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तत्त्वार्थचिन्तामणिः
अभिसम्बन्ध होजानेसे विपरीत अर्थ होजानेका प्रसंग होजाता है । ऐशानके पूर्वमें तो कोई निकाय नहीं है । ऐशान स्वयं एक चौथी वैमानिक निकायके व्याप्य माने गये कल्पोपपन्नका व्याप्य होरहा है, तथा ऐशानमें भी तो कायप्रवीचार व्यवस्थित रखना है । हां, सन्धिको नहीं कर सूत्र कथन करनेपर तो यह कोई दोष नहीं आता है। आको उडा देनेपर अनिष्ट होजानेका संशय है। क्योंकि पूर्वयोः का अधिकार चला आरहा है । अतः कथममि सन्देह नहीं होय इसलिये सूत्रकारने " आ ऐशनात् ।' ऐसा संधिरहित सूत्रनिर्देश कर दिया है । कुछ संक्लेश उत्पादक कर्मीका विपाक सेनेसे ये विचारे देव मनुष्योंके समान स्त्रीसम्बन्धी विषयसुखोंका अनुभव करते हैं। यही वहांकी देवियों की व्यवस्था है ।
देवाः कायप्रवीचारा आ ऐशानादितीरणात् ।
चतुर्वपि निकायेषु सुखभेदस्य सूचनं ॥१॥ __ भवनवासी देवोंसे प्रारम्भ कर ईशान स्वर्गवासी देवोंतक काय द्वारा भैथुनप्रवृत्ति करनेवाले देव हैं, इस प्रकार श्री उमास्वामी महाराज करके इस सूत्र द्वारा कथन करनेसे चारों भी निकायोंमें सुख विशेषकी सूचना कर दी गयी है । अर्थात्-देवोंके पंचेन्द्रिय सम्बन्धी भोगोंकी पुष्कल सामग्री विद्यमान है । स्पर्शन इन्द्रियजन्य पुष्पशय्यान्वित कोमलवस्त्रोंपर विलोडन, सुन्दर वस्त्र आभूषणोंका परिवंग, कल्पवृक्ष या कल्पलताओंके सुकोमल पुष्प, पत्र, प्रवाल आदिका स्पर्शन, चेतोहर सदा युवति देवांगनाओंका माहेन्द्र स्वर्गतक आलिंगनार्थ सोत्साह उपसर्पण, इत्यादिक स्पर्शन इन्द्रिय सम्बन्धी भोग उपभोग वहां परिपूर्ण हैं । देवोंके मानसिक आहार है। मनुष्य या पशु, पक्षियों के समान कवला. हारको वे नहीं करते हैं । अतीव मन्द क्षुधावेदनीय कर्मके उदय या उदीरणा होनेपर उसी समय देवोंके कण्ठसे परमदिव्य शक्तिधारी अनेकरसपूर्ण अमृतमय रसीला लारसारिखा पदार्थ झरता है, जो कि महती तृप्तिका सम्पादक है। सूक्ष्मपर्यालोचना करने पर प्रतीत होजाता है कि मनुष्य या पशु भी कवलाहार द्वारा जो षट्रस युक्त पदार्थो का स्वाद लेते हैं, उस आनन्द प्राप्तिमें भी स्वकीय, मुखसे निकली हुई लारको विशेष सहायक मानना चाहिये । यद्यपि पौद्गलिक भोज्य पदायोमें रसपरिणति विद्यमान है। किन्तु भिन्न भिन्न प्रकृति के जीवों की न्यारे न्यारे भोज्य पदार्थोसे उत्पन्न हुई लारकी बोछारें ही स्वादजन्य सुखविशेषोंको उपजानेमें प्रेरक निमित्त हैं । क्षुधापीडित दो महीने के बच्चे के मुखमें अंगुली या स्वङकी स्तनी मुखमें दे देनेपर उसी · समय उसके मुखसे लारके फुब्बारे छूटते हैं । और कुछ देरतक बच्चे को तृप्ति हो जाती है। तीर्थकरके जन्मकालमें देवों द्वारा भगवान् के अंगूठेमें अमृतका स्थापन करना इसी रहस्यको घनित करता है । भैंस गायके मुखमें लार मिल जानेपर घास या भुस विशेष सुस्वाद हो जाते हैं । ऊंट के मुखमें नविके पत्ते, उन राजाओं के षट्रसपूर्ण व्यंजनोंसे कहीं अधिक आनंदको उत्पादक हैं । गेंडुआके मुखमें मिट्ठीके साथ उसकी लारके मिल जानेपर वह कौर बहुत सुस्वादु हो जाता है । उपवास या एकासन व्रतकी अवस्थामें . कदाचित