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________________ ३३८ तत्त्वार्थश्लोकवार्तिक भरत खण्ड ( हिंदुस्तान ) है, इसके उत्तरमें हिमालय है और पश्चिममें सिन्धु नदी तथा पूर्व भागमें गंगा नदी बह रहीं हैं। न तो यह हिमालय हिमवान् पर्वत है और न ये क्षुद्र गंगा नदी, सिंधु नदी ही महागंगा नदी महासिन्धु नदी हैं । किन्तु आर्यखण्डकी अयोध्या नगरीसे उत्तर दिशाकी ओर लगभग चारसौ सात योजन चलनेपर हिमवान् पर्वत मिल सकता है और आर्य खण्डसे पूर्व या दक्षिणकी ओर कई सौ योजन चलकर महागंगा नदी मिल सकती है । उससे पहिले यहीं बीस पच्चीस कोस चलकर ही महागंगा नदी नहीं मिल जाती है । यदि कोई मनुष्य विमानद्वारा इतना चल सके तो वह जैन सिद्धान्तके करणानुयोग शास्त्रोंके अनुसार गंगाको पा सकता है। ये सब योजन दो हजार धनुषसे नापे गये कोसोंकी दो हजार गुनी नापके बने हुये बडे योजन हैं । तथा हैमवत क्षेत्रके मध्यमें प्राप्त होकर रोहित् और रोहितास्या ये दो नदियां बह रहीं हैं। महापद्मके दक्षिण द्वारसे निकलकर सोलहसौ पांच योजन पर्वतके ऊपर ही दक्षिणकी ओर बह कर दो सौ योजन ऊंचे पर्वतसे रोहित् नदी गिरती है। महाहिमवान् पर्वत चार हजार दो सौ दस और दस वटे उन्नीस योजन चौडा है । हजार योजन चौडे हृदको घटाकर आधा कर देनेसे सोलह सौ पांच और पांच बटे उन्नीस योजन पर्वतके ऊपर रोहित्का बहना निकल आता है । पद्म हृदके उत्तर द्वारसे निकल कर दो सौ छहत्तर और छह बटे उनीस योजन हिमवान् पर्वतके ऊपर उत्तरमुख बह रही प्रारम्भमें साढे बारह योजन चौडी रोहितास्या नदी है। हरित् और हरिकान्ता नदियां तो हरिक्षेत्रके मध्यमें प्राप्त हो रही हैं। तिगिंछ ह्रदके दक्षिण तोरण द्वारसे निकली हुई हरित नदी निषधके ऊपर सात हजार चार सौ इक्कीस और एक बटे उन्नीस योजन दक्षिणकी ओर चलकर चार सौ योजन पर्वतके ऊपरसे गिरती है। हरिकान्ता नदी तो महापन हृदके उत्तर द्वारसे निकलकर सोलह सौ पांच और पांच बटे उन्नीस योजन महाहिमवान् पर्वतके ऊपर बहती हुई पच्चीस योजन चौडी हो रही कुछ अधिक दो सौ योजन ऊंचे धाराप्रपातसे गिरती है। विदेह क्षेत्रके मध्यको प्राप्त हो रही सीता, सीतोदा दो नदियां हैं । केसरी हृदके दक्षिण द्वारसे निकलकर नील पर्वतके ऊपर सात हजार चार सौ इक्कीस और एक बटे उन्नीस योजन पर्वतके ऊपर बहती हुई पचास योजन चौडी सीता नदी चार सौ योजन ऊंचे पर्वतसे गिरती है । तिगिंछ हृदके उत्तर द्वारसे सीतोदा निकलती है। रम्यक क्षेत्रके मध्यमें होकर पूर्व, पश्चिमकी ओर बह रहीं नारी, नरकान्ता, नदियां हैं। महापुण्डरीक ह्रदके दक्षिण द्वारसे नारी नदी निकलती है, जो कि नारी देवीके निवास प्रासादसे युक्त हो रहे नारी कुण्डमें पडती है। केसरी हृदके उत्तर तोरणकी मोरीसे नरकान्ता महानदी निकलती है । हैरण्यवत क्षेत्रके मध्यमें प्राप्त हो रहीं सुवर्णकूला, रूप्यकला नदियां हैं। शिखरी पर्वतके ऊपर बने हुये पुण्डरीक हृदके दक्षिण तोरण द्वारसे सुवर्णकूला नदी बहती है और महापुण्डरीक हदके उत्तर द्वारसे निकलकर रूप्यकूला महानदी गमन करती है । रक्ता, रक्तोदा, दो नदियां ऐरावत क्षेत्रके मध्यको प्राप्त हो रहीं हैं । पुण्डरीक हृदके जिनविम्ब अलंकृत पूर्वतोरणकी नीचे मोरीसे सवा छह योजन चौडी रक्ता नदी बह रही है। पुण्डरीक हृदके पश्चिम तोरणद्वारकी मोरी तो रक्तोदाका प्रभव
SR No.090499
Book TitleTattvarthshlokavartikalankar Part 5
Original Sutra AuthorVidyanandacharya
AuthorVardhaman Parshwanath Shastri
PublisherVardhaman Parshwanath Shastri
Publication Year1964
Total Pages702
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size22 MB
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