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तत्त्वार्थश्लोकवार्तिके
उदीच्यतोरणद्वारनिर्गता रोहितास्या । महापद्मदप्रभवापाच्यतोरणद्वारनिर्गता रोहित, उदीच्यतोरणद्वारनिर्गता हरिकांता । तिगिंछदसमुद्भवा दक्षिणद्वारनिर्गता हरित, उदीच्यतोरणद्वार निर्गता सीतोदा । केसरिइदप्रभवा अपाच्यद्वारनिर्गता सीता, उदीच्यद्वारनिर्गता नारी । महापुंडरीकडूदप्रभवा दक्षिणद्वारनिर्गता नरकांता, उदीच्यद्वारनिर्गता रूप्यकूला ! पुंडरीकडूदप्रभवा अपाच्यद्वारनिर्गता सुवर्णकूला, पूर्वतोरणद्वारनिर्गता रक्ता, प्रतीच्यद्वारनिर्गमा रक्तोदा।।
एक एक क्षेत्रमें विद्यमान होरहीं दो दो नदियोंमें पहिली गंगा, रोहित् आदि जो सात नदियां हैं, उनसे शेष बची हुयीं अन्य सिन्धु, रोहितास्या, आदि सात नदियां, यो इस सूत्र अनुसार पश्चिम समुद्रकी ओर गमन कर रहीं मानी जाती हैं । इन नदियोंमें गंगाकी पहिली प्रकटता या उपलब्धिको कराने वाले आद्य स्थान होरहे पद्महदसे गंगा नदी उपजती है, जो कि पद्मह्रदके चारों दिशाओंकी
ओर बने हुये तोरणोंमेंसे पूर्व दिशाके तोरणके निचले दरवाजेसे निकली हुयी है । उसी पद्महद संबंधी पश्चिम तोरणके निचले द्वार ( मोरी ) से सिन्धु नदी निकली है और उत्तरतोरणके द्वारसे रोहितास्या नदी निकलती है । तथा महापद्म हृदसे आद्यमें जन्म लेरही रोहित् नदी उसके दक्षिण तोरणद्वारसे निकल गयी है । महापद्म हृदके उत्तर दिशावाले तोरण द्वारसे हरिकान्ता नदी निकलती है । तिगिंछ हृदसे भले प्रकार उत्पन्न होरही हरित् नदी उसके दक्षिण द्वारसे निकलती है और तिगिछ हदके उत्तर दिशा सम्बन्धी तोरण द्वारसे सीतोदा निकलती है। केसरी हृदसे सबसे पहिले उपज कर सीता नदी उसके दक्षिण द्वारसे निकलती है और केसरी हृदके उत्तर द्वारसे नारी निकलती है । महापुण्डरीक हृदसे आद्य जन्म लेरही नरकान्ता उसके दक्षिण द्वारसे निकलती है और महापुण्डरीक हदके उत्तर दिग्वर्ती द्वारसे रूप्यकूला निकलती है । पुण्डरीक हृदसे पहिले ही पहिले उपज रही सुवर्णकूला महानदी उसके दक्षिण द्वारसे निकल जाती है और रक्ता नदी पुण्डकिके पूर्व तोरण द्वारसे प्रवाहित होरही है तथा रक्तोदा नदीका भी धारा निर्गमस्थान पुण्डरीक हृदका पश्चिम दिशा सम्बन्धी द्वार है । प्रासाद या सरोवरोंके चारों ओर शोभायुक्त बने हुये बाहरले द्वारको तोरण कहते हैं । तोरणोंके नीचे बनी हुयीं मोरियों द्वारा नदियां निकलती रहती हैं। उनका आद्य बहना वहांसे प्रारंभ होजाता है।
____अथ कियनदीपरिवृता एता नद्य इत्याह । ___ अब कोई प्रतिपाद्य प्रश्न करता है कि ये उक्त नदियां कितनी कितनी नदियों के परिवारसे युक्त होरहीं हैं ? ऐसी जिज्ञासा होनेपर भगवान् उमास्वामी महाराज अग्रिम सूत्रको कहते हैं। चतुर्दशनदीसहस्रपरिवृता गंगासिंध्वादयो नद्यः ॥ २४ ॥
गंगा आदिक पूर्वगामिनी नदियां और सिन्धु आदि पश्चिम गामिनी नदियां चौदह, चौदह, हजार नदियोंके परिवारको धारे हुये हैं। आगे तीन युगलोंमें इससे दूना दूना परिवार है।