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. तत्त्वार्थचिन्तामणिः
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इत्येके तदसंबंधं स्वशरीराणि कुर्वतां । शरीरांतरसंबंधात्मनां स्यान्नान्यथा क्रिया ॥ २१ ॥ परापरशरीराणां कल्पनान्नानवस्थितिः ।
तेषामनादिसंबंधात्कार्यकारणभावतः ॥ २२ ॥
यदि वैशेषिक यों कहे कि कुम्हार, कोली आदि आत्मायें शरीरसहित होरहीं घट आदि कार्योको करती हुयीं देखी गयी हैं और फिर जन्मकी आदिमें स्वयं अशरीर होता हुआ भी आत्मा नवीनदेहको बना रहा प्रसिद्ध होरहा है । अतः जगत्का निमित्तकारण बुद्धिमान् आत्मा है। यहां देह सहित और देहरहित दोनों प्रकारके विशेष जीवोंमें वर्तरहे सामान्य स्वभावको धार रहा ईश्वर जगत्को बना रहा साधा गया है। साध्यकोटिमें देहसहित या देहरहित ऐसी कोई विशेषता नहीं डाल दी है। भावार्थ-कार्योको बनाने में कर्ताका शरीरसहितपना और शरीररहितपना उपयोगी नहीं है। शरीरसहित आत्मा भी अनेक कार्योको कर देते हैं, और शरीररहित भी आत्मा पहिले पहिले नये शरीरको या ज्ञान, इच्छा, प्रयत्नोंको बना देता है । अतः दोनों प्रकारकी आत्माओंका सामान्य स्वभाव होरहे आत्मत्वधर्मसे युक्त बुद्धिमानको हम वैशेषिक जगत्का कर्ता साध रहे हैं। भले ही दृष्टान्तमें शरीरसहित कर्ता होय और दार्टान्तमें अन्य प्रमाणों करके वह कर्ता अशरीर साध दिया जाय, हमारी कोई क्षति नहीं है। ज्ञान, इच्छा, और प्रयत्नके साथ कर्त्तापनकी व्याप्ति है। शरीरसहितपन और शरीररहितपन कोई कर्त्तापनके प्रयोजक नहीं हैं । देखिये “ पर्वतो वन्हिमान् धूमात् महानसवत् ,, यहां दृष्टान्त होरहे रसोई घरमें लक्कडोंकी आग है और पर्वतमें सूखे तृण या पत्तोंकी आग सुलग रही है। किन्तु सामान्य अग्निको साध्य करने पर कोई दोष नहीं आता है । इसी प्रकार यहां भी सामान्य स्वभाववाले बुद्धिमान्को जब अनुमान द्वारा साधा जावेगा तब तुम जैनोंकी ओरसे दिया गया वह सिद्धसाधन दोष कहां आया ? अर्थात्-हमारे ऊपर सिद्धसाधन दोष लागू नहीं है। तुम्हारे यहां असिद्ध होरहे पदार्थको हम साध रहे हैं, तुम्हारे यहां सिद्ध होरहे ही को हम नहीं साध रहे हैं, यहांतक कोई एक वैशेषिक पण्डित कह चुके हैं । आचार्य कहते हैं कि वैशेषिकोंका वह कहना संबंधयोजनासे शून्य है । असम्बद्धप्रलापी होनेसे उनके पूर्वापरवचनोंकी संगति ठीक नहीं बैठती है। क्योंकि पूर्वकालीन अन्य सूक्ष्मशरीरोंके साथ संबंध रख रहे आत्माओंकी ही अपने शरीरोको करते संते क्रिया होसकती है । अन्य प्रकारोंसे यानी शरीररहित आत्माओंकी क्रिया अपने नवीन शरीरको बनानेके लिये नहीं होसकती है । जैसे कि स्थूलशरीर और सूक्ष्मशरीरोंसे रहित होरहा मुक्त आत्मा पुनः अपने शरीरोंको नहीं बना सकता है । शरीररहित आकाश भी निजके पौद्गलिक शरीरका निर्माण नहीं कर पाता है । बीजांकुरधाराकरके अनादिकालसे, चला आया छिलकासहित धान ही उपज