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तत्वार्थचिन्तामणिः
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शिवपदाध्यासाहुरितारिहरो हरः, शंकरः कृतशलोके संभवस्त्वं भवन्मखे वृषभोसि जगज्येष्ठः पुरुः पुरुगुणोदयैः नाभेयो नाभिसंभूतेरिक्ष्वाकुकुलनन्दनः " " जन्माभिषेकवामाय वामदेव नमोऽस्तु तें" " केवलज्ञानसंसिद्धावीशानाय नमोस्तु ते" "नमः परमविज्ञान" नमःपरमग्दृष्ट परमार्थाय तायिने" " नमः सुगतये तुभ्यं शोभनां गतिमीयुषे” इत्यादिक शिव, सुगत, ब्रह्माके पर्यायवाची नामोंसे यथार्थ महत्त्वोयोतक सम्भवनीय घटित हो रहे अर्थ श्री जिनेन्द्रदेवमें स्थापन किये गये हैं इस कारण सम्पूर्ण बुद्धिमान् कर्त्ताओंकी अपेक्षा करके भी जगत्में अकृत्रिमपना साध दिया जाता है इस प्रकार हम जैनोंका सम्पूर्ण कथन युक्तिपूर्ण निर्दोष है । हमारे " दृष्टकृत्रिमविलक्षणतया ईक्षण हेतुमें किसी दोष की सम्भावना नहीं है।
न हीपरनारायणादयः स्याद्वादिनामप्रसिद्धा एव, नापि तत्कृतत्रिपुरदाहान्धकासुरविध्वंसनादयो येन तद्विलक्षणं साधनमुपादीयमानं विरुद्धयेत। महेश्वरादेरखिलजगत्कारणस्यैव तेषामनभिमतत्वात् तादृशो महतो जगत्स्कन्धस्य सकलघटनाविशेषानाश्रयस्येश्वरापेक्षयापि करीमत्त्वमसंभाव्यं सनिवेशविशिष्टत्वादेः साधनस्य तत्पयोजकत्वायोगस्य समर्थनात् ।
हम स्याद्वादियोंके यहां ईश्वर, नारायण, बलदेव, राक्षस, देव आदिक जीव अप्रसिद्ध नहीं है। और उन महादेव आदि करके. किये जा चुके त्रिपुरका दाह, अन्धक असुरका विध्वंस, पार्वतीपरिणय, विद्यासाधन आदि या कोटिशिला उठाना, प्रतिनारायणका पराजय करना, अनेक व्यंतर देवोंका अधिपतित्व, अनेक लीलायें, लौकिक सुख भोगना आदिक भी हम जैनोंके यहां अप्रसिद्ध नहीं हैं जिससे कि उन त्रिपुरदाह आदि कृत्रिम कार्यास विलक्षणपने करके दीख जाना हेतु विरुद्ध हेत्वाभास हो सके। अर्थात्-जगत्को अकृत्रिम सिद्ध करने के लिये पूर्व अनुमानमें ग्रहण किया जा रहा हमारा दृष्टकृत्रिम विलक्षणतया ईक्षण हेतुविरुद्ध नहीं है । त्रिपुर तो क्या ऐसे भी इतिहासमें अवसर आ चुके हैं कि प्रचंड राजाओंने बीसों पुरोंका और उनमें रहनेवालोंका विध्वंस कर दिया गया है। क्रोधी मुनि अपने तैजस शरीर द्वारा सैकडों पुरोंका विनाश कर देता है। वीर निर्वाण सम्वत् २४५६ चौवससौ छप्पन या विक्रम सम्वत् १९८६ में राज्याधिकारियोंने करोडों टीडियोंका विध्वंस कर दिया था, ईसवीय सन् १९१४ से १९१९ तक हुये यूरपदेशके महायुद्ध में लाखों मनुष्योंका संक्षय हो चुका है । सन् १९१८ और १९१९ में भयंकर युद्धज्वर ( इनफ्ल्यूइजा ) के कारण भारतीय ६० लाख मनुष्यकाल कवलित हो गये थे । प्लेग, हैजा, में असंख्य मनुष्यों का विनाश हो जाता है। विकृत पुद्गल और क्रूर जीवोंके निमित्तसे घण्टों या मिनटोंमें करोडो, अरबों, खरबों, कीट, पतंग, मार दिये जाते हैं । इसी प्रकार तीर्थंकर महाराज असंख्य जीवों का उपकार करते हैं। शुभतेजस पुतला द्वारा मुनि कोसों तक सुभिक्ष फैला देते हैं । कोटिशिला या कैलाशको नारायण अथवा रावणने उठा लिया यों जैन पुराणोंमें प्रसिद्ध है इत्यादिक अनेक कार्य किये जा सकते हैं । किन्तु ये सम्पूर्ण