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तत्वार्थचिन्तामणिः
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अन्तिम उपाय स्वार्थिक अण् प्रत्ययका समझ लिया जाय । ये सभामें बैठनेवाले देव उस इन्द्रकेसम - वयस्क मित्र ( हम उमर ) या पीठमर्द यानी सन्धिको करनेवाले संधानकारीपुरुष आदि सारिखे देव हैं, तथा आत्माकी ( इन्द्रकी ) रक्षा करते हैं, इस कारण वे देव आत्मरक्ष हैं । जैसे कि वर्तमानमें राजा महाराजाओंके शरीररक्षक या मस्तक ( बौडी गार्ड ) होते हैं उन्हीं के समान ये हैं । यद्यपि इन्द्रोंका कोई शत्रु नहीं है, उनकी आयु मध्यमें छिन्न भी नहीं होसकती है । तीव्र पुण्य होनेसे उनपर कोई अकस्मात् आक्रमण भी नहीं करता है । फिर भी विभूतियों या ऋद्धियोंकी विशेषतया जो स्थापना होरही है, उस वस्तुस्थितिका निरूपण कर देना ही आचार्य महाराजका लक्ष्य है। इन सब परिकरोंके होनेसे प्रभुके प्रकर्ष रूपसे सदा प्रीति उपजती रहती है । आत्मगौरव झलझलाता रहता है एक धनपति ( सेठ) या महीपति ( रईस ) के बीस, पचास आदि सवारियां रहती हैं । यद्यपि उन सबका उपयोग नहीं होता है। किसी किसीका तो जन्मपर्यन्त भी उपभोग भी सांसारिक सुखोंकी उत्पादक विशिष्ट पुण्यानुसारिणी सामग्री जो प्राप्त हुई है, नहीं जा सकती है । अतः शिरोरक्षकोंके समान वे आत्मरक्ष देव इन्द्रके पछि खडे रहनेवाले, रुद्र प्रवृत्तिक, शस्त्रास्त्रपरिवृत, शोभ रहे हैं ।
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नहीं हो सका है । फिर . वह टाली भी तो
लोकं पालयंतीति लोकपालास्ते चारक्षकार्थचरसमाः । अनीकानीवानीकानि तानि istथानीय गंधर्वानीकादीनि सप्त । प्रकीर्णा एव प्रकीर्णकाः ते पौरजानपदकल्पाः ।
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प्रजा समुदाय स्वरूप लोकको पालते रहते हैं, इस कारण वे देव लोकपाल कहे जाते हैं, अर्थचर या आरक्षक कर्मचारी जैसे आधुनिक राजाओंके होते हैं, उसी प्रकार इन्द्रोंके यहां भी ये ठाठ लग रहे हैं । अर्थात् — गांव आदिमें नियुक्त हो रहे आरक्षिक सिपाहियोंको तलवर कहते हैं । राजाओं भाग (तहसील) को गृहीत ( वसूल ) करनेवाले कार्यमें नियोगी हो रहे अध्यक्षों को अर्थचर कहते हैं, जो कि तहसीलदार, खजानची, कलक्टर, कमिश्नर आदि हैं । नगरके प्रबंध या रक्षा में नियुक्त हो रहा कोतवाल है । दुर्ग, किला आदिकी रक्षा करनेवाले महातलवर इत्यादिक अधिकारी लोकपाल माने गये हैं । प्रान्तोंके रक्षक चीफ कमिश्नर, लेक्टीनेण्ट गवर्नर भी इन हीं लोकपालों में गणनीय हैं । यद्यपि स्वर्गीमें तहसील प्राप्त करनेकी या गढकी रक्षा करने आदि की आवश्यकता नहीं है। I फिर भी प्रकृष्ट हर्षकी उत्पादक सामग्री विद्यमान है । तथा सेनाके समान अनीक जातिके वे देव अनीक कहे जाते हैं । प्रजारक्षण में विघ्न डालनेवाले परचक्रको दण्डनीति अनुसार दण्डव्यवस्था कर देनेवाला विभाग दण्ड है। ऐसे सेनाके स्थानपर नियुक्त हो रहे गंधर्वानीक १ हस्त्यनीक २ अश्वानीक ३ स्थानीक ४ पदात्यनीक ५ वृषभानीक ६ नर्तकी अनीक ७ इन सात प्रकारकी सेनाओंसे उपलक्षित सात जातिके अनीक देव हैं । जैसे यहां राजप्रासादोंके इधर उधर निकटवर्ती प्रदेशों में नगर निवासी नागरिक अथवा देशनिवासी या प्रान्तनिवासी महोदय सज्जन विराजते हैं, उन पौर या
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