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तत्त्वार्यश्लोकवार्तिके
कर नारी, नरकान्ता, नदियां पूर्व, पश्चिम, समुद्रकी ओर बह जाती हैं। दूसरे रुक्मी नामको धारनेवाले हिरण्यवान् पर्वतसे जो अदूर होरहा है, इस कारण उस छठे क्षेत्रका नामनिर्देश हैरण्यवत है। रुक्मीसे उत्तर और शिखरी पर्वतसे दक्षिण तथा पूर्व, पश्चिम, समुद्रोंके मध्यमें उसका विस्तार (चौडाई लम्बाई) समझ लेना चाहिये । उस हैरण्यवतके मध्यमें माल्यवान् नामका वृत्त वेदाढ्य शैल है । जिसके कुछ भागोंकी प्रदक्षिणा देकर सुवर्णकूला, रुप्यकूला, नदियां पूर्व और पश्चिम समुद्रकी ओर बहीं जा रही हैं । भरतके समान ऐरावत नामक चक्रवर्तीके सम्बन्धसे सातवें क्षेत्रका नाम ऐरावत है । शिखरी पर्वतसे उत्तर और तीनों ओर समुद्रोंके मध्यमें उसकी रचना बन रही है । उस ऐरावतके मध्यमें भी पहिले भरतक्षेत्रके विजया समान एक पूर्व, पश्चिम लंबा विजयार्ध पर्वत पडा हुआ है।।
किमर्थं पुनर्भरतादीनि क्षेत्राणि सप्तोक्तानीत्याह । ___ महाराज फिर यह बताओ कि अतिरिक्त सूत्र द्वारा ये भरत आदिक सातक्षेत्र भला किस लिये कहे गये हैं ! ऐसी जिज्ञासा होनेपर श्री विद्यानन्द स्वामी समाधानकारक वार्तिकको कहते हैं ।
क्षेत्राणि भरतादीनि सप्त तत्रापरेण तु । . सूत्रेणोक्तानि तत्संख्यां हंतुं तीर्थ(थि)ककल्पिताम् ॥१॥
पौराणिक या अन्य दार्शनिक पण्डितों द्वारा कल्पना की गयी उन क्षेत्रोंकी संख्याका घात करनेके लिये श्री उमास्वामी महाराजने इस न्यारे सूत्र करके तो उस जम्बूद्वीपमें भरत आदि सात क्षेत्र निश्चित रूपसे कह दिये हैं ।
कुतः पुनस्तीर्थककल्पिता क्षेत्रसंख्यानेन प्रतिहन्यते वचनस्याविशेषात् स्याद्वादाश्रयत्वादेतद्वचनस्य प्रमाणत्वोपपत्तेः संवादकत्वात्सर्वथा बाधवैधुर्यात्सर्वथैकांतवादिवचनस्य तेन प्रतिघातसिद्धेरिति निरूपितमायं ।
यहां कोई कटाक्ष करता है कि अन्य मतावलम्बियों द्वारा कल्पित कर ली गयी क्षेत्रोंकी संख्या भला इस सूत्र करके कैसे प्रतिघातको प्रात हो जाती है ? जब कि उनके वचनसे और तुम्हारे वचनका कोई अन्तर नहीं दीख रहा है। उनके वचनोंमें विष और तुम्हारे वचनोंमें अमृत नहीं भरा है। शास्त्र या पत्र भी समान हैं । ऐसी दशामें दोनों ही वचन प्रमाण या दोनों ही समान रूपसे अप्रमाण ठहर जाते हैं । आचार्य कहते हैं कि स्याद्वादसिद्धान्तका आश्रय होनेसे इस श्री उमास्वामी महाराजके वचनको प्रमाणपना उचित हो रहा है । यह सूत्रकारका वचन सम्बादक भी है और सभी प्रकारकी बाधाओंसे रहित भी है । अर्थात्-बाधवैधुर्य होनेसे वचनको सम्वादकपना है और सम्वादक होनसे स्याद्वादसिद्धान्तका अवलम्ब लेकर कहे हुये वचनोंको प्रामाण्य बन रहा है । इस कारण उस बाधविधुर, सबादक, प्रमाणभूत और स्यावादाव लम्बी सूत्र करके सर्वथा एकान्तवादियों के