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तस्यार्थचिन्तामणिः
३०ई
लिया जाता है । पर्वतको उखाड कर बीचला भाग कौन देखे ! | अपनी पूरी हवेली के परिपूर्ण भागका देखना तो कष्टसाध्य हो रहा है । स्वशरीर के भीतरसे अवयव ही भावार्थ–गंगा, सिन्धु, आदि नदियों के परिवार से सहित जम्बूद्वीपमें सम्पूर्ण नदियां हजार नब्बै १७९२०९० हैं । धातुकीखण्ड द्वीप और पुष्करार्धमें भी नदियोंका आगम अनुसार निश्चित हो जाता है ।
नहीं दीख रहे हैं । सत्रह लाख बानवे सद्भाव बाधवैधुर्यसे
संभाव्यंत एव हि गंगासिंध्वादयो महानद्यो यथागममायामविष्कंभावगाहैरपरैश्च विशेषैस्तदधिकरणस्य महत्त्वादिहास्ति कासांचिनदीनां सरय्वादीनां महाविस्ताराणामुपलंभात् कस्यचिद्बाधकस्यासंभवात् ।
गंगा, सिन्धु, आदिक महानदियां अपनी अपनी लम्बाई, चौडाई, और गहराई तथा अन्य भी विशेषताओं करके सहित हो रहीं आगम अनुसार सम्भावित ही हो रहीं हैं। असम्भव नहीं हैं । क्योंकि उन नदियोंके अधिकरणभूत स्थान बहुत बडे महान् हैं । कितनी हीं नदियां तो वर्तमान में देखे जा रहे हिन्द महासागर, एटलान्टिक आदि समुद्रोंसे भी बडी हैं । वर्तमान परिदृष्ट देशों में यह भी किन्हीं किन्हीं सरजू नदी, क्षुद्र गंगा, क्षुद्र सिन्धु, सुवर्णभद्र, यमुना, टाइम्स, मिशीसिनी, मिसौरी, पो, राइन, आदि नदियोंका महान् विस्तार देखा जाता है । इसी प्रकार छोटे कोसोंसे हजारों को चौडी और लाखों कोस लम्बी महागंगा आदि नदियां भी सम्भव जातीं हैं। किसी भी विचारशील · व्यक्तिको उनके सद्भावमें बाधा देनेवाले प्रमाणका असम्भव है अथवा उन नदियों में बाधा देनेवाले
किसी भी प्रत्यक्ष अनुमान या आगम प्रमाणकी सम्भावना नहीं है
।
अथ कियद्विष्कंभो भरतो वर्ष इत्याह ।
अब यहां किसीका प्रश्न है कि पहिला क्षेत्र मरत नामक वर्ष भला कितनी चौडाईको धार रहा है ? ऐसी पृच्छना होनेपर श्री उमास्वामी महाराज अग्रिम सूत्रको कहते हैं ।
भरतः षड्विंशतिपंचयोजनशतविस्तारः षट्चैकोनविंशतिभागा योजनस्य ॥ २५ ॥
छबींस अधिक पांचसौ योजन और योजनके उन्नीस भागोंमेंसे छह भाग इतने विस्तार ( चौडाई ) को धारनेवाला भरतक्षेत्र है । अर्थात्- - भरत क्षेत्रकी चौडाई पांचसौ छब्बीस छह बटे उन्नीस योजन है। 1
भरतविष्कमस्योत्तरत्र वचनादिहावचनमिति चेन, जंबूद्दीपनवतिशत भागस्येयत्ताप्रतिपादनार्थत्वादेतत्सूत्रस्य तत्संख्यानयनोपायप्रतिपत्त्यर्थत्वात् ।