________________
तत्त्वार्यश्लोकवार्तिके
भवनों में निवास करनेके शीलको धारनेवाले देव भवनवासी हैं । वे ९ असुरकुमार. २ नागकुमार ३ विद्युत्कुमार ४ सुपर्णकुमार ५ अग्निकुमार ६ वातकुमार ७ स्तनितकुमार ८ उदधिकुमार ९ द्वीपकुमार १० दिक्कुमार इन दश विशेषसंज्ञाओं को धार रहे हैं ।
५३६
भवनवासिनामकर्मोदये सति भवनेषु वसनशीला भवनवासिन इति सामान्यसंज्ञा प्रथमनिकाये देवानां । असुरादिनामकर्मविशेषोदयादसुरकुमारादय इति विशेषसंज्ञा । कुमारशब्दस्य प्रत्येकभभिसंबंधात् तेषां कौमारवयोविशेषविक्रियादियोगः ।
1
गति संज्ञक नामकर्मकी उत्तरोत्तर प्रकृति हो रहे भवनवासी नामक नामकर्मका उदय होते सन्ते, भवनों में निवास करनेकी ठेववाले, देव भवनवासी हैं। इस प्रकार पहिले निकाय में यह देवों की अखिल विशेषोंमें घटित हो रही सामान्य संज्ञा है । हां, उस भवनवासी नामकर्मके भी उत्तर भेद स्वरूप असुर, नाग, आदि विशेष नामकर्मोंका उदय हो जानेसे असुरकुमार, नागकुमार, आदिक विशेष संज्ञायें प्रत्रर्त जाती हैं। " द्वन्द्वादौ द्वन्द्वांते च श्रूयमाणं पदं प्रत्येकमभिसम्बध्यते " इस नियम अनुसार अन्तके कुमार शङ्खका प्रत्येक असुर आदिमें पीछे सम्बन्ध जुड जाता है । उन भवनवासी देवोंके कुमार अवस्थामें हो रहे सारिखे आयुष्यविशेष, विक्रिया करना, वेष भूषा, आयुध, क्रीडन, यान, वाहन, आभरण, आदिसे अत्यधिक प्रीति होनेका योग है, इस कारण उनको कुमार कह दिया जाता है । भावार्थ — लोकमें भी कई बालकोंका अजितकुमार, भानुकुमार आदि नामनिर्देश कर लिया जाता है । किन्तु वृद्ध अवस्थामें ये नाम शाद्विकों के यहां उसी प्रकार खटकते हैं, जैसे कि वृद्ध विवाह आक्षेप करने योग्य है । नाम परिवर्तन के लिये देवोंमें उतनी आवश्यकता नहीं उपजती है । जितनी कि बुड्ढे अजितकुमार आदि मनुष्योंमें है । किन्तु क्या किया जाय ! नामपरिवर्तन करना अभीष्ट नहीं है। यद्यपि सम्पूर्ण देवोंके जन्मसे अन्तर्मुहूर्त के पीछे और मरनेके छह मास पूर्वतक भरपूर युवा अवस्था नियत रहती है, फिर भी कुमारों के समुचित विक्रिया, वेष, क्रीडापरता आदिमें अत्यधिक प्रेमभाव होने के कारण इनको कुमार शब्दसे कह दिया जाता है ।
केचिदाहुः देवैः सहास्यंतीति असुरा इति, तदयुक्तं, तेषामेवमवर्णवादात् । सौधर्मादिदेवानां महाप्रभावत्वादसुरैः सह युद्धायोगात् तेषां तत्प्रातिकूल्येनावृत्तेर्वैरैकारणस्य च परदारापहारादेरभावात् ।
कोई कोई पौराणिक पण्डित ऐसा कह रहे हैं कि "देवैः सह अस्यन्तीति असुराः " अदिति के पुत्र आदित्य देवोंके साथ दितिके पुत्र दैत्य यानी असुर सदा लडते रहते हैं । देवों के साथ युद्ध में प्रहरण आदिकों को क्षेपते हैं अथवा लडाईमें मारकर देवोंको नदी आदिमें फेंक देते हैं, इस कारण असुर हैं। ग्रन्थकार कहते हैं कि यह उन स्मृतिकारोंका कथन युक्तिशून्य है। इस प्रकार कहने पर अवर्णवाद यानी झुंठा दोष लग बैस्ता है। देखो, चौथी
क्योंकि उन देवोंके ऊपर निकायके सौधर्म आदिक