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________________ तत्त्वार्थीचन्तामणिः २९७. जैसे कि देखी जा चुकी वायु है ( अन्वय दृष्टान्त )। आचार्य कहते हैं कि यह कहना मिथ्या है । क्योंकि मेघ, पक्षी, आदि पदार्थोंमें धारनेवाली वायु भी देखी जाती है । अनादि होनेसे सदा धारकपनेकी उस वायुमें कोई क्षति नहीं है। अर्थात्-जो कंपनेवाली चंचल वायु है, वह भूमियोंको दृढ नहीं डाट सकती है, किन्तु बादलोंको जैसे धारक वायु देरतक धारे रहती है, उसी प्रकार अनादि कालसे पृथिवीको धार रहे तीन वातवलय चंचल या कंपनेवाले नहीं होनेसे भमियोंको अविचल धार रहे हैं । कोई हानि नहीं हो पाती है । ___ न हि अभ्याधारी वायुरनवस्थितस्तस्येरणात्मत्वाभावात् । तच्चासंभवाभायमीरणात्मकत्वरहितो मरुत्तोयदादिधारणात्मकस्यापि दर्शनात् । सर्वदाधारकत्वं न दृष्टं इति चेत्, सादेरनादेर्वा ? सादेश्वेत् सिद्धसाध्यता । यदि पुनरनादेरपि सर्वदाधारकत्वं पवनस्य न स्यात्तदास्माकाशादेरप्यमूर्तत्वविभुत्वादिधर्मधारणविरोधः । अत्राधाराधेययोरनादित्वात्सर्वदा तद्भाव इति चेत्, भूमिगन्धभृतोरपि तत एव तथा सोस्तु । तन्न सर्वदाधः पतंति भूमयः प्रमाणाभावात् । भूमियों का अधिकरण हो रही वायु कोई अस्थिर नहीं है। क्योंकि वह धारक वायु गमन स्वभाव वाली या चंचल स्वभाववाली नहीं है । अतः असंभव होनेसे वह भूमियोंके सर्वदा नीचे गिरते रहनेका मन्तव्य प्रशस्त नहीं है । " ईरणात्मत्वाभाव " हेतुको यो पुष्ट करते हैं कि यह भूमियोंका आधार होरही वायु ( पक्ष ) ईरण स्वभावसे रहित है ( साध्य ) क्योंकि वायुका बादल आदिकोंको धारे रहना स्वरूप भी देखा जाता है ( हेतु )। अर्थात्-कई दिनोंतक वायुके आधारपर बादल आकाशमें डटे रहते हैं। शरीरमें कुपित होगयी वायु किसी नसमें रक्तको कई वर्षोतक डाटे रहती है, चलायमान नहीं होने देती है । काचकी शीसी या नलीमें भर दी गयी वायु गोलीको डाटे रहती है । यदि यहां कोई यों कहे कि वायु कुछ देरतक भले ही बादल, रक्त, गोली आदिको धारे रहे 'किन्तु सर्वदा धारकपना किसी भी वायुमें नहीं देखा गया है, यों कहनेपर तो हम विकल्प उठाते हैं कि कुछ कालसे उपजी हुई सादि वायुको सदा धारकपने का निषेध करते हो ? अथवा क्या अनादिकालसे सदृशं परिणामोंको धार रही अकम्प अनादि वायुको भी पृथिवीके सदा धारनेका निषेध करते हो ? बताओ। यदि प्रथम पक्ष अनुसार आदि वायुको पृथिवीका धारकपना निषेधते हो तो तुम्हारे ऊपर सिद्धसाध्यता (सिद्ध साधन ) दोष लगता है जिसको हम सिद्ध मानते हैं उसको पुनः साधनेकी क्या आवश्यकता पडी है ? निरर्थक बातों को सुननेका हमको अवसर नहीं है, सादि वायुको हम प्रथमसे ही पृथिवीयोंका धारक नहीं मान रहे हैं। हां, यदि फिर द्वितीय विकल्प अनुसार अनादि कालीन दृढ वायुको भी सदा पृथिवीयोंका धारकपना नहीं माना जायगा तब तो आत्मा, आकाश, आदिक द्रव्योंको भी अमूर्तपन, व्यापकपन, गुणसहितपन, आदि धर्मों के धारनेका विरोध हो जायगा। जैसे आत्मा, आकाश, आदिक द्रव्य अनादि कालसे अमूर्तपन आदिक धर्मों के धारक माने जारहे हैं, उसी प्रकार अनादि वायु भी 38
SR No.090499
Book TitleTattvarthshlokavartikalankar Part 5
Original Sutra AuthorVidyanandacharya
AuthorVardhaman Parshwanath Shastri
PublisherVardhaman Parshwanath Shastri
Publication Year1964
Total Pages702
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size22 MB
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