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तत्त्वार्थचिन्तामणिः
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स्थान है । इस प्रकार ये चौदह नदियां कुण्डमें बने हुये द्वीप के गुम्मजपर विराजमान कमलस्थ प्रतिमाओंके ऊपर गिरती हैं। धाराप्रपात अवयवीका मध्यभाग प्रतिमाजीके मस्तकपर गिरता है । शेष इधर उधरका जलप्रवाह गुम्मजपर या रीते आकाशमें गिरता हुआ लम्बे, चौडे, कुण्डके बीचमें पड जाता है ।
अथैतयोर्द्वयोः का पूर्वसमुद्रं गच्छतीत्याह ।
अब महाराज यह बताओ कि चौदह नदियोंके सात युगल होकर इन दो दोमें भला कौनसी कौनसी नदी पूर्व लवणसमुद्रकी ओर गमन करती है ? ऐसी बुभुत्सा होनेपर श्री उमास्वामी महाराज अग्रिम सूत्रको कहते हैं ।
द्वयोर्द्वयोः पूर्वाः पूर्वगाः ॥ २२ ॥
सम्पूर्ण नदियों के सात युगल बनाकर दो दो नदियोंमें पहिलीं नदियां पूर्व समुद्रकी ओर गमन करती हैं ।
द्वयोर्द्वयोरेकक्षेत्रं विषय इत्यभिसंबंधादेकत्र सर्वासां प्रसंगनिवृत्तिः, पूर्वाः पूर्वगा इति वचनं दिग्विशेषप्रतिपत्त्यर्थे ।
गंगा, सिन्धु, आदि चौदह नदियां हैं और भरत अधिकरण हो रहा एक एक क्षेत्र विषय है । इस प्रकार एक ही क्षेत्रमें सम्पूर्ण नदियोंकी प्राप्ति हो जानेके प्रसंगका पहिलीं नदियां पूर्व समुद्रको जाती हैं, इस कथनका प्रयोजन तो विशेष दिशाकी प्रतिपत्ति करा देना है, जिससे कि पिछली नदियों का पूर्वगमन या युगलोंमें पहिले उपात्त हो रहीं नदियोंका पश्चिम, दक्षिण, या उत्तर दिशाके समुद्रोंमें प्राप्त होना व्यावृत्त हो जाता है । " दो दोमें पहिली पहिली यों वाक्य सम्बन्ध कर देनेसे गंगा, सिन्धु, रोहित, रोहितास्या, हरित्, हरिकान्ता, सीता इन पहिली सात नदियोंका पूर्व समुद्रकी ओर गमन करना निषिद्ध हो जाता 1
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आदि सात क्षेत्र हैं । दो दो नदियोंका सूत्रके पदोंका समुचित संबन्ध कर देने से निवारण कर दिया जाता है । सूत्रकार के
अथापरं समुद्र का गच्छंतीत्याह ।
इसके अनन्तर पश्चिम समुद्रकी ओर कौनसी नदियां जा रहीं हैं ? बताओ, ऐसी जिज्ञासा होनेपर श्री उमास्वामी महाराज अगिले सूत्रको कहते हैं ।
शेषास्त्वपरगाः ॥ २३ ॥
दो दो नदियोंमेंसे प्रहिले कहीं गयीं पूर्वगामिनी नदियोंसे शेष बच रहीं पिछलीं पिछली नदियां तो पश्चिम समुद्रकी ओर गमन करती हैं ।
द्वयोर्द्वयोरेकत्रैकक्षेत्रे वर्तमानयोर्नद्योर्याः पूर्वास्ताभ्योन्याः शेषाः सरितोऽपरं समुद्रं गच्छंतीति । तत्र पद्महूद्रप्रभवा पूर्वतोरणद्वारनिर्गता गंगा, अपरतोरणद्वारनिर्गता सिन्धुः,