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________________ ३३२ तत्त्वार्थश्लोकवार्तिके किमवगाहोसावित्याह। वह पहिला हृद कितने अवगाह ( गहराई ) को धारता है ? ऐसी बुभुत्सा होनेपर श्री उमास्वामी महाराज सूत्रको कहते हैं । दशयोजनावगाहः ॥ १७॥.. यह पहिला हृद दश योजन अवगाहको धार रहा है । पृथग्योगकरणं सर्वदासाधारणावगाहमतिपत्त्यथे। पहिले पद्म हृदकी लम्बाई, चौडाईका सूचन करनेवाले पूर्व सूत्रसे इस सूत्रका पृथक् योग करना तो सम्पूर्ण हृदोंके न्यारे न्यारे असाधारण अवगाहोंकी प्रतिपत्ति करानेके लिये हैं । संख्ययायामविष्कंभावगाहगतया हृदः । सूत्रद्वयेन निर्दिष्टः प्रथमः सर्ववेदिभिः ॥१॥ सर्व पदार्थोंको जाननेवाले सर्वज्ञोपम श्री उमास्वामी महाराज श्रुतज्ञानीने उक्त दोनों सूत्रोंद्वारा सहस्र, पांचसौ और दश योजनवाली संख्या के साथ लम्बाई, चौडाई, और गहराईको प्राप्त हो रहेपन करके पहिले ह्रदका निरूपण कर दिया है। ___ सामर्थ्यादेकेंन सूत्रेण हिमवदादीनामुपरि षट्पद्मादयो इदा निर्दिष्टा इति गम्यते, तत्पाठापेक्षया पयस्य इदस्य प्रथमत्ववचनात् । उक्त दो सूत्रोंमें कहे गये प्रयेयके वर्णनकी सामर्थ्यसे ही " पद्म, महापद्म, तिगंछ, आदि " एक सूत्र करके हिमवान् आदि पर्वतोंके ऊपर छह पद्म आदि ह्रद कहे जा चुके हैं यों वार्तिकमें कहे विना ही समझ लिया जाता है । क्योंकि उसी पंद्रहवें सूत्रके पाठकी अपेक्षासे ही तो सोलहवें, सत्रहवें, सूत्र द्वारा वखाने गये पद्म ह्रदको प्रथमपनका वचन कहा गया है । अथ तन्मध्ये विशिष्ट परिणामं पुष्करं प्रतिपादयति । अब इसके अनन्तर उन हृदोके मध्यमें अनेक विशेषणोसे युक्त होरहे परिणामको धारनेवाले पुष्कर जातिके पार्थिव कमलका श्री उमास्वामी महाराज प्रतिपादन करते हैं। तन्मध्ये योजनं पुष्करम् ॥ १८॥ उस पहिले पद्म हृदके मध्यमें एक योजन लंबा, चौडा, वर्तुलाकार कमल है । द्विकोशकर्णिकत्वादेकक्रोशबहलपत्रत्वाच्च योजनपरिमाणं योजनं पुष्करं जलकुसुमं तथानादिपरिणामाद्वेदितव्यम् । तत् ? तस्य पबदस्य मध्ये ।
SR No.090499
Book TitleTattvarthshlokavartikalankar Part 5
Original Sutra AuthorVidyanandacharya
AuthorVardhaman Parshwanath Shastri
PublisherVardhaman Parshwanath Shastri
Publication Year1964
Total Pages702
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size22 MB
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