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तत्त्वार्थचिन्तामणिः
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तन्मध्ये विकृतवान् वेदाढ्यः। विदेहयोगाज्जनपदेपि विदेहव्यपदेशः निषधनीलवतोरंतरे तत्संनिवेशः। स चतुर्विधः पूर्वविदेहादिभेदात् । रमणीयदेशयोगाद्रम्यकाभिधानं नीलरुक्मिणोरंतराले तत्संनिवेशः तन्मध्ये गन्धवान् वृत्तवेदान्यः । हिरण्यवतोऽदृरभवत्वाद्धरण्यवतव्यपदेशः रुक्मिशिखरिणोरंतरे तद्विस्तारः तन्मध्ये माल्यवान् वृत्तवेदाढ्यः। ऐरावतक्षत्रिययोगादैरावताभिधानं शिखरिसमुद्रत्रयांतरे तद्विन्यासः, तन्मध्ये पूर्ववद्विजयाधः।
हिमवान् पर्वतसे जो दूर नहीं किन्तु निकटमें विद्यमान हो रहा हैमवतक्षेत्र है अथवा वह हिमवान् पर्वत जिस देशमें है वह हैमवत नामक वर्ष है । हिमवान् शब्दसे “ अदूरभवश्च " या " तदस्मिन्नस्तीति देशे तन्नाम्नि" सूत्रोंद्वारा अण्प्रत्यय करनेपर " हैमवत " शब्द बन जाता है और वह हैमहतक्षेत्र तो लघु हिमवान् पर्वतसे: उत्तरकी ओर और महाहिमवान् पर्वतसे दक्षिणकी ओर मध्यमें तिष्ठा है। उस हैमवत क्षेत्रके मध्यमें शदवान् नामका वृत्तवेदाढ्य पर्वत है। ढोलके समान गोल होनेसे वृत्त माना गया है । इसकी प्रदक्षिणा देकर रोहितास्या नदी पश्चिम समुद्रकी ओर बही जाती है और प्रदक्षिणा करती हुई रोहित नदी पूर्व की ओर बह जाती है। हरि यानी सिंहके वर्णसमान शुक्ल वर्णवाले मनुष्यों के योगसे हरिवर्ष क्षेत्र विख्यात होरहा है। वह हरिवर्ष निषध पर्वतके दक्षिणकी ओर और महाहिमवान्के उत्तरकी ओर तथा पूर्व पश्चिम लवण समुद्र के अन्तरालमे स्थित है। उस हरिवर्षके मध्यमें विकृतवान् नामका ढोल समान गोल वेदाढ्य पर्वत है। हरिकान्ता नदी आधा योजन दूरसे उसकी प्रदक्षिणा करती हुई पश्चिम समुद्रको ओर चली जाती है और हरित् नदी इस वेदाढ्यकी प्रदक्षिणा कर पूर्वकी ओर बह रही है । विदेहके योगसे देशमें भी विदेह यह नामनिर्देश कर दिया जाता है । अर्थात्-वहां सर्वदा मोक्षमार्गकी प्रवृत्ति बनी रहनेसे अनेक मनुष्य कर्मबन्धका उच्छेद कर देहरहित होजाते हैं । मुनिवर इस स्थूल देह और सूक्ष्म देहका उच्छेद करनेके लिये प्रयत्न कर रहे विदेहपनको प्राप्त होजाते हैं । अतः मुनियोंमें रहनेवाला विदेहत्व धर्म तदधिकरण क्षेत्रमें भी उपचरित होरहा है, जैसे कि यष्टित्व धर्मको यष्टिवान् देवदत्तमें धर दिया जाता है। दक्षिणमें निषध और उत्तरमें नीलवान् पर्वत और पूर्व, पश्चिम, लवण समुद्र के अन्तरालमें उस विदेह क्षेत्रका सन्निवेश है । वह विदेहक्षेत्र पूर्व विदेह, उत्तर विदेह, देवकुरु, उत्तर कुरु,इस प्रकार भेदसे चार प्रकारका है । सुदर्शन मेरुसे पूर्व दिशामें बाईस हजार योजन चौडे भद्रसाल वनका उल्लंघन कर सीता नदीके दक्षिण उत्तरमें आठ आठ विदेह हैं । इसी प्रकार सुदर्शन मेरुसे पश्चिम दिशाकी ओर सीतोदा नदीके दोनों ओर आठ आठ विदेह हैं । यों एक मेरुसम्बन्धी बत्तीस विदेहोंकी रचना है। तथा रमणीय देशों, नदी, पर्वत, वन, आदि करके युक्त होरहा होनेसे पांचवे देशका रम्यक यह नाम निर्देश है । नील पर्वतसे उत्तर और रुक्मी पर्वतसे दक्षिण तथा पूर्वापर समुद्रोंके अन्तरालमें उस रम्यक देशकी रचना होरही है। उस रम्यकके मध्यमें गन्धवान् नामका वृत्तवेदाढ्य पर्वत है जिसकी प्रदक्षिणा