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तत्वार्यलोकवार्तिके
कारण कि मनुष्यों के आधार हो रहे उन ढाई द्वीपविशेषों या दो समुद्रविशेषोंका निरूपण यदि नहीं किया जायगा, तब तो नारकी जीवोंके आधार हो रहे नरकस्थान तिर्यच प्राणियों के आधारभूत तिर्यक् लोक और देवोंके आधारस्थानोंके भी निरूपण नहीं करनेका प्रसंग आ जावेगा । और ऐसा होनेसे विशेषरूपसे जीवतत्त्वका निरूपण कर दिया गया नहीं समझा जायगा। तथा विशेषरूपसे उस जीवतत्त्वका निरूपण नही करनेपर उस जीवतत्त्वमें विज्ञान या श्रद्धान होना नई सिद्ध हो पायेंगे। उन विज्ञान और श्रद्धानकी नहीं सिद्धि होनेपर श्रद्धान और ज्ञानको कारण मान कर हुआ परिपूर्ण चारित्र भला कहां सम्भावित किया जावेगा ! और इस अन्धकारसदृश असिद्धियों की काली रातमें सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान, सम्यक्चारित्ररूप मोक्षमार्ग कहां बना ? जीवतत्त्वसे अवाशष्ट अजीव, आदि छह तत्वोंका परिभाषण भी इस प्रकारकी दशामें नहीं बन पाता है। तिस कारणसे मोक्षमार्गके उपदेशकी इच्छा रखनेवाले विद्वान्को सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान, और सम्यक्चारित्र, अवश्य स्वीकार कर लेने पडेंगे। उन तीनोंमेंसे एकका भी विश्लेष हो जानेपर मोक्षमार्गकी प्रसिद्धि नहीं हो सकती है। और उन सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान, सम्यक्चारित्रोंको स्वीकार कर रहे विद्वान्करके उस रत्नत्रयके विषयपनका अनुभव कर रहे जीवतत्त्वकी अजीव, आस्रव, आदि तत्त्वोंके समान प्रतिपत्ति कर लेनी चाहिये और यों उस जीवतत्त्वकी प्रतिपत्ति करते सन्ते पण्डितको उस जीवके विशेष हो रहे आधार आदि और आधारोंकी लम्बाई, चौडाई, आदिकी प्रतिपत्ति कर लेना आवश्यक पड जाता है। इस कारण इस तृतीय अध्यायमें द्वीप, समुद्र, पर्वत, नदी, आदिकी रचना, चौडाई, उनमें रहनेवाले जीवोंकी आयु, आदिका विशेषरूपसे सूत्रकारने प्ररूपण किया है, यह युक्तिपूर्ण है। यह तक तीसरे अध्यायके प्रमेयका विवरण हो चुका है। अब यहां कोई दूसरा सृष्टिकर्तावादी विद्वान् अपने मतको बहुत बढिया समझता हुआ कह रहा है, उसको भी सुनलो ।
ननु द्वीपादयो धीमद्धेतुकाः संतु सूत्रिताः । सन्निवेशविशेषत्वसिद्धेर्घटवदित्यसत् ॥ ८॥ हेतोरीश्वरदेहेनानेकांतादिति केचन । तत्रापरे तु मन्यते निर्देहेश्वरवादिनः ॥ ९॥ निमिचकारणं तेषां नेश्वरस्तत्र सिध्यति । निर्देहत्वाद्यथा मुक्तः पुरुषः सम्मतं स्वयं ॥ १० ॥
वैशेषिक अपने पक्षका अनुमान प्रमाण द्वारा अवधारण कराता है कि श्री उमास्वामी महाराज करके उक्त सूत्रों द्वारा कहे जा चुके द्वीप, समुद्र, पृथिवियें, पर्वत, शरीर, इन्द्रियें, आदिक पदार्थ