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________________ तत्त्वार्थचिन्तामणिः ३४५ __ यद्यपि वर्षधर और वर्ष शद्वका द्वन्द्व समास करनेपर अल्प अच् होनेके कारण वर्ष शद्वका पहिले निपात हो जाना चाहिये, तथापि उन पर्वत या क्षेत्रोंकी ठीक ठकि व्यवस्थित हो रही आनुपूर्वीकी प्रतिपत्ति करानेके लिये वर्षधर शद्वका पूर्वमें निपात कर प्रयोग किया गया है । व्याकरण शास्त्रमें " अल्पाच्तरं " इस सूत्रका अपवाद करनेके लिये "वर्णानामानुपूर्येण" यों निरुक्त या व्याकरणकी वार्तिकोंको बनानेवालेका वचन तो अन्य अधिक अच्वाले या अपूज्य भी पदोंका उच्चारण अनुसार आनुपूयैकरके पूर्वनिपातकी प्रतिपत्तिको करानेके लिये है । तिस प्रकार अनेक स्थलोंपर बहुतसे पदोंका प्रयोग करना देखा जाता है । अर्थात्---द्वन्द्व समासमें अल्प अच्वाले पदोंका पूर्वमें निपात करा देनेवाला “ अल्पाच्तरम् ” यह सूत्र है । इसके अपवादमें “ वर्णानामानुपूर्येण " यह वार्तिक है । " ब्राम्हणक्षत्रियविट्शूदाः " इस पदमें ब्राह्मण आदि वर्गों का आनूपूर्वी करके जैसे पद प्रयोग होजाता है, उसी प्रकार अन्य भी ग्रामोंकी परिपाटी या तिथियों के अनुक्रम देश, परिमाण, पर्वत, आदिकोंकी आनूपूर्वी अनुसार पद प्रयोग कर दिया जाता है “ बाल्यकौमारयुवावस्थाः, पुष्पफले, स्पर्शनरसनाघ्राणचक्षुःश्रोत्राणि, ऊर्ध्वमध्याधोलोकाः, अवग्रहहावायधारणाः, रत्नशर्करावालुकाः ” आदि पदोंमे अल्प अचोंका या कचित् पूज्योंका भी लक्ष्य नहीं रखकर आनूपूर्वी अनुसार आगे पीछे पद बोल दिये गये हैं। इसी प्रकार यहां भी कहे जाचुके भरत क्षेत्रके परली ओर हिमवान् पर्वत है, तत् पश्चात् हैमवत क्षेत्र है, अतः सूत्रकारने " वर्षधरवर्षाः "यों रचना क्रम अनुसार वाचक पदोंका प्रयोग किया है। भरतका वर्णन कर चुकनेपर इसके पश्चात् हिमवान् पर्वत, पुनः हैमवत क्षेत्र, यो पर्वत और क्षेत्रोंका क्रम है। विदेहांतवचनं मर्यादार्थ तेन भरतविष्कंभाद्विगुणविष्कभी हिमवान् वर्षधरः, ततो हैमवतो वर्षः, ततो महाहिमवान् वर्षधरः, ततो हरिवर्षः, ततो निषधो वर्षधरस्ततोऽपि विदेहो वर्ष इत्युक्तं भवति । इस सूत्रमें विदेहपर्यन्त यह कथन करना तो मर्यादाको बांधनेके लिये है । तिस कथन करके इस प्रकार कह दिया जाता है कि भरत क्षेत्रकी चौडाईसे दूनी चौडाईवाला दस सौ बावन बारह बटे उन्नीस योजनका हिमवान् पर्वत है । उस हिमवान्से द्विगुना दो हजार एकसौ पांच और पांच बटे उन्नीस योजन चौडा हैमवत क्षेत्र है । उस हैमवत क्षेत्रसे महाहिमवान् पर्वत चार हजार दो सौ दस और दस बटे उन्नीस योजन चौडा है । उस महाहिमवान् पर्वतसे हरिवर्ष क्षेत्र आठ हजार चार सौ इक्कीस और एक बटे उन्नीस योजन दूनी चौडाईको लिये हुये है। उस हरिवर्षसे निषध पर्वत द्विगुना यानी सोलह हजार आठ सौ ब्यालीस और दो बटे उन्नीस योजन चौडा है । उस निषध पर्वतसे भी दूना चौडा तेतीस हजार छहसौ चौरासी और चार बटे उन्नीस योजन चौडा विदेह क्षेत्र है । पूरे जंबूद्वीपमेसे भरत क्षेत्रको एक, हिमवान् पर्वतको दो, हैमवत क्षेत्रको चार, महाहिमवान् पर्वतको आठ, हरिक्षेत्रको सोलह, निषधको बत्तीस और विदेहको चौसठ शलाकायें, नीलको बत्तीस, रम्यकको सोलह, 44
SR No.090499
Book TitleTattvarthshlokavartikalankar Part 5
Original Sutra AuthorVidyanandacharya
AuthorVardhaman Parshwanath Shastri
PublisherVardhaman Parshwanath Shastri
Publication Year1964
Total Pages702
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size22 MB
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