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तत्वार्थ लोक वार्तिके
तत्क्षेत्रवासिनां नृप्पामायुषः स्थितिरीरिता । सूत्रत्रयेण विष्कंभो भरतस्यैकसूत्रतः ॥ १ ॥
श्री उमास्वामी महाराजने “ एकद्वित्रिपल्योपमस्थितयो हैमवतकारिवर्ष कदैव कुरुवकाः, तथोत्तराः, विदेहेषु संख्येयकाला ः " इन तीनों सूत्रों करके उन क्षेत्रोंमें निवास करनेवाले मनुष्यों के जीवित कालकी • स्थितिको कह दिया है और " भरतस्य विष्कम्भो जम्बूद्वीपस्य नवतिशतभागः " भरतकी चौडाई कह दी गयी है।
इस एक सूत्र
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तनॄणामित्युपलक्षणात्तिरश्वामपि स्थितिरुक्तेति गम्यते ।
जैसे " काकेभ्यो दधि रक्ष्यतां " यहां काकपद सभी दधिके उपघातकों का उपलक्षण है, मानी काकपद से दहीको बिगाडनेवाले अन्य पशु, पक्षी, छोकरा आदि सही पकड लिये जाते हैं । उसी प्रकार उक्त वार्त्तिक में कहे गये " नृणां " यानी उन क्षेत्रनिवासी मनुष्यों यह पद उपलक्षण इस कारण वहां के पंचेंद्रिय तिर्यचों की स्थिति भी उन ही तीन सूत्रों द्वारा समझ लिया जाता है ।
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कह दी गयी, यों
धातकीखंडे भरतादिविष्कंभाः कथम् प्रमीयत इत्याह ।
धातकी खण्ड द्वीपमें भरत आदि क्षेत्रोंकी चौडाई भला किस प्रकार अच्छी नापी जाती है ? बों जिज्ञासा होनेपर श्री उमास्वामी महाराज अग्रिम सूत्रको कहते हैं ।
द्विर्धातकीखण्डे ॥ ३४ ॥
दूसरे द्वीप धातकी खण्डमें क्षेत्र, पर्वत, कमल, हद, नदियां आदिक अपेक्षा दो दो होकर दुगुने नापे जाते हैं । अर्थात् — दो मेरु सम्बन्धी क्षेत्र है तथा चौडाई भी दुगुनीसे कथमपि न्यून नहीं है ।
ननु च जंबूद्वीपानंतरं लवणोदो वक्तव्यस्तदुल्लंघने प्रयोजनाभावादिति चेन्न, जंबूद्वीपभरतादिद्विगुणधातकीखंडभरतादिप्रतिपादनार्थत्वात्, लवणोदवचनस्य सामर्थ्यलब्धत्वाच्च । महीतलमूलयोर्दशयोजनसहस्रविस्तारो लवणोदः ।
यहां श्री विद्यानन्द स्वामी के प्रति कोई शिष्य अनुनय करता है कि कृपासागर सूत्रकार महाराजजीको तेतीस सूत्रतक जम्बूद्वीप का वर्णन करने के पश्चात् चौंतीसमें सूत्रमें लवणसमुद्रका निरूपण करना चाहिये था। उस लवणसमुद्रके वर्णनको उल्लंघन करनेमें उनका कोई विशेष प्रयोजन नहीं सकता है, जिससे कि धातकी खण्डका वर्णन झट मध्यमें आ कूदे । अब प्रन्थकार कहते हैं कि यह
संख्या द्वारा जम्बूद्वीप की पर्वतादिकी संख्या दूनी