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________________ तत्त्वार्थचिन्तामणिः ४९१ प्रवचनभवसूत्रैर्जन्यमानेन सद्भिः । कथमपि परिवेद्यो भावयद्भिः प्रपंचात् ॥ ७२ ॥ इस प्रकार श्री उमास्वामी महाराजने मध्यलोकके कतिपय विशेषस्थलोंका सामान्य रूपसे तृतीयाध्यायके चौंतीस सूत्रोंमें समीचीन वर्णन कर दिया है । सर्वज्ञ प्रतिपादित द्वादशांग मूलक शास्त्रों या प्रकृष्ट वक्ताओंसे उत्पन्न हुये सूत्रों करके उपज रहे सम्पूर्ण नयतन्मय ज्ञानज्योतिरा भावनाशक्तिको धारनेवाले सजन पुरुषों करके किसी भी समुचित उपायोंके अनुसार मध्यलोकके सन्निवेशका विस्तारसे परिज्ञान कर लेना चाहिये ।। सूत्रोंमें इतना ही कथन करना पर्याप्त है । इति तृतीयाध्यायस्य द्वितीयमान्हिकम् ।। इस प्रकार श्री उमास्वामी महाराजकृत तत्त्वार्थसूत्र ग्रन्थके तीसरे अध्यायका श्री विद्यानन्दस्वामीकृत प्रकरणोंका समुदायस्वरूप दूसरा आन्हिक यहांतक समाप्त हुआ। अधोलोकश्चित्रो नरकगणना नारकजनस्तथा लोको मध्यो बहुविधविशेषो नरगणः । तदायुर्भेदश्च प्रतिनियतकालो निगदितस्तिरश्वामध्याये स्थितिरपि तृतीयेत्र मुनिना ॥१॥ ___इस तीसरे अध्यायमें श्री उमास्वामी महाराजने प्रथमसूत्रकरके चित्र, विचित्र प्रकारका अधोलोक कहा है, रत्नप्रभा आदि सात भूमियां बातवलयोंपर और वातवलय तो आकाशके आश्रयपर अवलंबित हैं । यो सुमेरु पर्वतके नीचे सात राजूतक अकृत्रिम अधोलोकका सुन्दर आश्चर्यकारक विचित्र सन्निवेश है । दूसरे सूत्रमें चौरासी लाख नरकोंकी गणना की गई है तथा अग्रिम तीसरे, चौथे, पांचवें, छठे, सूत्रोंमें नारकी जीवोंकी दुर्व्यवस्था और उनकी आयुओंका निरूपण किया गया है । इसके आगे सातवें आदि सूत्रोंमें मध्यलोकका वर्णन है, वहां द्वीप, क्षेत्र, पर्वत, हृद, कमल, नदियां, आदिका वर्णन करते हुये सूत्रकारने ढाई द्वीपमें रहनेवाले भोगभूमियां, कर्मभूमियां, आर्य, म्लेच्छ, आदि बहुत प्रकारोंकरके मनुष्योंके समुदायका विशेष कहा है तथा उन मनुष्योंकी आयुके विशेष भेद भी कह दिये हैं, जो कि जघन्य, उत्कृष्ट, आयुके भेद श्वासके अठारहवें भाग, जघन्यदशासे लेकर कोटि पूर्व वर्षतक कर्मभूमिमें और एक समय अधिक कोटि पूर्व वर्षसे प्रारम्भकर तीन पल्यतक भोगभूमियोंमें प्रत्येक नियतकालको धारनेवाले हैं । अन्तमें तिर्यञ्च जीवोंकी जघन्य, उत्कृष्ट, स्थितिका भी सूत्रकार मुनि महाराजने लगे हाथ प्रतिपादन कर दिया है। इति श्रीविद्यानन्दि आचार्यविरचिते तत्त्वार्थश्लोकवार्त्तिकालंकारे तृतीयोऽध्यायः ॥३॥ - इस प्रकार श्री विद्यानन्द आचार्य करके विशेषरूपेण रचना किये गये तत्त्वार्थश्लोकवार्तिकालंकार . नामक महान् ग्रन्थमें यहांतक तीसरा अध्याय परिपूर्ण हुआ ।
SR No.090499
Book TitleTattvarthshlokavartikalankar Part 5
Original Sutra AuthorVidyanandacharya
AuthorVardhaman Parshwanath Shastri
PublisherVardhaman Parshwanath Shastri
Publication Year1964
Total Pages702
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size22 MB
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