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तत्त्वार्थचिन्तामणिः
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फिर यह बताओ कि स्पर्द्धक भला क्या पदार्थ है ? ऐसी जिज्ञासा होनेपर आचार्य महाराज उत्तर कहते हैं कि शक्ति या पर्यायके अंशोंको अविभाग प्रतिच्छेद कहते हैं । " अविभागपडिच्छेओ जहण्ण उडूढी पएसाणं” ऐसा गोम्मटसारमें कहा है । रूप, रस, ज्ञान, सुख, आदिके वस्तुभित्तिपर अंशोंकी कल्पना कर पूरी संख्याओंमें गिनने का उपाय अविभाग प्रतिच्छेद है। पौद्गलिक कर्मोमें आत्माको रस देनेकी शक्तिके अंश भी अविभाग प्रतिच्छेदोंद्वारा न्यारे न्यारे पंक्तियोंमें विभाजित किये जाते हैं। अविभाग प्रतिच्छेदोंसे युक्त होरहे कर्मपरमाणुओंके रसभागकी प्रचयपतिका क्रमसे बढना या क्रमसे घटना जिन पिण्डोंमें पाया जाता है वह कार्मण स्कन्धोंका यथानाम शक्तिविशेषोंको धाररहा कर्म समुदाय स्पर्द्धक कहा जाता है । मोटी मिरचकी अपेक्षा छोटी मिरचमें अल्प परिमाण होते हुये भी चिरपिरे रसके शक्ति अंश अधिक माने गये हैं । अपनी अपनी आत्मामें सर्वांग व्यापरहे निगोदिया जीवके ज्ञानसे संज्ञी जीवके ज्ञानमें प्रतिभासक अंश अनन्त गुणे हैं। हाथ की अपेक्षा सिंहमें साहसके अंश बढे हुये हैं। इसी प्रकार संसारी जीवोंके प्रतिक्षण उदयमें आरहे कर्मोकी फलदानशक्तिओंके भी अंशकषायानुसार न्यून, अधिक, संख्यामें नियत होरहे हैं। छोटेसे छोटे भी संसारी जीवके अभव्योंसे अनन्तगुणे कर्मप्रदेश प्रतिक्षण उदयमें आते हैं और बडीसे वडी अवगाहनावाले मत्स्यके भी सिद्ध राशके अनन्तमें भाग कर्मप्रदेश उदय प्राप्त होते हैं। जवन्य और उत्कृष्ट मध्यवर्ती अनन्त भेदोंको धारनेवाले अनन्तानन्त जीव हैं । अभव्य राशिसे अनन्त गुणी इस संख्यासे सिद्ध राशिका अनन्तवां भाग यह संख्या बडी है। कारणोंके वश अविभाग प्रतिच्छेदोंमें छह स्थानवाली हानिवृद्धियां होती रहतीं हैं । ज्ञानके अविभाग प्रतिच्छेदोंकी हानि या वृद्धि करते समय संख्यात पदसे उत्कृतसंख्यात और असंख्यात संख्यासे जिनदृष्ट असंख्यात गुणे लोकप्रदेश तथा अनन्त शबसे जीवराशिरूप अनन्तानन्त पकडा गया है। किसी गुणमें उक्त संख्यासे न्यून या अधिक संख्याको लेकर भी हानिवृद्धियां सम्भावित हैं । रसके अंशोंमें जितनी अविभाग प्रतिच्छेदोंकी संख्याका न्यूनाधिकपना है उतना तारतम्य गन्धमें नहीं पाया जाता है । ज्ञान गुणमें जितना जघन्य अंशोंकी वृद्धिस्वरूप अविभाग प्रतिच्छेदोंका हानिवृद्धि भाव है उतना सुख या अस्तित्व गुणमें नहीं पाया जाता है। अन्तरंग कारण कषायोंके तीव्र, मन्द, ज्ञात, अज्ञात परिणामोंकी अपेक्षा और बहिरंग कारण द्रव्य, क्षेत्र, काल, अधिकारी जीव, वीर्य, आदि परिस्थितीके अनुसार एक जातिके कर्मोमें फलदान शक्ति के अंशोंकी विचित्रतायें मानली जाती हैं। जैसे कि लब्ध्यपर्याप्तक निगोदियासम्बन्धी सबसे छोटी. श्रेणीके जघन्य ज्ञानमें आकाश प्रदेशोंसे भी अनन्तानन्त गुणे इतने अनन्तानन्त अविभागप्रतिच्छेद माने गये हैं। क्योंकि उसी लब्ध्यपर्याप्तक निगोदियाके जन्मके प्रथम समयमें होनेवाले जघन्यज्ञानसे द्वितीयसमयमें ज्ञानकी वृद्धि उस ज्ञानके अनन्तवें भागरूप हैं । अतः पूरी संख्याओंमें कथन करनेकी विवक्षा होनेपर उस वृद्धिके अंशको यदि एक मानलिया तो पहिले समयका मूलज्ञान उससे अनन्तानन्तगुणा होता हुआ, अनन्तानन्त अविभाग प्रतिच्छेदोंके धारने.बाला कहा जायगा और दूसरे समयके ज्ञानके एक अधिक अनन्तानन्त अविभागप्रतिच्छेद माने