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तत्त्वार्थश्लोकवार्तिके
" तद्विभाजिनः पूर्वापरायता हिमवन्महाहिमत्रान्निषधनोलरुक्मिशिखरिणो वर्षधरपर्वताः " इस सूत्र करके सूत्रकार द्वारा हिमवान् आदिक छह प्रधान पर्वत बहुत अच्छे कहे जा चुके हैं । यों वार्तिकके पदोंका सम्बन्ध कर संगत अर्थ कर लेना चाहिये । पर्वतोंके प्रतिपादक पहिले सूत्रमें जो पूर्व, पश्चिम, लम्बे
और उन क्षेत्रोंका विभाग कर रहे यों पर्वतों के इन दो विशेषणोंका कथन तो अगले तीन सूत्रोंमें कहे गये हेम, अर्जुन, आदिका विकारपना और मणियोंसे विचित्र पसवाडोंका धारना तथा ऊपर या जडमें समान विस्तार सहितपना इन तीन विशेषणों का उपलक्षण करनेके लिये है, जो कि पर्वत श्री उमास्वामी महाराजने उत्तरवर्ती तोन सूत्रों करो हेम आदिके परिणाम और मणियोंसे विचित्र पसवाडेवाले तथा ऊपर, नीचे, बीचमें, तुल्य विस्तारवाले यों भले प्रकार तीन सूत्रों द्वारा कहे जा चुके हैं । अर्थात्-लक्ष्यलक्ष्यण भावकी अपेक्षा भविष्यके तीन सूत्रोंमें कहे गये प्रमेयका पहिले सूत्रमें ही आकर्षण कर " तद्विभाजिनः पूर्वापरायता हिमवन्महाहिमवन्निषधनीलरुक्मिशिखरिणो वर्षधरपर्वताः " इस पहिले सूत्रको ही छह कुलाचौंका निर्दोष सर्वाङ्गीण लक्षण समझ लेना चाहिये। वही चारों सूत्रोंकी एकवाक्यता हो जानेपर निष्कर्ष निकलता है ।
तेषां हिमवदादीनामुपरि पनादिदसद्भावनिवेदनार्थमाह ।
उन हिमवान् आदि पर्वतोंके ऊपर पद्म आदि सरोवरोंके सद्भावका निवेदन करनेके लिये श्री उमास्वामी महाराज अग्रिम सूत्रको कहते हैं। पद्ममहापद्मतिगिंछकेसरिमहापुंडरीकपुंडरीका
हृदास्तेषामुपरि ॥१५॥ उन हिमवान्, महाहिमवान् , आदि छह पर्वतोंके ऊपर ठीक बीचमें यथाक्रमसे पद्म, महापद्म, तिंगछ, केसरी, महापुण्डरीक, पुण्डरीक, इन नामोंको धारनेवाले सरोवर हैं ।
हिमवत उपरि पो हृदः, महाहिमवतो महापद्मः, निषधस्य तिगिंछः, नीलस्य केसरी, रुक्मिणः महापुंडरीका, शिखरिणः पुंडरीक इति, संबंधो यथाक्रमं वेदितव्यः । पद्मादिजलकुसुमविशेषसहचरितत्वात् पद्मादयो इदा व्यपदिश्यते, तथा रूढिसद्भावाद्वा हिमवदादिव्यपदेशवत् ।
हिमवान् पर्वतके ऊपर पद्मनामका ह्रद है । महाहिमवान् पर्वतके ऊपर ठीक बीचमें महापद्म संज्ञक सरोवर है । निषध पर्वतके ऊपर तिगिंछ नामवाला पद्माकर है । नील पर्वतके ऊपर केसरी अभिधावाला अगाध जल भरा हुआ तडाग है । रुक्मी पर्वतपर महापुण्डरीक इस नामका धारी ह्रद है तथा शिखरी पर्वतके ऊपर पुण्डरीक संज्ञावान् आयतचतुरस्र सरोवर है। इस प्रकार छह पर्वतोंके ऊपर यथाक्रमसे छह हृदोंका सम्बन्ध हो रहा समझ लेना चाहिये। उन हृदोंमें विराज रहे और पद्म, महापद्म,