SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 362
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ तत्त्वार्थश्लोक वार्तिके हैमवतादिभ्यो भवार्थे वुञ, हैमवतकादीनां द्वन्द्वे सति हैमवतकस्यानुपूर्व्यप्रतिपत्त्यर्थः पूर्वनिपातः । एकादीनां हैमवतकादिभिर्यथासंख्यं संबंधः, तेनैकपल्योपमस्थितयो हैमवतका, द्विपल्योपमस्थितयो हारिवर्षकाः, त्रिपल्योपमस्थितयो दैवकुरवका इत्युक्तं भवति । हैमवत, हरिवर्ष, देवकुरु, इस प्रकार शब्दोंसे तत्र भव इस अर्थ में वुञ् प्रत्यय कर पुनः वु को अक और से पूर्व अचूको वृद्धि करते हुये हैमवतक, हाविर्षक, दैवकुरुवक, शोंको साधु बना लेना चाहिये । इन हैमवतक आदि शङ्खों का इतरेतर योग द्वन्द्व समास करनेपर हैमवतक शद्वका ठीक आनुपूर्व्यकी प्रतिपत्ति कराने के लिये पूर्वमें निपतन हो जाता है । एक, दो, आदि पदों का हैमवतक, आदिके साथ यथासंख्य सम्बन्ध कर लेना । ऐसा सम्बन्ध कर लेनेसे सूत्र द्वारा यों कहा जा चुका समझा जाता है कि एक पल्योपम स्थितिको धार रहे हैमवत क्षेत्र निवासी भोगभूमियां जीव हैं, दो पल्योपम स्थितिको धार रहे हाविर्षक हैं और देवकुरु निवासी भोगभूमियोंकी उत्कृष्ट आयु तीन पल्योपम है । ३५० विदेहादुत्तराः कथमित्याह । विदेह क्षेत्रसे उत्तरवर्त्ती परली ओरके भोग भूमियोंकी किस प्रकार स्थितियां हैं ? यो जिज्ञासा होने पर श्री उमास्वामी महाराज अग्रिम सूत्रको कहते हैं । तथोत्तराः ॥ ३१ ॥ तिस ही प्रकार उत्तर देशवर्त्ती जीवों की स्थितियों को समझ लेना चाहिये । अर्थात् — पांच मेरु सम्बन्धी पांच हैरण्यवत क्षेत्रोंमें भोगभूमियों की स्थिति एक पल्योपम है। वहां सर्वदा सुषमदुःषमा काल अवस्थित रहता है। पांच मेरु सम्बन्धी रम्यक क्षेत्रों में भोगभूमियां दो पल्यकी आयुको धारनेवाले हैं। यहां सर्वदा सुषमा काल तदवस्थ रहता है तथा पांच उत्तरकुरुओंमें तीन पल्योपमकी स्थिति है । यहां सर्वदा सुषमसुषमा काल वर्तता रहता है । यों जम्बूद्वीप के उत्तर प्रान्तमें जघन्य, मध्यम, उत्कृष्ट भोगभूमियां तदवस्थ हैं । हैरण्यवतकरम्यकोत्तरकुरवका एकद्वित्रिपल्योपमस्थितयो हैमवतकादिवदित्यर्थः । 1 इस सूत्र का यह अर्थ है कि हैमवतक आदिके समान ही परली ओरके जीवों की स्थिति है 1 हैमवतकों के समान हैरण्यवतक जीवों की स्थिति एक पल्योपम है । हरिवर्षमें रहनेवाले मनुष्य, तिर्यचों के समान रम्यक निवासियोंकी दो पल्योपम आयुःस्थिति है । दैवकुरुवकों के समान उत्तरकुरुस्थायी मनुष्य तिर्यच तो तीन पल्योपम स्थितिको धार रहे हैं । अर्थात् — भोगभूमियों में विकलत्रय और लब्ध्यपर्याप्तक जीव नहीं पाये जाते हैं। हां, पांचों कायके स्थावर जीव वहां विद्यमान हैं । उत्कृष्ट स्थिति बाईस हजार वर्ष, सात हजार वर्ष, तीन दिन, तीन हजार वर्ष, दस हजार वर्ष, यथाक्रमसे पृथ्वी, 1
SR No.090499
Book TitleTattvarthshlokavartikalankar Part 5
Original Sutra AuthorVidyanandacharya
AuthorVardhaman Parshwanath Shastri
PublisherVardhaman Parshwanath Shastri
Publication Year1964
Total Pages702
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size22 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy