________________
तत्त्वार्थचिन्तामणिः
प्रवीचार आदिकी दूसरे प्रकारोंसे कल्पनायें गढी जारही हैं और किन्हीं किन्हीं पण्डितोंके यहां देवोंकी निकाय, लेश्या, भेद, प्रभेद, आदिका जो संशय होरहा है, यहां चतुर्थ अध्यायकी आदिमें इस प्रकार नौ सूत्रों करके श्री उमास्वामी महाराजने उन सब कल्पनाओं या संशयोंका निराकरण कर दिया है। अर्थात्-उक्त नौ सूत्रों के प्रमेयमें अव्याप्ति, अतिव्याप्ति दोष नहीं हैं।
प्रथमेन सूत्रेण तावत्केषांचिनिकायांतरस्य कल्पना तत्संदेहः चात्र निराकृतिः। द्वितीयेन लेश्यांतरस्य, तृतीयेन संख्यांतरस्य, चतुर्थेन कल्पांतरस्य, पंचमेन तदपवादातरस्य, षष्ठेनेंद्रसंख्यांतरस्य, सप्तमेनाष्टमेन चानिष्टमवीचारस्य, नवमेन सर्वप्रवीचारस्येति नवभिः सूत्रैनिकायाधंतरकल्पनसंशयनिराकृतिः प्रत्येतव्या।
उक्त वार्तिकका विवरण यों है कि यहां चौथे अध्यायमें सबसे आदिके पहिले सूत्र करके तो किन्हीं किन्हीं पुराणकारोंके यहां मानी गयीं देवोंकी दूसरी निकायोंकी कल्पना और दूसरे ढंगकी उन निकायोंका जो सन्देह हो रहा है उसका निराकरण कर दिया गया है । " आदितस्त्रिषु पीतान्तलेश्याः " इस दूसरे सूत्रकरके भवनत्रिक देवोंमें अन्य पद्म, शुक्ल, लेश्याओंकी निराकृति कर दी गयी है । तथा " दशाष्टपंचद्वादशविकल्पाः कल्पोपपन्नपर्यन्ताः " इस सूत्र करके तो नियत हो रही दश, आठ, पांच, बारह, संख्याओंसे अतिरिक्त संख्याओंकी व्यावृत्ति कर दी गयी है । चौथे " इन्द्र सामानिक " आदि सूत्रकरके दश विध कल्पनाके सिवाय अन्यविकल्पोंका निराकरण कर दिया है। पांचवें " त्रायस्त्रिंश" आदि सूत्र करके उन दश विकल्पोंके दो निकायोंमें हो रहे अपवादके सिवाय अन्य अपवादोंका निरास कर दिया गया है। छठे " पूर्वयोर्दीन्द्राः ” सूत्र करके इन्द्रोंकी उक्त संख्याके अतिरिक्त संख्याओंका वारण कर दिया है । सातवें, आठवें, " कायप्रवीचारा आऐशानात् " और " शेषाः स्पर्शरूपशद्वमनःप्रवीचाराः " सूत्रों करके अनिष्ट प्रवीचारोंका प्रत्याख्यान किया गया है। नौवें “ परेऽप्रवीचाराः " सूत्र करके सब कल्पातीत देवोंके प्रवीचारसहितपनका व्यवच्छेद किया गया है । इस प्रकार नौ सूत्रों करके अन्य निकाय आदिकी असभ्दूत या सदसन्दूत उभयकोटिस्पर्शी संशयकी निराकृति हो रही समझ लेनी चाहिये । उक्त सूत्रोंके नौ वाक्य सावधारण हैं । कण्ठोक्त कहो चाहे न कहो, वाक्यमें विना बुलाये ही एवकार द्वारा अवधारण लग बैठता है। " वाक्येऽवधारणं तावदनिष्टार्थनिवृत्तये "।
__ आदिनिकायसम्बन्धी जो दश विकल्पवाले देव कहे जाचुके हैं, उन देवोंकी सामान्य संज्ञा और विशेष संज्ञाका विज्ञापन करनेके लिये श्री उमास्वामी महाराज अग्रिम सूत्रको कहते हैं ।
भवनवासिनोऽसुरनागविद्युत्सुपर्णाग्निवातस्तनितो
दधिद्वीपदिक्कुमाराः ॥१०॥