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तत्वार्थ लोकवार्तिके
रुग्ण, क्षीण, शरीरधारी श्रृंगार रसिक पुरुषकी अपेक्षा वीर, योद्धा, मल्ल, प्रतिमल्ल पुरुषों के शरीर दृढ, पुष्ट, बलिष्ठ, लम्बे चौडे, सुडौल होते हैं । निकृष्ट वेश्याओंके काममय घृणित शरीरोंसे ब्रह्मचारिणी या स्वदेशरक्षणतत्परा लज्जालु स्त्रियोंके शरीर उन्नत देखे जाते हैं। कहांतक कहें, सम्पूर्ण कामवासना सम्बन्धी पापोंका प्रकर्षरूपसे नाश कर देनेवाले या ज्ञानावरण, दर्शनावरण, मोहनीय
और अन्तराय इन सम्पूर्ण धातिया कर्नाका प्रक्षय कर चुके श्री जिनन्द्र देवोंका भी शरीर सहितपना प्रमाणोंसे साधा जा चुका है । जब कि वेदकर्मका या धातियाकर्मीका प्रक्षय कर चुके शरीरधारी. जिनेन्द्र भगवान्के अनन्त बलशाली, सर्वांग सुन्दर, लम्बा चौडा सुडौल, पवित्र, परम औदारिक शरीर है, तो शरीरधारपिन हेतुकी कामवेदनासहितपन साध्य के साथ व्याप्ति नहीं बन पाती है। हां, कामवेदनाकी त्रुटि होते होते साथमें यदि शरीरकी भी त्रुटि होती जाती तो शरीरधारी देवोंका या तीर्थकरोंका भी कामपीडितपना साधनेमें सहायता मिल सकती थी । किन्तु यहां तो इसके विपरीत प्रस्ताव उपस्थित होगया, अतः पौराणिकोंका हेतु व्यभिचार दोषग्रसित है।
एतेन कामित्वे साध्ये सत्त्वप्रयेयत्वादयोपि हेतवः संदिग्धविपक्षव्यावृत्तिका इति प्रतिपादितं ततः संभाव्या एव केचिद्मवीचाराः। ___इस इक्त कथन करके इस बातका भी ग्रन्थकारने प्रतिपादन कर दिया है कि कल्पातीत देवोंमें कामीपना साध्य करनेपर कहे जाने योग्य सत्त्व, प्रमेयत्व, जीवत्व, चेतनत्व आदिक हेतुओंकी भी विपक्षसे व्यावृत्ति होना संदिग्ध है । क्योंकि कामसेवी जीवों के समान मन्दकामी या सर्वथा प्रविचार रहित जीवोंमें भी सत्व आदिक हेतु पाये जाते हैं । जब कि व्यभिचारीपुरुष भी कभी कभी तीव्र रोग, गाढ सुषुप्ति, आदि अवस्थाओंमें कामपीडासे वर्जित हैं तो मल्ल, जितेन्द्रिय साधु, महामना त्यागी, क्षीणकषाय आदि जीवोंके विषयमें तो कहना ही क्या है ? विपक्षमें हेतु के ठहर जानेका निश्चय नहीं भी होय, किन्तु विपक्षमें वर्तनेका पौराणिकोंको भी सन्देह होजायगा। अतः शरीरधारीपन या सत्त्व आदिक हेतु उस कामपीडितपनको साधनेमें संदिग्ध व्यभिचार हेत्वाभास दोषग्रस्त हैं। तिस कारणसे कोई देव यानी कल्पातीत देव या लौकांतिक देव बिचारे प्रवीचारसे रहित होरहे सम्भवने योग्य ही हैं, जैसा कि उक्त वार्तिकोंमें कहा गया है ।
इत्येवं नवभिः सूत्रैः निकायाद्यतरस्य या। कल्पना संशयश्चात्र केषांचिचनिराकृतिः ॥ ३॥
किन्ही किन्ही अजैन विद्वानोंके यहां चार निकायोंके अतिरिक्त दूसरे दूसरे ढंगसे देवोंकी दोही तीन ही अथवा पांच आदिक ही निकाय मानी गयीं हैं । लेश्या या देवोंके अन्तर्गत भेद, इन्द्रष्यवस्था,