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________________ तत्वार्थचिन्तामणिः ३२५ वचनका प्रतिघात होना सिद्ध हो जाता है । इस बातका हम बहुत बार स्थान स्थानोंपर निरूपण कर चुके हैं । अनेकान्त वादियोंके प्रमाण कुठारोंकरके सर्वथा एकान्तवादियोंकी बुद्धि शाखायें खण्ड खण्ड होकर नष्ट, भ्रष्ट, कर दी जाती हैं। जिन पर्वतों करके विभागको प्राप्त किये गये ये सात क्षेत्र कहे जा चुके हैं, यह तो बताओ वे पर्वत कौन और किस ढंगसे व्यवस्थित हैं ? ऐसी जिज्ञासा होनेपर अग्रिम सूत्र कहा जाता है। तद्विभाजिनः पूर्वापरायता हिमवन्महाहिमवन्निषधनील रुक्मिशिखरिणो वर्षधरपर्वताः ॥ ११ ॥ उन क्षेत्रोंका विभाग करनेवाली टेवको धार रहे और पूर्व पश्चिमकी ओर लम्बे हो रहे १ हिमवान् २ महाहिमवान् ३ निषध ४ नील ५ रुक्मी और ६ शिखरी ये छह वर्षधर पर्वत हैं । अर्थात्-क्षेत्र परस्पर मिल नहीं सकें इस ढंगसे उन क्षेत्रोंका विभाग कर देनेवाले होनेसे पर्वतोंको वर्षधर कह दिया गया है । अनेक प्रान्तोंमें भूमिके नीचे ऊपर पर्वत फैल रहे हैं। जहां पर्वत अधिक होते हैं वहां भूकम्प न्यून होता है । ज्वालामुखी पर्वत भले ही उष्णताके वेग होनेसे ही प्रान्तभूमिको कंपा देवें, किन्तु शेष पर्वत तो भूडोलको रोकते रहते हैं । हड्डियां शरीरको धारे रहती हैं । शरीर हडिओंको नहीं धारता है। मैंस या हाथीकी पीठके हड्डेपर सम्पूर्ण शरीर लटक रहा है। यही दशा बैल, मनुष्य, घोडा, छिरिया, आदिकी समझ लेनी चाहिये । अतः यों चल, विचल, कम्प, नहीं होने देनेकी अपेक्षा पृथ्वीको धारे रहना कार्य करनेसे भी पर्वतोंकी वर्षधर संज्ञा अन्वर्थ कही जा सकती है। हिमाभिसंबंधतो हिमवद्यपदेशः भरतहैमवतयोः सीमनि स्थितः, महाहिमवन्निति चोक्तं हैमवतहरिवर्षयोर्भागकरः, निषीदंति तस्मिन्निति निषधो हरिविदेहयोमर्यादाहेतुः, नीलवर्णयोगानीलव्यपदेशः विदेहरम्यकविनिवेशविभाजी, रुक्मसद्भावतो रुक्मीत्यभिधानं रम्यकहैरण्यवतविवेककरः, शिखरसद्भावाच्छिखरीति संज्ञा हैरण्यवतैरावतसेतुबंधः शिखरी । ___ हिम ( बर्फ ) का चारों ओर सम्बन्ध होनेसे पहिले पर्वतका " हिमवान् ” यह नाम निर्देश हो रहा है। अन्य पर्वतोंमें या इस भरत क्षेत्र सम्बन्धी आर्य खण्डके हिमालय पर्वतमें भी हिमका घनिष्ठ सम्बन्ध है। अतः रूढि पक्षका अवलम्ब लेना ही सन्तोषाधायक है । यह हिमवान् पर्वत तो भरत क्षेत्र और हैमवत क्षेत्रकी सीमामें व्यवस्थित हो रहा है । तथा महाहिमावान्के सम्बन्धमें हम यों कह चुके हैं कि हिमके सम्बन्धसे हिमवान कहा जाता है, महान् जो हिमवान् वह महाहिमवान् है। भले ही हिम नहीं होय तो भी रामकी गुडियाके समान नाम रख देने में कौनसी भारी क्षति हुई जाती है । हैमवत क्षेत्र और हरिवर्षका विभाग कर रहा यह महाहिमवान् पर्वत विन्यस्त है। देव और देवियां तिसमें क्रीडा करने के लिये विराजते हैं, इस कारण पर्वतका नाम निषध है, जो कि
SR No.090499
Book TitleTattvarthshlokavartikalankar Part 5
Original Sutra AuthorVidyanandacharya
AuthorVardhaman Parshwanath Shastri
PublisherVardhaman Parshwanath Shastri
Publication Year1964
Total Pages702
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size22 MB
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