________________
तत्त्वार्थचिन्तामणिः
५०५
तीन निकायोंमें विराज रहे देव यथोचित पीतपर्यंत यानी कृष्ण, नील, कापोत, पीत, लेश्यावाले हैं । यहां प्रकरणमें संक्षेपसे कथन करनेपर तो देवाः इस शब्दका कथन करना नहीं पडा । क्योंकि पूर्वसूत्रसे " देवाः " पदकी अनुवृत्ति होजाती है और सूत्रकारको भवनवासी, व्यंतर, आदि निकायोंका भी कण्ठोक्त निरूपण नहीं करना पडा । क्योंकि तिस ही कारणसे यानी भवनकासी आदि निकार्योकी पूर्व सूत्रसे ही अनुवृत्ति होरही है।
कथमिह निकायेष्वित्यनुवर्तयितुं शक्यं, तेषामन्यपदार्थे वृत्तौ सामर्थ्याभावात् । चत्वारश्च ते निकायाश्चतुर्णिकाया इति स्वपदार्थायामपि वृत्तौ देवा इति सामानाधिकरण्यानुपपत्तिरिति चेन्न, उभयथापि दोषाभावात् । अन्यपदार्थायां वृत्तौ तावत्रिकायेष्विति शक्यमनुवर्तयितुं । त्रिष्विति वचनसामर्थ्यात् त्रित्वसंख्यायाश्च संख्येयैर्विना संभवाभावादन्येषामिहाश्रुतत्त्वात् प्रकरणाभावाच त्रिनिकायैरेव तैर्भवितव्यमित्यर्थसामा•निकायानुवृत्तिः । स्वपदार्थायामपि वृत्तौ तत एव तदनुवृत्तिः प्रधानत्वाच्च निकायानां चतुःसंख्याविशेषणरहितानामनुवृत्तिघटनात् त्रित्वसंख्यया चतुःसंख्याया बाधितत्वात् । देवा इति इति सामानाधिकरण्यं तु निकायनिकायिनां कथंचिदभेदान्न विरुध्यते ।।
यहां किसी पण्डितका आक्षेप है कि इस दूसरे सूत्रमें त्रिषु शद्बका सामानाधिकरण्य करनेके लिये “ निकायेषु " ऐसे सप्तमी बहुवचनान्त पदकी अनुवृत्ति करना आवश्यक है। किन्तु पूर्व सूत्रमें " निकायाः " ऐसा प्रथमा विभक्तिका बहुवचनान्त पद पड़ा हुआ है । और वह भी " चतुर्निकायाः " यहां समासवृत्ति द्वारा चतुर शद्बके साथ चुपट रहा है। " पदार्थः पदार्थेनान्वेति नत्वेकदेशेन, एकयोगनिर्दिष्टानां सह वा प्रवृत्तिः सह वा निवृत्तिः " इन नियमोंके अनुसार यहां निकायेषु इस प्रकार सप्तमी बहुवचनान्त पदकी भला किस प्रकार अनुवृत्ति की जा सकती है ! क्योंकि उन निकायोंका अन्य पदार्थको प्रधान माननेवाली बहुव्रीहि नामकी वृत्ति होनेपर स्वतंत्र बने रहनेकी सामर्थ्य नहीं रहती है । चत्वारो निकायाः येषां " यो बहुव्रीहि समास करनेपर " समर्थः पदविधिः " के अनुसार दोनों पदोंकी सामर्थ्य परस्परमें भिड रही मानी गयी है। भाण्डागार ( खजाना ) में दो अधिपतियोंके ताले लग चुकनेपर पुनः एक ही अधिपतिको भाण्डागार खोलनेकी सामर्थ नहीं रहती है । उसी प्रकार यहां " चतुर्निकायाः " में से निकायाः अथवा " अर्थवशात् विभक्तेर्विपरिणामः " इस न्यायसे त्रिषु पदके समभिव्याहार अनुसार निकायेषु पदकी अनुवृत्ति नहीं की जा सकती है। हां, चार जो वे निकाय यों विग्रह कर बनाये गये चतुर्निकायाः इस शब्दकी स्वपदार्थप्रधाना कर्मधारय समास नामकी वृत्ति माननेपर यद्यपि स्वतंत्र रूपसे समर्थ हो रहे निकाय शब्दकी अनुवृत्ति की जा सकती है, तो भी " देवा" इस पदके साथ सामानाधिकरण्य नहीं बन सकता है । क्योंकि अनुवृत्त किये गये "निकायाः" शद्वक साथ " देवाः " यह पद चल रहा है । और " पीतान्तलेश्याः ” पद भी देवपरक है। किन्तु