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________________ १९२ तत्त्वार्यश्लोकवार्तिके तृतीयाध्यायकी विषयसूची। इस तीसरे अध्यायमें श्री विद्यानन्द स्वामी करके व्याख्या किये गये प्रकरणोंकी सूची इस प्रकार है कि प्रथम ही जीवोंके निवास स्थानोंकी जिज्ञासा होनेपर कहे गये " रत्नशर्करा" आदि सूत्रकी उपपत्ति की गयी है । आगमप्रमाणसे समझायीं गयीं भूमियें और वातवलय तथा आकाशके आश्रयपनको युक्तियोंसे सिद्ध किया है । पौराणिकोंके यहां माने गये कछवा, शेषनाग आदिको भूमिका आधारपना नहीं सम्भवता है। पश्चात् भूमिका गोल आकार माननेवाले कतिपय प्राचीन पण्डित और आधुनिक अनेक यूरूपीय पण्डितोंके मतानुसार भूमिके ऊपर नीचे भ्रमणका अनुवाद कर पुनः भूभ्रमणवादका ऊहापोहपूर्वक खण्डन किया है । कचित् , कदाचित् , भूमिका अत्यल्प कम्प हो जानेसे चित्तमें बडा भारी उद्वेग ( घवडाहट ) व्याकुलतायें उपज जाती हैं, रहेंटक झूला या गोल झूलापर झूलनेवालोंके हृदयमें भारी आघात पहुंचता है, तो फिर भूमिका वेगयुक्त भ्रमण माननेपर इन शरीरधारी जीवोंकी कितनी दुर्दशा होगी ? इसका अनुमान सहजमें लगाया जा सकता है । सांपको उल्टा लटका देनेसे उसका निकृष्ट संहनन थोडी देरमें स्खलित होकर सर्प मृतप्राय हो जाता है । इसी प्रकार भूमिके ऊपर नीचे लटक रहे ये टूटे चरखा सरीखे शरीरको धारनेवाले प्राणियोंकी घुमा देनेपर भुरभुरी गजक, के समान दुर्व्यवस्था हो जायगी । भूमिकी आकर्षण शक्ति इस विपत्तिकी रक्षा नहीं कर सकती है। पचास मनकी मट्टीके डेलको यदि आकाशमें लटका दिया जाय और उस डेलपर नीचेकी ओर एक बालक या एक कटोरा जलको धारण कर दिया जाय तो वह झट नीचे गिर पडेगा क्या? पचास मन मट्टीका डेल उस सेरभर पानीको या पांच सेरके बालकको अपनी आकर्षण शक्ति द्वारा नीचेकी ओरसे खेंच नहीं सकता था ? यदि तुम यों कहो कि महती भूमिकी आकर्षणशक्ति अत्यधिक है । अतः दिनमें सूर्यप्रकाशसे अभिभूत हुये ताराओं के समान उस छोटेसे मृत्तिका पिण्डकी शक्ति दब जाती है। बड़ी भूमि अपनी ओर बालक या जलको खींच लेती है इस पर हम जैनोंका यह कहना है कि पृथिवीमें आकर्षण शक्ति मध्य केन्द्रमें है ? या सर्वत्र खण्ड खण्डोंमें यथायोग्य वांटके अनुसार थोडी थोडी फैल रही है ? इन दोनों पक्षोंके अनुसार तुम्हारा उक्त सिद्धान्त रक्षित नहीं रह सकता है । क्योंकि मट्टीको खोदकर एक ओर ऊंची और दूसरी ओर नीची ढलाऊ स्थानमें जमा देने पर ऊपर उभरी भूमि पर रक्खी हुई गेंद नीचे नहीं लुडकनी चाहिये तथा खण्ड, खण्ड, शक्ति मानने पर पचास मनका ठोस गोला नीचली पोली हलकी भूमिकी बांटमें आयी हुई थोडी शाक्तिसे कहीं बढ कर है। गोल भूमि पर लम्बा, चौडा, समुद्र जल या नदीजल नियत विधीसे नहीं ठहर सकता है । प्रेरक वायुओंका परस्परमें प्रतिघात होजायगा । देखो, गुरु पदार्थ अधःपतनशील होते हैं । भूमिमें आकर्षण शक्ति है । जलभाग बीचमें कुछ उभरा रहता है । इन सिद्धान्तोंका हम खण्डन नहीं करते हैं । किन्तु नियत भ्रमण कराने के कार
SR No.090499
Book TitleTattvarthshlokavartikalankar Part 5
Original Sutra AuthorVidyanandacharya
AuthorVardhaman Parshwanath Shastri
PublisherVardhaman Parshwanath Shastri
Publication Year1964
Total Pages702
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size22 MB
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