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तत्त्वार्यचिन्तामणिः
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सूत्रमें पर और अवर के साथ त्रिपल्योपम और अन्तर्मुहूर्त का यथासंख्यरूपसे सम्बन्ध कर लेना चाहिये। यों यथाक्रम अनुसार दोनोंका सम्बन्ध करने पर मनुष्यों की तीन पल्योपम उत्कृष्ट स्थिति और मनुष्यों की जघन्यस्थिति अन्तर्मुहूर्त्त यों समझ ली जाती है । मनुष्योंकी मध्यमस्थितियां कौन हैं ? ऐसी जिज्ञासा होनेपर श्री विद्यानन्द स्वामी अग्रिमवार्त्तिकको कहते हैं ।
परावरे विनिर्दिष्टे मनुष्याणामिह स्थिती । त्रिपल्योपमसंख्यांत मुहूर्त्त गणने वलात् ॥ १ ॥ मध्यमा स्थितिरेतेषां विविधा विनिवेदिता । स्वोपात्तायुर्विशेषाणां भावात्सूत्रेत्र तादृशां ॥ २ ॥
इस सूत्रमै मनुष्यों की उत्कृष्ट स्थिति तीन पल्योपम संख्यावाली और जघन्यस्थिति अन्तर्मुहूर्त नामक गणनाबाली विशेषरूपसे कह दी गयीं है। बिना कहे ही आदि, अन्त, स्थितियोंकी सामर्थ्यसे इन मनुष्यों की नानाप्रकार मध्यमस्थितियां तो अर्थापत्तिद्वारा श्री उमास्वामी महाराजकरके इस सूत्र में विशेषतया निवेदन कर दी गयीं समझ लेनी चाहिये। क्योंकि पूर्वजन्मसम्बन्धी अपनी अपनी कषायों के अनुसार इन मनुष्यों के निज उपार्जित विशेष विशेषस्थितिको लिये हुये तिस तिस ढंगके आयुष्य कर्मों का सद्भाव है । अर्थात् — पूर्व जन्मों में विशुद्ध परिणामोंसे उपार्जी गयी मनुष्य आयुके अनुसार जीवोंका एक समय अधिक कोटीपूर्ववर्ष से प्रारम्भ कर तीन पल्य की आयुवालोंका भोगभूमियोंमें जन्म होता है । और संक्लेश परिणामों अनुसार नाडीगतिके अठारहवें भाग जघन्य आयुः स्थितिसे प्रारम्भ कर कोटि पूर्व वर्षतककी आयुवाले जीवोंका कर्मभूमि मनुष्यों में उपजना होता है । अतः एक समय अधिक अन्तर्मुहूर्तसे प्रारम्भ कर एक समय कम तीन पल्यतककी असंख्यात प्रकार मध्यम स्थितियां तो सूत्र उच्चारण किये विना ही " तन्मध्यपतितस्तद्ग्रहणेन गृह्य इस नियम अनुसार गम्यमान हो जाती हैं । एयादीया गणना वीयादीया हवंति संखेज्जा, सीयादीणं णियमाकदित्ति सण्णा मुणेदन्या " इस गाथा अनुसार एक आदिको गणना कहते हैं । और दो आदिक । संख्या कहते हैं । असंख्यात या अनन्त भी संख्याविशेष हैं। पल्य एक असंख्याता संख्यात नामकी संख्याका मध्यम भेद है । चूंकि ढाई सागरके समय प्रमाण असंख्याते द्वीप समुद्र हैं और दश कोटा कोटी पल्योंका एक सागर होता है । तथापि सम्पूर्ण द्वीपसमुद्रोंसे जघन्य, मध्यम, उत्तम भोगभूमियोंके मनुष्यों के आयुष्य समय अत्यधिक हैं। क्योंकि द्वीपसमुद्रोंकी गणना तो उद्धार पल्योंकी पच्चीस कोटाकोटी संख्यासे है । किन्तु उद्धारपल्यसे सौ वर्ष के असंख्यात समयों गुना एक अद्धापन्य होता है । भोगभूमियों की स्थिति अद्धापल्यसे गिनायी गयी है । जघन्य युक्तासंख्यात - समयपरिमित आवलीसे संख्यात गुना मुहूर्त्त काल होता है । जो कि प्रतरावली कालका मनुष्यों की
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असंख्यातवां भाग है।
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