________________
तत्वार्थ लोकवार्त
भाव के लिये प्रत्याख्यानावरण भी देशघाती कल्पित किया गया है। इस प्रकार अनुमान द्वारा उक्त अठारह भावोंके सम्पादक क्षयोपशमको साध दिया है। उक्त हेतुओं में अन्वयव्याप्ति पायी जाती है । जब घाती कर्मका क्षीणपना और उपशांतपना सिद्ध हो चुका तो वह उसके होने पर होनेवाले भावोंका तिस प्रकार हो रहे क्षयोपशम भावको भले प्रकार संयम रहित साध ही देवेगा ।
३०
एवं च सिद्धोष्टादशभेदो मिश्री भावः ।
और इस प्रकार व्याप्तिको बनाकर सिद्ध कर दिये गये अनुमान द्वारा अठारह भेदोंको धारनेवाला क्षय, उपशम, और उदयका मिला हुआ मिश्रभाव सिद्ध कर दिया गया है। यः पुनरौदयिक भाव एकविंशतिभेदोत्रोद्दिष्टस्तस्य निर्देशार्थं षष्ठमिदं सूत्रम् ।
1
मिश्रभावके पश्चात् जो फिर इकईस भेदवाले औदयिकभावका नाम निर्देश किया था, उसका कथन करने के लिये श्री उमास्वामी महाराजका यह द्वितीयाध्यायमें छठा सूत्र है । जो कि इस प्रकार : है उसको सुनो
।
गतिकषायलिंगमिथ्यादर्शनाज्ञानासंयतासिद्धलेश्याश्चतुश्चतुस्त्र्येकैकैकैकषड्भेदाः ॥ ६ ॥
आत्माको नरक सम्बन्धी, तिर्यक्सम्बन्धी, आदि भावोंकी प्राप्ति करानेवाली आत्मीय परिणाम रूप गति औदयिकभाव है । चारित्रमोहके उदयसे कलुषताभाव होना कषाय है, वेदत्रयके उदयसे हुआ अभिलाषाविशेष लिंगभाव औदायक है, तत्त्वार्थीका अश्रद्धानरूप परिणाम मिथ्यादर्शन है, ज्ञानावरणके उदयसे अन्धकारके सदृश ज्ञानाभाव बना रहना अज्ञानभाव है । यहां नञ्का अर्थ प्रसज्य है, इन्द्रियसंयम और प्राणिसंयमको नहीं पालना असंयतभाव है, सिद्ध अवस्था नहीं हो सकना असिद्धत्वभाव है, कषायमिश्रित आत्माके सकम्प परिणाम लेश्याभाव है, इनके यथाक्रमसे चार, चार, तीन, एक, एक, एक, एक, छह, भेद हैं । इस प्रकार औदायक भावके इकईस भेद समझ लेने चाहिये ।
चतुरादीनां कृतद्वंद्वानां भेदशद्वेनान्यपदार्था वृत्तिः पूर्ववत् । यथाक्रममिति चानुवर्तते तेनैवमभिसंबंधः क्रियते—गतिश्चतुर्भेदा कषायश्चतुर्भेदो लिंगं त्रिभेदं मिथ्यादर्शनमेकभेदमदर्शनस्य तत्रैवांतर्भावात्, अज्ञानमेकभेदं असंयतत्वमेकभेदं लिंगे हास्यरत्याद्यंतर्भावः सहचारित्वात् । गतिग्रहणमघात्युपलक्षणमिति न कस्यचिदौदयिक भेदस्यासंग्रहः ।
गति और कषाय तथा लिंग और मिथ्यादर्शन एवं अज्ञान और असंयत तथा असिद्ध और लेश्या इस प्रकार गति आदिकों का इतरेतर योगनामक द्वन्द्व समास करलेना चाहिये तथा संख्यावाचक चार, चार, तीन, एक, एक, एक, एक, छह, इन पदोंका पहिले इतरेतर द्वन्द्व कर पश्चात् भेद