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तत्त्वार्थचिन्तामणिः
व्यापक नहीं होनेसे व्याप्यका अभाव साध लिया जाता है । ईश्वर या ईश्वर इच्छाके साथ कार्य उस अन्वय-व्यतिरेकपद्धतिका अनुसरण नहीं करते हैं। इस कारण कार्योंके निमित्त ईश्वर या ईश्वर इच्छा नहीं है । यो स्थावर आदि कार्योके प्रति ईश्वर या ईश्वर इच्छाका निमित्तपना जब युक्तियोंद्वारा निषिद्ध हो चुका तो ईश्वरवादियोंद्वारा पहिले कहे गये सन्निवेशविशिष्टत्व, अचेतनोपादानत्व आदि हेतुओंका व्यभिचार दोष तदवस्थ रहा, यों कोई पण्डित जैनोंकी चाटुकारता करते हुये मान रहे हैं । ग्रंथकारका इनके प्रति कोई अत्यधिक आदर अथवा घृणाका भाव नहीं है। यह उनका परिणाम अडतीसवीं वार्तिकसे ही ध्वनित हो जाता है ।
एवमीशस्य हेतुत्वाभावसिद्धिं प्रचक्षते । व्यापकानुपलंभेन स्थावरादिसमुद्भवे ॥५०॥
श्री विद्यानन्द आचार्य कहते हैं कि यहां कोई विचारशाली विद्वान इस प्रकार उक्त रूपसे बहुत अच्छा स्पष्ट कथन कर रहे हैं कि स्थावर, मेघवृष्टि, आंधी आदिकी भले प्रकार उत्पत्ति होनेमें ईश्वरको निमित्तकारणपनके अभावकी व्यापकके अनुपलम्भ करके सिद्धि हो रही है । अर्थात्- कार्य कारण भावका व्यापक अन्वय व्यतिरेकभाव है । जहां व्यापक नहीं है वहां व्याप्य नहीं ठहर सकता हैं । अडतीसवीं वार्तिकमें वैशेषिकोंके हेतुओंका जो व्यभिचार दोष किन्हीं विद्वानों करके उठाया गया है वह अनुचित नहीं है।
एवं जगतां बुद्धिमत्कारणत्वे साध्ये कार्यत्वादिहेतोः स्थावरादिभिर्व्यभिचारसुद्भाव्य पुनः स्थावरादीनामीशनिमित्तत्वाभावसिद्धिं व्यापकानुपलंभेन केचित्मचक्षते ।
इस प्रकार किसी बुद्धिमान् ईश्वरमें तीनों जगत्का कारणपना साध्य करनेपर दिये गये कार्यत्व सन्निवेशविशिष्टत्व आदि हेतुओंका स्थावर, पर्वत, आदिकोंकरके व्याभिचार हेत्वाभासको उठाकर फिर ईश्वरमें स्थावर, पृथिवी, आदि कार्योंके निमित्तकारणपनके अभावकी सिद्धिको व्यापकानुपलम्भकरके जो कोई बखानते हैं वे विद्वान् अच्छा निरूपण कर रहे हैं, हमें उनके कर्तव्यपर संतोष हैं।
पक्षस्यैवानुमानेन बाधोद्भाव्येति चापरे । • पक्षीकृतैरयुक्तत्वाद्व्यभिचारस्य साधने ॥ ५१ ॥
दूसरे कोई विद्वान् यहां यों कह रहे हैं कि वैशेषिकोंके पक्षकी अनुमानकरके ही बाधा उठानी चाहिये वैशोषिकों करके पक्षमें पहिले नहीं किये किन्तु पुनः पक्षकोटिमें धर लिये गये स्थावर आदिकों करके कार्यत्व आदि हेतुओंमें व्यभिचार हेत्वाभासका उठाना युक्तिरहित है । भावार्थ-जैनमतका पक्ष ले रहे केचित् विद्वान्के ऊपर जैनसिद्धान्तपर भक्ति रखनेवाले अपर विद्वानोंका यह आक्षेप