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तत्वार्यश्लोकवार्तिके
दिया है । लक्षणके अतिव्याप्ति, अव्याप्ति और असम्भव दोषों तथा हेतुके व्यभिचार, विरुद्ध, आदि दोषोंसे रहित हो रहा इस सूत्रका प्रमेय निष्कलंक है।
अब उन चारों निकायोंके अन्तरंगमें प्राप्त हो रहे विकल्पोंकी प्रतिपत्ति करानेके लिये श्री उमास्वामी महाराज अग्रिम सूत्रको कहते हैं। दशाष्टपंचद्वादशविकल्पाः कल्पोपपन्नपयंताः॥३॥
दश, आठ, पांच, बारह ये विकल्प इन भवनवासी, व्यन्तर, ज्योतिष्क, और वैमानिक देवोंके हैं । किन्तु वैमानिकोंमें कल्पातीत देवोंको नहीं पकड कर षोडश स्वर्गवासी कल्पोपपन्न देवोंतक ही उक्त व्यवस्था समझ लेनी चाहिये।
देवाश्चतुर्णिकाया इत्यनुवर्तमानेनाभिसंबंधोस्य चतुर्णा निकायानामंतर्विकल्पप्रतिपादनार्थत्वात् न पुनरादितस्त्रिष्वित्यादीनां पीतांतलेश्यानां कल्पोपपन्नपर्यंतत्वाभावात् । तेन चतुर्णी देवनिकायानां दशादिभिः संख्याशब्दैर्यथासंख्यमभिसंबंधो विज्ञायते, तेन भवनवासिव्यंतरज्योतिष्कवैमानिका दशाष्टपंचद्वादशविकल्पा इति । वैमानिकानां द्वादशविकल्पांतःपातित्वे प्रसक्ते तव्यपाहनार्थ कल्पोपपन्नपर्यंतवचनं, ग्रैवेयकादीनां द्वादशविकल्पवैमानिकबहिर्भावातीतेः। एतदेवाभिधीयते ।
देव चार निकायवाले हैं, इस प्रकार अनुवृत्त किये जा रहे प्रथम सूत्रके साथ इस तृतीयसूत्रका चारों ओरसे सम्बन्ध हो रहा है । क्योंकि प्रन्थकारको चारों निकायोंके अन्तरंग हो रहे भेदोंकी शिष्योंको प्रतिपत्ति करा देना प्रयोजन अभीष्ट हो रहा है। किन्तु फिर इस तृतीयसूत्रका द्वितीय सूत्रके साथ सम्बन्ध नहीं हैं। क्योंकि आदिसे लेकर तीन निकायोंमें इत्यादि द्वितीय सूत्रवाक्यकरके कहे गये पीतपर्यन्त लेश्यावाले भवनत्रिक देवोंके कल्पोपपन्न पर्यन्तपनका अभाव है। चारों निकायके देव तो कल्पोपपन्नपर्यन्त कहे जा सकते हैं। तीन निकायके नहीं । तिस करके चारों देवनिकायोंका संख्यावाची दश, आठ, आदि संख्यावाचक शब्दोंके साथ यथासंख्य ठीक सम्बन्ध हो जाना जान लिया जाता है । तिस कारण इस सूत्रका अर्थ यो सुघटित हो जाता है कि भवनवासी देव दश प्रकारके हैं । व्यन्तरनिकायके देव आठ प्रकारके हैं । ज्योतिष्क देव पांच विकल्पोंको धार रहे हैं । और वैमानिक देवोंके अन्तरंग भेद बारह हैं । यहां सूत्रका उत्तरार्ध नहीं करनेपर सम्पूर्ण कल्पोपपन्न और कल्पातीत वैमानिकोंका बारह भेदोंके भीतर ही अन्तःप्रविष्ट हो जानेका प्रसंग प्राप्त हो जाता। उस अनिष्टप्रसंगका निराकरण करनेके लिये सूत्रकार कल्पोपपन्न पर्यन्त ऐसा वचन सूत्रके साथ लगाये देते हैं । क्योंकि प्रैवेयक आदि विमानवासी कल्पातीत देवोंका बारह भेदवाले कल्पोपपन्न वैमानिक