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तत्त्वार्थचिन्तामणिः
होपाता है । इस कारण अन्य विद्वान् वैशेषिकोंके यहां अपने अभीष्ट ईश्वरकी सिद्धि कथमपि नहीं होपाती है उनके सभी हेतु दूषित होजाते हैं।
स्यान्मत, नैकः प्रयोक्ता साध्यते तेषां नाप्यनेकः प्रयोक्तृसामान्यस्य साधयितुमिष्टत्वादिति । तदप्यसंगतमेव, तथा सिद्धसाधनाभिधानात् । न हि प्रयोक्तमात्रे · समस्तकारकाणां विप्रतिपद्यामहे यस्य यदुपभोग्यं तत्कारकाणां तत्पयोक्तृत्वनियमनिश्चयात् ।
फिर वैशेषिकोंका प्रबुद्ध होकर यह मन्तव्य होय कि उन सम्पूर्ण कार्योंका प्रयोक्ता एक बुद्धिमान नहीं साधा जाता है और अनेक भी बुद्धिमान् निमित्तकारण नहीं सध जाते हैं किन्तु हम वैशेषिकोंको प्रयोक्ता सामान्यकी सिद्धि कर लेना अभीष्ट होरहा है । अर्थात्-हम इस तात्पर्य पर पहुंचे हैं कि कारकोंका या कार्योंका स्वकीय पुरुषार्थ द्वारा कोई प्रयोक्ता होना चाहिये इस पर ग्रन्थकार कहते हैं कि वह वैशेषिकोंका मन्तव्य भी पूर्वापरसंगतिसे शून्य है क्योंकि तिस प्रकार सामान्य प्रयोक्ताओंके साध्य करने पर हम जैन सत्रहवीं वार्तिक अथवा साठवीं वार्तिकोंके अनुसार सिद्धसाधन कह चुके हैं । जगत्के अनेक कार्योंमें अदृष्ट द्वारा या साक्षात् सम्पूर्ण प्राणी प्रयोक्ता हो रहे हैं सम्पूर्ण कारकोंके सामान्य प्रयोक्ताको साधने में हम पहिलेसे ही कोई विवाद नहीं उठा रहे हैं। जिस प्राणीके जो जो पदार्थ साक्षात् या परम्परासे उपभोग करने योग्य हैं उस उस पदार्थक कारकोंका प्रयोक्कापन नियमसे उस उस प्राणीमें निश्चित हो रहा है। भावार्थ-जगत्के प्रायः सम्पूर्ण पदार्थ किसी न किसी प्राणीके साक्षात् या परम्परया उपभोगयोग्य हो ही रहे हैं । अदृष्टानपेक्ष या प्राणानपेक्ष होकर हो रहे कतिपय कार्योकी यहां न्यायशास्त्रमें गणना नहीं की गयी है सर्वज्ञोक्त सूक्ष्म चर्चाका परिशीलन करनेवाले सिद्धान्तग्रन्थोंमें उनका गवेषण कीजिये ।
इति क्रियानुमानानां माला नैवामला भुवः ।
कर्तर्यकत्र संसाध्येऽनुमित्या पक्षबाधनात् ॥ ६५॥
यहांतक प्रकरणमें यह सिद्ध कर दिया गया है कि पृथिवीके यानी जगत्के एक कर्ताको भले प्रकार सिद्ध करनेमें दी गई कार्यत्व, करणत्व आदि हेतुवाले अनुमानोंकी माला निर्दोष नहीं है क्योंकि हम जैनोंके अनुमान प्रमाण करके वैशेषिकोंके पक्षकी बाधा उपस्थित हो जाती है अथवा एकसौ अस्सी क्रियावादी मिथ्यादृष्टियोंमें वैशेषिक भी पदार्थोंमें क्रियाको माननेवाले परिगणित हैं । अतः क्रियावादी वैशेषिकोंके पूर्वोक्त कई अनुमानोंकी माला निर्दोष नहीं है यों संगति लगाकर " क्रियानुमानानां " पदका अर्थ कर लो। " कर्ता माने गये ईश्वरकी क्रियाके प्रयोजक अनुमान " यों भी अर्थ किया जा सकता है।