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तत्त्वार्थचिन्तामणिः
वे हिमवान् आदिक पर्वत ऊपर भाग और मूल भागमें समान चौडाईको लिये हुये हैं। अर्थात्-भीतके समान ऊपर नीचे बीचमें उनकी चौडाई एकसी है।
च शद्धान्मध्ये च, तथा चानिष्टविस्तारसंस्थाननिवृत्तिः प्रतीयते ।
सूत्रमें पडे हुये च शब्दसे मध्यमें भी उनका समान विस्तार समझ लेना चाहिये, और तिस प्रकार ऊपर, नीचे, बीच, में तुल्यविस्तारका कथन करनेसे अनिष्ट विस्तारवाले संस्थानोंकी निवृत्ति प्रतीत होजाती है । अर्थात्-सुमेरुके समान नीचेसे ऊपरकी ओर घटते घटते रहना या विजयार्धके समान कटनियोंका होना अथवा मानुषोत्तर पर्वतके समान एक ओर भीतका आकार और दूसरी ओर ढला हुआ आकार इत्यादि संस्थान इन कुलाचलोंका नहीं है । ये तो पक्की भीतके समान ऊपर नीचे बीचमें तुल्यविस्तारवाले हैं।
तदेवं सूत्रचतुष्टयेन पर्वताः प्रोक्ता इत्युपसंहरति । तिस कारण इस प्रकार उक्त चारों सूत्रों करके कुलाचल पर्वतोंका वर्णन सूत्रकारने अच्छा कह दिया है । इस बातका श्री विद्यानन्द स्वामी वार्तिक द्वारा उपसंहार करते हैं । अर्थात्" मणिविचित्रपार्थाः ” और “ उपरि मूले च तुल्यविस्ताराः " ये दो सूत्र हैं । एक नहीं, दो इनके पूर्वमें हैं यों चार सूत्र हुये ।
पूर्वापरायतास्तत्र पर्वतास्तद्विभाजिनः । षट्प्रधानाः परेणैते प्रोक्ता हिमवदादयः ॥१॥
उस जम्बूद्वीपमें उन क्षेत्रोंका विभाग करनेवाले पूर्व, पश्चिम, लम्बे पडे हुये ये हिमवान् आदिक छह प्रधान पर्वत सूत्रकार द्वारा न्यारे सूत्रों करके अच्छे कहे जा चुके हैं ।
सूत्रेणेति पूर्वश्लोकादनुवृत्तिः परेणेति सूत्रविशेषणं तेन क्षेत्राभिधायिसूत्रात्परेण सूत्रेण हिमवदादयः षट्मधानाः पर्वताः प्रोक्ताः इति संबंधः कर्तव्यः। पूर्वपरायतास्तद्विभाजिन इति विशेषणद्वयवचनं हेमादिमयत्वमणिविचित्रपार्थत्वोपरि मूले च तुल्यविस्तारत्वविशेषणानामुपलक्षणार्थे । हेमादिमयाः मणिभिर्विचित्रपार्थाः तथोपरि मूले च तुल्यविस्ताराः प्रोक्ताः सूत्रत्रयेण ।
इस वार्तिकसे पहिली " क्षेत्राणि भरतादीनि सप्त तत्रापरेण तु । सूत्रेणोक्तानि तत्संख्यां हतुं तीर्थिककाल्पिताम् ” उक्त वार्तिक श्लोकसे सूत्रेण इस पदकी अनुवृत्ति कर लेनी चाहिये । इस वार्तिकमें पडा हुआ " परेण " यह शब्द उस सूत्रका विशेषण हो जाता है । तिस कारण क्षेत्रोंका कथन करनेवाळे " भरतहैमवतहरिविदेहरम्यकहैरण्यवतैरावतवर्षाः क्षेत्राणि ” इस सूत्रसे पाली औरके 42