गतिका प्रतिपादन करते हुये सूत्रकारने ज्योतिष्चक्रके गत्यभाव
और पृथिवीके भ्रमणकी व्यावृत्ति कर दी है । क्योंकि उन विद्वानों के बूते भू का भ्रमण निर्णीत नहीं हो सका है। और ग्रन्थकारने तृतीय अध्यायमें पृथिवी के भ्रमणरहितपनका युक्तियोंसे निर्णय कर दिया है।
न हि प्रत्यक्षतो भूमेभ्रमणनिर्णीतिरस्ति, स्थिरतयैवानुभवात् । न चायं भ्रांतः सकलदेशकालपुरुषाणां तभ्रमणाप्रतीतेः । कस्यचिन्नावादिस्थिरत्वानुभवस्तु भ्रांतः परेषां तद्गमनानुभवेन बाधनात् ।
प्रत्यक्ष प्रमाणोंते इस अचला भूमिके भ्रमणका निर्णय नहीं हो सकता है। क्योंकि स्पार्शन प्रत्यक्ष, चाक्षुष प्रत्यक्ष तथा स्थिर भूमिके होते सन्ते हो रही असम्भ्रान्ति (अव्याकुलता) को धारनेवाले मनसे दुये प्रत्यक्षप्रमाणों करके भूमिका स्थिरस्वरूप करके ही अनुभव हो रहा है। यह अनुभव होना भ्रमज्ञान नहीं है। क्योंकि सम्पूर्ण देश और कालमें वर्त रहे पुरुषों को उस भूमिका भ्रमण प्रतीत नहीं होता है । देखो सीपमें हुआ चांदीका ज्ञान या मृगतृष्णामें हुआ जल का ज्ञान तथा शुक्लशंखमें पीतत्वका ज्ञान अबाधित नहीं है। अनेक देश कतिपयकाल और कई सम्वादी पुरुषोंकी अपेक्षा बाधा उत्पत्ति होजानेपर पूर्वज्ञान भ्रान्त माने जाते हैं । किन्तु सम्पूर्ण देश, सम्पूर्ण काल और सम्पूर्ण पुरुषोंकी अपेक्षा अबाधित होरहा पृथिबीकी स्थिरताका ज्ञान कथमपि भ्रान्त नहीं है । यदि भूभ्रमणवादी पण्डित यों कहें कि अनभ्यस्त किसी नगरके नीचे वहनेवाली नदियां या समुदमें नावके ऊपर किसीको भ्रमण करनेका अवसर मिल जाता है, उस मुग्धबुद्धि पुरुषको चलती हुयी नाव तो स्थिर प्रतीत होती है और नगर या समुद्रतट भ्रमण करते हुये दृष्टिगोचर होते रहते हैं। दिशाकी भ्रान्ति भी होजाती है। इसी प्रकार पृथिवीके भ्रमण होनेपर भी सूर्य आदिकी स्थिर दशामें हम स्थूल बुद्धि पुरुषोंको पृथिवीके स्थिरत्वका अनुभव हो जाता है, जो कि भ्रान्त ज्ञान है । ग्रन्थकार कहते हैं कि यो किसी किसी असंज्ञी सारिखे पेंगा पुरुषको चल रहे नाव, वायुमान, रेलगाडी आदिके स्थिरपनका हो रहा अनुभव तो भ्रान्त है । क्योंकि दूसरे विचारशील पुरुषों को उन नाव आदिके गमनके हो रहे अनुभव करके उस अनुभषकी बाधा कर दी जाती है। किन्तु पृथिवीकी स्थिरता तो सम्पूर्ण देश, सम्पूर्ण कार